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रीति-रिवाज १- पल्लीवालों के जहां मन्दिर हैं वहां भादवा मास में पयूषण पर्व ( अठाई ) बदी १३ से पंचमी तक मानी जाती हैं।
२- पल्लीवालों के कई मन्दिरों से लगे हुए उपाश्रयों में जतीजी रहते थे और बही वारमिक क्रियायें कराते थे।
३- पल्लीवालों के मन्दिरों में श्री महावीर प्रभु के निर्वाण का लड्डु, कार्तिक कृष्णा अमावस्या की पिछली रात को अर्थात कार्तिक शुक्ला १ प्रतिपदा की भोर होने से पूर्व चढता है।
४-विवाह के अवसर पर मेलौनी होती है जिसके मुताबिक सब विरादरी वालों से जो वारात में शामिल होते हैं कुछ चन्दा मन्दिर के खर्च को व किसी पुण्य के काम के निमित्त उघाया जाता है । यह चन्दा घराती बराती दोनों जगहों के मनुष्यों से इकठा किया जाता है। इसमें हर एक मनुष्य अपनी इच्छानुसार जो चाहे दे सकते हैं। बेटे वाला ११) रुपये से १०१) रुपये तक दे सकता है। बेटी वाला और उसके घराती भी अपनी इच्छानुसार भेंट करते हैं
५- लड़कालड़की की सगाई में चार बातों का बचाव किया जाता है । १निजगोत्र, २ लड़का लड़की के मामा का गोत्र, ३ लड़का लड़की के बाप के मामा का गोत्र, ४ लड़का लड़की की माताके मामा का गोत्र । इन चारों गोत्रों में कोई गोत्र किसी से मिले तो सगाई नही होती है और जब नाते और जन्म पत्री की राह से विधि मिल जाती है, तब सगाई होती है।
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