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कभी भयंकर हिन्दू-विधर्मी शत्रुओं द्वारा कोई भयंकर आक्रमण हुआ हो, जिसके दुखद परिणाम में पाली के निवासियों को पाली सदैव के लिये त्याग कर जाना पड़ा हो। राव सीहा ने पाली में विक्रमीय तेरहवीं शताब्दी के अंतिम भाग में अपना प्रभुत्व भली भांति जमा लिया था और उसी राव सीहा के वंशजों के अधि कार में आज तक पाली चला आता रहा । इससे यह तो सिद्ध हो गया कि ऐसा भयंकर प्रकोप पाली पर विक्रम की तेरहवीं शताब्दी पश्चात् तो नहीं हुआ। ऐसा प्रकोप इसके पूर्व हुआ तो वह भी मानने में नहीं आ सकता । गज़नवी और गौरी के आक्रमणों के पूर्व तो कोई हिन्दू-बिरोधी शत्रु का आक्रमण राजस्थान में हुआ नहीं सुना अथवा पढ़ा गया। इन दोनों के आक्रमणों के स्थान, संवत्, मार्गो की आज इतिहासकारों ने पूरी-पूरी शोध कर के अपनी कई रचनायें इतिहास के क्षेत्र में प्रस्तुत कर दी हैं; परन्तु उनमें कहीं भी पाली पर आक्रमण करने का अथवा आक्रमण के प्रसंग में मार्ग में पाली को विध्वंसित कर देने का कोई वर्णन पढ़ने में अथवा जानने में नहीं आया कि अमुक सैनिक पदाधिकारी द्वारा किये गये अत्याचारों एवं धर्मभ्रष्ट व्यवहारों के कारण पल्लीवालों को पाली छोड़ कर जाना पड़ा हो । गौरी और उसके सैनिक अथवा उच्चाधिकारी सेना नायक अजमेर से आगे बढ़े ही नहीं । गुलाम वंश के शासन काल में जालौर पर, मंडोर पर इल्तुतमिस ने वि० सं० १२६५-६६ में आक्रमण अवश्य किया था; परन्तु पाली को भी नष्ट किया हो
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