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राठौड़ राजकुल की
और उन्हीं वर्षों में
ऐसा कोई विश्वासनीय उल्लेख अभी तक प्राप्त नहीं हुआ। और इस समय तो पाली राठौड़ वीरवर रावसीहा की सुरक्षा में आ चुका था । विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में राजधानी मंडोर से जोधपुर आ गई थी जोधपुर राज्य का प्रबंध भी समुचित ढंग से सुदृढ़ बनाया गया था । इस राज्य सुव्यवस्था के स्थापना काल में यह संभव है कि पाली के ब्राह्मण कुल राजा से अप्रसन्न हो गये हों । पाली में वैसे तो एक लाख ब्राह्मण घरों का होना बताया जाता है; परन्तु यह संख्या मानने में नहीं आ सकती । हाँ इतना अवश्य सत्य है कि पल्लीवाल कहे जाने वाले आज के ब्राह्मण अधिक से अधिक संख्या में पाली में ही बसते थे और वैश्यों में भी उनमें से अति समृद्ध घर तो ब्यापार करते थे और शेष कृषि का कार्य करते थे। पाली की समस्त कृषि योग्य भूमि पर ब्राह्मणों का एक छत्र अधिकार था । अन्य कृषक जातियों के अधिकार में कृषि योग्य भूमि नाम मात्र को थी । राज्याधिकारियों ने ब्राह्मण कुलों से भूमि लेकर अन्य कृषक लोगों को देने का प्रयत्न किया हो और उस पर ये ब्राह्मण कुल अप्रसन्न होकर संगठित रूप से पाली का त्याग करके चले गये हों । यह कारण इस लिये अधिक माना जा सकता है कि प्राचीन कालों में ब्राह्मरण कृषि कर नहीं देते थे और प्रायः राजागरण भी इनसे कोई कर नहीं लिया करते थे । पाली जैसे समृद्ध ब्यवसायी नगर पर राज्य को व्यय अधिक करना पड़ता ही था और उसके बदले में अगर कुछ भी
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