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वाड़, सौराष्ट्र, उत्तर गुर्जर पत्तन के प्रदेशों में सर्वत्र फैल चुके, थे। प्रस्तुत इतिहास में वर्णित कई पुरूष परिचयों से यह विश्वास किया जा सकता है। राजस्थान के जयपुर, भरतपुर, अलवर राज्यों में व उत्तर प्रदेशमें आगरा ग्वालियर मथुरा विभागों में भी पल्लीवाल वैश्य कुल विक्रम की १५ - १६ वीं शताब्दी पर्यन्त भरपूर फैल चुके थे। इसके प्रमाण में भी वर्तमान प्रस्तुत इस लघु इतिहास में कुछ प्रसंग आये हैं। ___ एक दन्त - कथा के अनुसार पाली को वहां के समस्त पल्लीवाल वैश्य और ब्राह्मणों को अकस्मात् भारी धर्म संकट आ उपस्थित होने पर छोड़ कर चला जाना पड़ा था । जाना ही नहीं पड़ा; परन्तु साथ ही यह शपथ लेकर कि कोई भी पल्वीवाल अपने को अपनी पिता की सच्ची संतान मानने वाला, लौट कर पाली में नहीं बसेगा और वहाँ का अन्न-जल ग्रहण नहीं करेगा । हमको तो यह कथा पीछे से जोड़ दी गयी प्रतीत होती है ऐसी घटना पाली में विक्रमीय १७ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में घटी उल्लिखित मिलती है। किन्तु इस शताब्दी में तो पाली पर जोधपुर राठौड़ हिंदू राजवंश का शक्तिशाली यवनशासकों द्वारा पूर्ण सम्मानित राज्य था । हिन्दू राज्य में हिन्दुओं को कोई धर्म-संकट उत्पन्न होना-माना नहीं जा सकता और जो हिन्दू-राज्य यवन-सम्राटों द्वारा समर्थित हो, पूर्व सम्मानित हो तो वैसे हिन्दू राज्य में भी कोई धर्म-संकट उपस्थित हो जाना केवल गप्प हैं। इतिहास में भी कहीं ऐसा हुआ प्रतीत नहीं होता कि पाली पर
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