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इस पर भी यह कहना ठीक नहीं है कि पल्लीवाल ज्ञाति की उत्पत्ति इसी के समीपवर्ती या इसी शताब्दी में ही हुई हो।। ___आधुनिक प्रायः समस्त जैन ज्ञातियों का उद्भव राजस्थान में हुआ है। राजस्थान से ये फिर व्यक्ति, कुल, संघ के रूप में व्यापार धंधा, राजकीय निमन्त्रणों पर और राज्य परवर्तन, दुष्काल, धर्म संकट एवं अर्थोपार्जन के कारणों पर स्थान परिवर्तित करती रही हैं और धीरे-धीरे विक्रम की बारहवीं शताब्दी तक समस्त जन ज्ञातियाँ अपने मूल स्थान से छोटी बड़ी संख्या में निकल कर कच्छ, काठियावाड़, सौराष्ट, गुर्जर, मालवा, मध्य प्रदेश, संयुक्त प्रदेश बृज आदि भागों में भी पहुँच गई हैं। जिसके प्रचुर प्रमाण मूत्ति लेखों से, ग्रंथ प्रशस्तियों से एवं राज्यों के वर्णनों से ज्ञात होते हैं । पल्लो वाल ज्ञाति भी अन्य जैन ज्ञातियों की भांति कच्छ, काठियावाड़, सौरास्ट्र और गुर्जर में बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी तक और ग्वालियर, जयपुर, भरतपुर, अलवर उदयपुर, कोटा, करौली बृज, आगरा आदि विभागों के ग्राम, नगरों में विक्रम की चौदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी पर्यन्त कुछ-कुछ संख्या में और सोलहवीं एवं सतरहवीं शताब्दी में भारी संख्या में उपरोक्त स्थानों में व्यापार धंधा के पीछे पहुंची और यत्र तत्र वस गई । इसकी पुष्टि में इस लघु इतिहास में वरिणत पल्लीवाल ज्ञातीय बंधुओं द्वारा उक्त स्थानों में विनिर्मित जैन मंदिर ग्रंथ प्रशस्तियां और प्रतिष्ठित मूर्तियां प्रमाणों के रूप में लिये जा सकते हैं।
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