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________________ ५१ श्रेष्ठि वीरदेव देवकुमार और हालू इन तीनों भ्रातानों ने अपने और अपनी माता जाल्हणदेवी के कल्याणार्थ श्री महावीरस्वामी की प्रतिमा वनवाई | ४ श्रेष्ठ सहदेव ने देवकुलिका संख्या ३८ दण्ड ध्वज - कलशादि सहित विनिर्मित करवा कर उपरोक्त तीनों प्रतिमायें उसमें संस्थापित करवाई | और भगवान संभवनाथ के पांचों कल्यारों का लेखपट्ट तैयार करवा कर लगवाया । ५ श्रेष्ठि धनेश्वर और लाहड़ ने अपने, अपनी माता नायकी और अपनी स्त्रियों के कल्याणार्थ श्री अभिनंदन प्रतिमा बनवाई | ६ श्रेष्ठ लाहड़ ने अपनी स्त्री लक्ष्मी के श्रेयार्थ श्री नेमिनाथ बिंब बनवाया । ७ जिनचन्द्र, धनेश्वर और लाहड़ इन तीनों ने अपनी माता वधू हरियाही (हर्षिरणी) के श्रेयार्थ देदकुलिका दण्डकलशादियुतों संख्या ३६ विनिर्मित करवा कर उसमें सपरिकर प्रतिमायें उक्त अभिनंदन, नेमिनाथ और शान्तिनाथ भगवान की संस्थापित कीं । भगवान अभिनंदन स्वामी के पांचों कल्याणकों का लेखपट्ट उत्कीरिंगत करवा कर लगवाया । ८ ( ४ ) प्र० प्रा० जै० लेखसंदोह लेखाङ्क ( ५ ) ( ६ ) ( ७ ) ( 5 ) Jain Educationa International ... For Personal and Private Use Only ३४७ ३५१. ३५३ ३५४. ३५५,३५६. www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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