________________
श्रीमंतों की सुरक्षा की नितान्त आवश्यकता थी। पाली उस समय समृद्ध नगरों में अग्रगण्य तो था; परन्न राजधानी नगर नहीं था। पाली को राजा की उपस्थिति अत्यन्त आवश्यक थी । जाबालिपुर का राजा जाबालिपुर में रहता था और पाली धन व्यापार में जाबालिपुर से भी अधिक समृद्ध था। पाली के आस पास छोटेछोटे जागीरदार भूमिपति बालेचा चौहान रहते थे और वे अवसर देखकर पाली को, पाली के व्यापार को, मार्ग में व्यापारयों को भांति-भांति की हानियाँ पहुँचाया करते थे। ठीक ऐसे ही विषम काल में रावसीहा अपने कुछ वीरवर साथियों के साथ इधर पाली होकर जा रहे थे । पाली निवासी प्रतिष्ठित पुरुषों ने रावसीहा को सर्व प्रकार योग्य वीर न्यायी समझ कर पाली में अपना राज्य स्थापित करने की प्रार्थना की। रावसीहा इस अवसर की शोध में तो थे ही । इस प्रकार उन्होंने सहज ही पाली में अपना राज्य स्थापित किया। राव सीहा अपने अन्तिम समय तक पाली में ही राज्य करते रहे । जालौर परगना के बीठू ग्राम में वि० सं० १३३० का० कृ० १२ सोमवार का देवल शिला लेख रावसीहा की मृत्यु तिथि का प्राप्त हुआ है । बीठू पाली से १४ मील उत्तर पश्चिम में है। __पल्लीवाल कहे जाने वाले ब्राह्मण कयों के अतिरिक्त बढई, छीपी, लोहार, स्वर्णकार आदि भी भारत के भिन्न-भिन्न भागों में (१) अोझा कृत राजस्थान जोधपुर राज्य का इतिहास
देखें।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org