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किसी प्राचीन, अर्वाचीन विद्वान् ने नहीं सुझाया है। पाली को ही उसका उत्पत्ति-स्थान मान लिया गया है । पल्लीवाल गच्छ और पल्लीवाल ज्ञाति का मूल में प्रतिबोधक और प्रतिबोधित का सम्बंध रहा है। इस पर भी पल्लीवाल ज्ञाति का मूल उत्पत्ति-स्थान पाली ही ठहरता है । पल्लीवाल गच्छ विशुद्धतः श्वेताम्बर गच्छ है । पीछे से पल्लीवाल भिन्न गच्छ, सम्प्रदाय, मत अथवा वैष्णव धर्म अनुयायी बन गये हों, तो भी उनके पल्लीवाल नाम के प्रचलन में उससे कोई अन्तर नहीं पड़ सकता ।
पल्लीवाल ज्ञाति की उत्पत्ति भी अन्य जैन वैश्य ज्ञातियों के साथ- साथ ही हुई मानी जा सकती है। वैसे तो प्रोसवाल, पोरवाल और श्रीमाल ज्ञातियों की उत्पत्ति संबन्धी कुछ उल्लेख भ० महावीर के निर्वाण के पश्चात् प्रथम शताब्दि में ही होना बतलाते हैं; परन्तु पल्लीवाल गच्छ पट्टावलि जो वीकानेर वड़े उपाश्रय के वृहत ज्ञान भण्डार में हस्त लिखित प्राप्त हुई है उनमें १७ वे पाट पर हुए श्री यशोदेव सूरि ने वि० संवत ३२६ वर्ष वैशाख सुदी ५ प्रल्हाद प्रतिवोधिता श्री पल्लोवाल गच्छ स्थापना लिखा है । जैन ज्ञातियों के अधिकतर जो लेख - प्रतिमा, ताम्र पत्र पुस्तकें प्राप्त हैं । वे प्रायः नवीं और दसवीं शताब्दी और अधिकतर उत्तरोत्तर शताव्दियों के साथ साथ संख्या में अधिकाधिक पाये जाते हैं । अतः उनका विश्रुति में श्राना विक्रम की आठवीं शताब्दी और उनके तदनन्तर माना जाता है । इसी प्रकार पल्लीवाल प्राचीनतम लेख बारहवीं शताब्दी का वि० सं० १९४४ पाली में प्राप्त हुआ हैं ।
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