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पाल और पासदेव ये चार पुत्र थे । गोसल का विवाह गणदेवी नामा कन्या से हुआ था। इनके हरिचन्द्र और देमती नामा एक पुत्र और एक पुत्री थी। __ श्रेष्ठि नेमड़ के कुटुम्ब में सदा धर्म का प्रकाश रहता था। समस्त कटम्ब जिनेश्वरदेव एवं धर्म गरुओं का परम भक्त था। दान, शील, तप एवं भावना-धर्म के इन चार सिद्धान्तों पर समस्त कुल का जीवन ढला हुअा था। प्रतिदिन कोई-न-कोई उल्लेखनीय धर्मकृत्य तथा साहित्य सेवा सम्बन्धी कार्य होते ही रहते थे । धर्म एवं साहित्य-सम्बन्धी कार्यों का उल्लेख निम्नवत् है :प्राग्वाटकुलशिरोमणि मंत्री भ्राता महामात्य वस्तुपाल एवं
दग्डनायक तेजपाल द्वारा श्री अर्बुदगिरि के धर्मकार्य ऊपर देवलवाड़ा ग्राम में श्री नेमिनाथचैत्य नामक
लूणसिंह वसति में श्रेष्ठि नेमड़ के वंशजों ने दण्डकलशादियुक्त देवकुलिका संख्या ३८और ३६ वि० सं० १२६१ के मार्गमास में विनर्मित करवाई तथा उक्त दोनों देवकुलिकाओं में ६ प्रतिमाए सपरिकर-प्रत्येक कुलिका में तीन-तीन प्रतिमा नागेन्द्रगच्छीय श्री विजयसेनसूरि द्वारा वि० सं० १२६३ मार्ग शीर्ष शुक्ला १० को प्रतिष्ठित करवाकर निम्नवत् विराजमान की। ___ श्रेष्ठि सहदेव ने अपने पुत्र पेढ़ा और गोसल के श्रेयार्थ तथा जिनचन्द्र ने स्व एवं स्वमातृ के श्रेयार्थ श्री सम्भवनाथ बिम्ब बनवाया।२
श्रेष्ठि देवचन्द्र ने अपनी माता चाहिणी के श्रेयार्थ श्री आदिनाथ बिम्व करवाया ।' १. अर्बुद प्राचीन जैनलेख सन्दोह लेखांक ३५०, ३५५. २. अ० प्रा० जै० ले० सं० लेखांक ३४५. ३. . , , , , , , ३४६
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