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पल्लीवाल ज्ञाति का प्रसार और उसके गोत्र
तथा
रीति रिवाज किसी भी समूची जाति का व्यवस्थित इतिहास निवास, स्थिति, धर्म, धंधा आदि की दृष्टियों से लिख देना अत्यन्त कठिन है पीर यह वांछनीय भी नहीं होता । जिनके जीवन में 'हास' की इति रही है अर्थात् जिन नरवरों ने सम्पूर्ण जीवन महान् संघर्ष झेल कर देश, धर्म, समाज अथवा पुर प्रान्त की सेवा की और अपने कुल को ऊपर उठा कर विश्रु त बनाया है उनका ही उल्लेख होता है ऐसे पुरूष ही इतिहास के पृष्ठ बनाते हैं। भारत में फिर केवल राजवंशों के अतिरिक्त अन्य वंश अवगणना को ही प्राप्त होते रहे हैं । और महाजन अथवा वैश्य वंश तो लगभग अधिकांश में अवगणित ही रहा है। केवल उन वैश्य कुलों का और उनमें भी उन पुरुषों का जो किसी राज कुल की सेवा में रहा, उससे प्रतिष्ठा प्राप्त की अथवा कोई तीर्थ या साहित्य की स्मरणीय सेवा की। कुछ-कुछ वर्णन अगर कही हो गया और मिल गया तो उनको इतिहास के पृष्ठों में व्यक्तिगत बैठा दिया जाता है । उनके साधारण पूर्वज और वंशजों का फिर कोई पता नहीं चलता। ऐसी बिषम स्थिति में किसी भी
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