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का उपाय करि सकै है अर पुरुषार्थ न करे है सो मोक्ष का उपाय न कर सके है। उपदेश तो शिक्षा मात्र है, फल पुरुषार्थ करे तैसा लागे । (पृष्ठ - २३७)
( ३६ ) बहुरि जब कर्म का उदय तीव्र होय, तब पुरुषार्थ न होय सकै है। ऊपरले गुणस्थाननितें भी गिर जाय है। तहाँ तो जैसा होनहार होय तैसा ही होय । परन्तु जहाँ मन्द उदय होय अर पुरुषार्थ होय सकै, तहाँ तो प्रमादी न होना- सावधान होय अपना कार्य करना । (पृष्ठ - २६६ )
( ३७ ) तत्त्वश्रद्धान ज्ञान बिना तो रागादि घटाए मोक्षमार्ग नाहीं अर रागादि घटाए बिना तत्त्वश्रद्धानज्ञानर्तें भी मोक्षमार्ग नहीं। तीनों मिले साक्षात् मोक्षमार्ग हो है । (पृष्ठ २७२ )
(३८) पहिले तो देवादिक का श्रद्धान होय, पीछे तत्त्वनि का विचार होय, पीछे आपा पर का चितवन करे, पीछे केवल आत्मा को चिन्तवै । इस अनुक्रम तें साधन करें तो परम्परा सांचा मोक्षमार्ग को पाय कोई जीव सिद्धपद को भी पावै । (पृष्ठ २८३)
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( ३६ ) सम्यक्त्व का अर्थी इनि कारणनि को मिलावे, पीछे घने जीवनिकै तो सम्यक्त्व की प्राप्ति
होय ही है। काहू कै न होय तो नाहीं भी होय । परन्तु याको तो आप बने सो उपाय करना । (पृष्ठ २८४)
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