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जिसकी प्रतिलिपि श्री आत्मानन्द अर्ध शताब्दी ग्रंथ में श्री नाहटा जी ने अपने लेख 'पल्लीवाल गच्छ पट्टावली' में दी है, मिलता है । उक्त संवत् कहाँ तक ठीक है, प्रमाणों के अभाव में कुछ निश्चित रुप से नहीं कहा जा सकता। इतना अवश्य प्रमाणिक
आधार पर लिखा जा सकता है कि पल्लोवाल गच्छ का अब तक प्राप्त प्राचीनतम मूत्ति लेख पाली में प्राप्त वि० सं० ११४४, ११५१ और १२०१ हैं। उक्त लेखों में पल्लिकीय प्रद्योतन सूरि का नाम स्पष्ट हैं । प्राचीनता और नाम साम्य के कारण . पल्लीवाल गच्छ का पाली और पल्ली वाल ज्ञाति से गहरा संम्बंध माना जा सकता है, परन्तु यह मानना कि पल्लीवाल ज्ञाति पल्लीवाल गच्छीय प्राचार्य साधु मुनियों की ही अनुरागिनो अथवा इनको ही गुरु रूप से मानने वाली रही, ठीक नहीं। उपकेश गच्छा चार्य द्वारा प्रति बोधित उपकेश ओसवालों में जैसे कई गच्छ परम्परा की मान्यतायें प्रचलित हैं, ठीक उसी प्रकार पल्ली वाल गच्छ द्वारा प्रतिवोधित पल्लीवाल ज्ञाति में भी कई गच्छ मान्यतायें पायी जाती हैं और यह पल्लीवाल ज्ञातिय पुरुषों द्वारा प्रतिष्ठित मूत्ति मंदिर लेखों व प्रशस्तियो से भली भाँति स्पष्ट है । प्रादि में तीनों में घनिस्ट संबंध था, यह वस्तुतः मान्य है। पल्लीवाल गच्छाचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें और मंदिर अन्य जैन ज्ञातियों जैसे ओसवाल, श्रीमाल आदि के प्रकरणों, बृत्तों में भो उल्लिखित प्राप्त होते हैं। अतः पल्लीवाल गच्छ और पल्लीवाल ज्ञाति में परस्पर पाम्नाय रूड़ता एवं व्यामोह का मानना अप्रमाणिक एवं अनुचित हैं। .
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