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स्वर्गीय लोढाजी ने इस इतिहास में इसका जिकर पृष्ठ ६७-६८ में किया है, लेकिन वहां जै० पु0 प्र0 सं0 प्र० ११ पृष्ठ १४ सूचित किया है, मालूम होता है पट्टन भं० ग्रन्थ सूची मुख्य आधार-स्थल को वे न देख सके।
वि० संवत् १३२६ श्रा० व० २ सोम के दिन धवलकक (घोलका गुजरात ) में, अर्जुनदेव महाराज के राज्य-काल में, महामात्य श्री मल्लदेव के समय में, स्तम्भ तीर्थ ( खंभात ) निवासी पल्लीवाल ज्ञातीय भण लीलादेवी ने अपने श्रेयोऽर्थ महापुरुष-चरित्र पुस्तक (ताडपत्रीय ) लिखाया था, जो वर्तमान में श्री विजयनेमिसूरिजी के शास्त्र-संग्रह-भण्डार अहमदाबाद में है । इसके मुख्य आधार से शीलांकाचार्य का यह प्राकृत ग्रन्थ चउप्पन्न महापुरुष-चरित्र हाल में प्राकृत ग्रन्थ परिषद् ( प्राकृत टेक्स सोसायटी ) ग्रन्थ ३ वाराणसी से प्रकाशित हुआ है। इसके पृ० ३३५ की टि० ६ में उपर्युक्त पुस्तक का अन्तिम उल्लेख दिखलाया है। ., स्वर्गीय लोढाजी ने इस इतिहास के पृ० ७२ में, सिर्फ वर्धमान स्वामी चरित्र की प्रति का निदर्देश किया है। वह उपर्युक्त पुस्तक समझना चाहिए। "पुण्यागण्य गुणान्वितोऽ तिविततस्तुगः सदा मंजुलः,
छाया-श्लेषयुतः सुवर्णकलितः शाखा–प्रशाखाकुलः । पल्लीपाल इति प्रभूत महिमा ख्योतः क्षितौ विद्यते, - वंशो वंश इवोच्चकैः क्षितिभतो मूनोपरिष्ठात स्थित :
भावार्थ-पल्लीपाल (वाल ) वंश, वंश ( वृक्ष ) की तरह, पुण्य से अगणित गुणों से युक्त है, अति विस्तृत, ऊंचा, और सदा मनोहर है, छाया-संयोग से युक्त, सुवर्ण से शोभता, तथा शाखा-प्रशाखाओं से
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