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पाली से निकल कर ज्यों-ज्यों कुल, व्यक्ति अथवा संघ अलग अलग प्रान्तों में, राज्यों में जा-जा कर बसते गये, त्यों-त्यों वहां के निवासियों के प्रभाव से सम्पर्क व्यवहार से, मत परिवत्तित करते गये और आज यह ज्ञाति जैन धर्म की सभी मत और सम्प्रदायों में ही विभाजित नहीं, वरन कुछ पल्लीवाल वैश्य वैश्णव भी हैं। जैसा अन्य प्रकरणों से सिद्ध होता है । इस जाति के प्राचीनतम उल्लेख श्वेताम्बरीय हैं और वे श्वेताम्बर ग्रंथों ज्ञान भण्डारों और मंदिरों में प्राप्त होते हैं । ___ मूल स्थान से सर्व प्रथम कौन निकला और कब निकला
और वह कहां, जा कर बसा यह बतलाना अत्यन्त कठिन है । फिर भी जो कुछ प्राप्त हुआ है वह निम्नवत् है।
यह सुनिश्चत है कि पालीवाल ब्राह्मण कुल वहां निस्कर कृषि करते थे। इस प्रकार उनको राज्य को कोई कर नहीं देना पड़ता था। अतिरिक्त इसके पल्लीवाल नैश्यों के ऊपर भी उनका निर्वाह का कुछ भार था ही । राज्य ने ब्राह्मणों से कर लेने पर बल दिया और नैश्यों ने उसकी पूत्ति करना अस्वीकार किया, बल्कि सदैव की जिम्मेदारी को उलटा घटाना चाहा और इस पर 'सहजरूष्ट' होने वाले स्वभाव के ब्राह्मण अपने सदियों के निवास पाली का एक दम त्याग करके चल पड़े। यह घटना वि० १७ वीं शताब्दी में हुई प्रतीत होती है। पल्लीवाल ब्राह्मण कुलों में पाली का त्याग करके निकल जाने की कथा उनके बच्चे बच्चे की जिह्वा पर है । इसी प्रसंग के घटना काल में पल्लीवाल
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