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कर के संघ निकाला था, का वर्णन है । श्री महावीर जी क्षेत्र की स्थापना विक्रमीय १६ उन्नीसवीं शताब्दी के सं० १८२६ के आस पास दीवान जोधराज ने की थी। अतः उक्त राय की पोथी १६ उन्नीसवीं शताब्दी की अथवा पश्चात् लिखी गई है। परन्तु उन्नीसवीं शताब्दी में लिखा जाने वाला विवरण निकट की और निकट तम की शताब्दियों का चाहे वह जनश्रुतियों, दन्त कथामों पर ही क्यों न लिखा गया हो नाम, स्थान एवं कार्य-कारणों के उल्लेख में तो विश्वसनीय हो सकती है । इस दृष्टि से उक्त राय की उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी में लिखी गई पुस्तक में अगर १७ सतरहवीं शताब्दी की कोई महत्वपूर्ण घटना प्रसंग वरिणत है तो वह विश्वास करने के योग्य ही समझा जा सकता है।
दूसरा धनपति साह का पल्लीवाल वैश्यों में विक्रमीय सतरहवीं शताब्दी में पाली का त्याग करने के कार्य को उठाना इस पर भी विश्वास योग्य ठहरता है कि उसी शताब्दी में पाली ब्राह्मणों ने पाली का त्याग किया था। दोनों में घनिष्ट एवं गाढ सम्बंध होने के कारण किसी तृतीय कारण से अथवा दोनों में उत्पन्न हुए कोई तनाव पर दोनों वर्णवाले पाली एक साथ अथवा कुछ आगे पीछे छोड़ चले हों, यह स्वभाविक हैं।
तुला राम ने ४५ गोत्रों को निमंत्रित किया था, परन्तु आये ३३ गोत्र ही थे । राय की पुस्तक में तुलाराम के पूर्वजों के नाम इस प्रकार (-) चिन्ह लगा कर सरल पंक्ति में लिखे गये हैं कि पिता, पुत्र और भाई को अलग कर लेना संभव नहीं। गंगा
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