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एवं जाति के प्रगाढ़ सम्बंध को दिखाने वाले कई प्रमाण उपलब्ध हैं जो प्रस्तुत इस लघु इतिहास में भी यत्र-तत्र आ गये है ।
पाली की प्राचीनता के साथ २ पल्लीवाल ज्ञाति की 'पल्लीवाल' नाम से प्रसिद्धि होने की बात समानान्तर सिद्ध नहीं की जा सकती । पाली नगर का नाम पाली क्यों पड़ा ? कब पड़ा ? आदि बातों को प्रमाणों से सिद्ध करना कठिन है 'पाली' का एक अर्थ तरल पदार्थ निकालने का, एक बर्तन विशेष जो पली, पला और पल्ली कहाते है । २ अर्थ है - प्रोढ़ने, विछाने अथवा अन्न, कपास की गांठ बांधने का चद्दर - पल्ली । ३ - अर्थ है - पक्ष । ४अर्थ है - छोटा ग्राम । ५ अर्थ है - अनाज
नापने का एक प्रकार का पात्र जिसे जालोर, भीनमाल, जसवंत - पुरा और साचोर के प्रगणों में पाली, पायली कहते हैं। आज भी वहां अन्न इसी पायली - माप से तो मापा जाता है जो मणों में पूरी उतरती है । चार पायली का एक माणा । चार माणा की एक सई और इसी प्रकार आगे भी माप है । अनुमानतः चार पायली अन्न का तोल लगभग साढ़े पांच सेर बंगाली बैठता है । यह पाली अथवा पायली माप ही पाली के नाम का कारण बना हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। पाली में और उसके समीपवर्ती भागों में अधिक बाजरी की कृषि होने के कारण इस तोल की ख्याति के पीछे 'पाली' नाम वर्तमान् पाली का पड़ गया हो; परन्तु यह भी अनुमान ही है । परन्तु इस में तनिक सत्यता का भास होता है । पाली में अन्न प्रचुरता से होता था और उसको पाली अथवा
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