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वह भी भयंकर रूप से नहीं । मारवाड़ राज्य के उस समय के इस समृद्ध पाली नगर का अगर ऐसा भयंकर विध्वंश हुआ होता अथवा इस प्रकार पूर्णतः खाली कर दिया गया होता तो वसी घटना का कुछ तो उल्लेख जोधपुर राज्य के इतिहास में मिलता, घटना बढ़ा चढ़ा कर कवित्तों में पिरोई गई है। पाली का त्याग करके ब्राह्मण दक्षिण पश्चिम दिशा में गये और वैश्य पूर्व उत्तर दिशा में; यह ठीक भी है। पल्लीवाल वैश्य आज भी मारवाड़ के उत्तर पूर्व में आये हुये अलवर, जयपुर, भरतपुर, ग्वालियर राज्यों तथा संयुक्त प्रान्त में अधिक बसे हुए हैं और पल्लीवाल ब्राह्मण उदयपुर, जैसलमेर, बीकानेर राज्यों और उनके निकट वर्ती भागों में । वैसे तो दोनों वर्गों के थोड़े-थोड़े घर तो राजस्थान की एवं मालवा, मध्य भारत की सर्वत्र भूमियों में पाए जाते हैं जो धीरे-धीरे व्यापार, कृषि धंधा आदि की दृष्टियों एवं अन्य सुविधाओं से आकर्षित हो-होकर जा बसे हैं। मेवाड़ में पल्लीवाल ब्राह्मणों को नन्दवाना बोहरा भी कहते हैं।
पाली और पल्लीवाल ज्ञाति का जैसा परस्पर सम्बंध पाया जाता है। वैसा ही पल्लीवाल पल्लिकीय गच्छ का भी इन दोनों के साथ पाया जाता है । पल्ली गच्छ की स्थापना पाली नगर में भगवान महावीर के पट्ट पर १७ वें आचार्य जसो (यशो) देव सूरि द्वारा सं ३२६ वैशाख शु० ५ को हुई । उक्त संवत् बीकानेर के बड़े उपाश्रय के ज्ञान भन्डार में प्राप्त एक अप्रकाशित पल्ली वाल गच्छ पट्टावली में जो श्री नाहटा जी को प्राप्त हुई थी और
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