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विषय
पृ.सं. | तीसरा अधिकार (३६-६१) संसार अवस्था का स्वरूप निर्देश टुःखों का मूल कारण : कर्म
३६ शक्ति हीनता से इच्छानुसार विषय न भोग |.
सकने से दुःख ज्ञानदर्शनावरण के उदय से उत्पत्र दुःख और
उसकी निवृत्ति के उपाय का मिथ्यापना ४१ दुःखनिवृत्ति का सच्या उपाय दर्शनमोह से दुःख और उसकी निवृत्ति के
उपाय का झूठापना चारित्रोह के उन से दुगा की प्राप्ति ।
तथा उसकी निवृत्ति के उपाय का झूठापना १४ अन्तराय से दुःख की प्राप्ति और उसकी
निवृत्ति का सच्चा उपाय वेदनीय, आयु, नाम, गोत्र से होने वाला
दुःख और उससे निवृत्ति पायों की अपेक्षा दुःग्य एकेन्द्रिय जीवों के दुःख दो इन्द्रियादिक जीवों के दुःख नरकगति के दुःख तियंचगति के दुःख मनुष्यगति के दुःख देवगति के दुःख दुःख का सामान्य स्वरूप दुःखनिवृत्ति का उपाव सिद्ध अवस्था में दुःख के अभाव की सिद्रि ५ चौथा अधिकार (६२-७६) पिय्यादर्शन, मान, चारित्र का निरूपण मिथ्यादर्शन का स्वरूप प्रयोजन-अप्रयोजनभूत पदार्थ पिथ्यादर्शन की प्रवृत्ति
विषय मिथ्याज्ञान का स्वरूप मिथ्यानान में ज्ञानावरण कारण नहीं है मिथ्यादर्शन और ज्ञान का पौर्वापर्य मिथ्याचारित्र का स्वरूप इष्ट-अनिष्ट की कल्पना मिथ्या है रागद्वेष की प्रवृत्ति पाँचवाँ अधिकार (८०-२६) विविध मंत-समीक्षा गृहीत मिथ्यात्व का निराकरण सर्वव्यापी अद्वैत ब्रह्म का निराकरण ब्रह्म की इच्छा से जगत् के सृष्टिकर्तृत्व
का निराकरण ब्रह्म की माया का निराकरण जीवों की चेतना को ब्रह्म की चेतना
मानने का निराकरण शरीरादिक को मायारूप मानने का निराकरण तीन गुणों से तीन देवों की उत्पत्ति का
निराकरण 'लीला से सृष्टिरचना' का निराकरण 'जीवों के निग्रह-अनुग्रह के लिए सृष्टि-रचना'
का निराकरण ब्रह्मा-विष्णु-महेश का सृष्टि का कर्सा, रक्षक
और संहारकपने का निराकरण लोक की अनादिनिधनता ब्रह्म से कुलप्रवृत्ति आदि का प्रतिबोध अवतार मीमांसा श्राद्धनिषेध यज्ञ में पशुहिंसा का प्रतिषेध भक्तियोग मीमांसा ज्ञानयोग मीमांसा पवनादि साधन द्वारा ज्ञानी होने का प्रतिषेध ६६ अन्यमतकल्पित मोक्षस्वरूप की मीमांसा १००