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________________ ५२ श्री शत्रुञ्जय तीर्थ, गिरनारतीर्थ अर्बुदतीर्थ, पाटण, लाटापल्ली (लारडोल), पालनपुर प्रादि भिन्न २ स्थानों में जो नेमड़ के वंशजों ने तीर्थ कार्य किए वह निम्न प्रकार हैं: १- शत्रु जय-महा ० तेजपाल द्वारा विनिर्मित श्री नंदीश्वरदीप नामक चैत्यालय की पश्चिम दिशा के मण्डप में दण्डकल शादि युक्त एक देवकुलिका बनवाई और श्री आदिनाथबिम्ब प्रतिष्ठित करवाया २-शत्रुजय-महा ० तेजपाल द्वारा विनिर्मित श्री सत्य पुरीय महावीरस्वामी-जिनालय में एक जिन प्रतिमा और गवाक्ष । ३-शत्रुजय --एक अन्य देवकुलिका में दो गवाक्ष' । एक पाषाण-जिन प्रतिमा और एक धातु -चौबीशी। (४) शत्रुजय-तीर्थ के एक मन्दिर के गूढ़मण्डप के पूर्व द्वार में एक गवाक्ष, उसमें दो जिन बिम्ब और गवाक्ष के ऊपर श्री आदिनाथ भ० का एक बिम्ब ! (५) गिरनारतीर्थ-श्रो नेमिनाथ के पादुकामण्डप में एक गवाक्ष और श्री नेमिनाथ-बिम्ब । ___ (६) गिरनारतोर्थ-महामात्य वस्तुपाल टूक में श्री आदिनाथ प्रतिमा के आगे के मण्डप में एक गवाक्ष और एक भगवान नेमिनाथ बिम्ब । ___ (७) जावालीपुर (जालोर-मारवाड़)-श्री पार्श्वनाथ मन्दिर की भमती में श्री प्रादिनाथ प्रतिमा मय एक देवकुलिका । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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