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करे है, तो त्याग करने का भी उद्यम करना युक्त ही है। ...काहे को स्वच्छन्द होने की युक्ति बनावै है। बने सो प्रतिज्ञा कार व्रत धारना योग्य ही है। (पृष्ठ-१६८)
(२५) जहाँ शुद्धोपयोग होता जाने, तहाँ तो शुभ कार्य का निषेध ही है, अर जहाँ अशुभोपयोग होता जानै तहाँ शुम को उपाय करि अंगीकार करना युक्त है। (पृष्ठ-१६६)
(२६) बहुरि चौथा गुणस्थान विषै कोई अपने स्वरूप का चिन्तवन करै है, ताकै भी आस्रव बन्ध अधिक है, वा गुणश्रेणी निर्जरा नाही है। (पृष्ट १७२, १६०)
(२७) स्वद्रव्य-परद्रव्य का चिंतदननै निर्जराबंध नाहीं। रागादिक घटै निर्जरा है, रागादिक भए बन्ध है। (पृष्ठ-१७२)
(२८) ज्ञानी जननि के उपवासादि की इच्छा नाहीं है, एक शुद्धोपयोग की इच्छा है। उपवासादि किए शुखोपयोग बधै है, ताः उपवासादि करै हैं। (पृष्ठ-१८६)
(२६) मिथ्यात्व समान अन्य पाप नाहीं है। मिथ्यात्व का सद्भाव रहे अन्य अनेक उपाय किये भी मोक्षमार्ग न होय। तातै जिस-तिस उपाय करि सर्व प्रकार मिथ्यात्व का नाश करना योग्य है। (पृष्ठ-२३०)
(३०) वात्सल्य अंग की प्रधानता कारे विष्णुकुमार जी की प्रशंसा करी । इस छलकरि औरनि को ऊँचा धर्म छोड़ि नीषा धर्म अंगीकार करना योग्य नाहीं। (पृष्ठ-२३७)
(३१) जैसे गुवालिया मुनि को अग्नि कर तपाया सो करुणाः यह कार्य किया... तात याकी प्रशंसा करी। इस छलकरि औरनि को धर्मपद्धतिविष जो विरुद्ध होय सो कार्य करना योग्य नाहीं। (पृष्ठ-२३७)
(३२) करणानुयोगविषै तो यथार्थ पदार्थ जनावने का मुख्य प्रयोजन है। (पृष्ठ-२४०)
(३३) बाह्य संयम साधन बिना परिणाम निर्मल न होय सके हैं। तातै बाह्य साथन का विधान जानने को चरणानुयोग का अभ्यास अवश्य किया चाहिए। (पृष्ठ-२५१)
(३४) ताते जो उपदेश होय ताको सर्वथा न जानि लेना। उपदेश का अर्थ को जानि तहाँ इतना विचार करना, यहु उपदेश किस प्रकार है, किस प्रयोजन लिए है, किस जीव को कार्यकारी है?... (पृष्ठ-२५८)
(३५) बहुरि पुरुषार्थत उद्यम करिए है, सो यहु आत्मा का कार्य है। तातें आत्मा को पुरुषार्थकरि उद्यम करने का उपदेश दीजिए है।... जो पुरुषार्थ करि मोक्ष का उपाय करै है, ताकै सर्वकारण मिले हैं, रोग्य निश्चय करना अर वाकै अवश्य मोक्ष की प्राप्ति हो है।... जो उपदेश सुनि पुरुषार्थ करै है, सो मोक्ष