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पाली के श्रीमन्त वैश्यों से यवन शत्रुओं के विरूद्ध युद्ध में अर्थ सहायता एवं जन सहाय मांगा । और यह स्वीकार न करने पर उसने वैश्यों को पाली एक दम त्याग करके चले जाने की आज्ञा दी। यह भ्रामक एवं मिथ्या विचार है । तेरहवी शताब्दी में राव सीहा का पाली पर प्रभुत्व स्थापित हो चुका था। उसके वंशजों में से आज पर्यत किसी एक नृप को भी यवन सत्ता के विरूद्ध लड़ना न पड़ा । तब यवन शक्ति से लड़ने के लिये सहाय मांगने का विचार उठता ही नहीं। राव सीहा की सत्ता के पूर्व पाली पर जाबालिपुर के राजा का अधिकार था। राव सीहा के पूर्व पाली त्याग का प्रकरण नहीं बना । तब किसी नृप की यह आज्ञा कि पाली त्याग कर चले जानो उस समय की घटित वस्तु भी नहीं मानी जा सकती।
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