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उपरिचरवसु
(४४)
उम्लोचा
सिद्धिके हेतु याजके समीप जाने के लिये उन्हें आदेश देना। यज्ञशिष्ट अन्नके भोक्ता, सत्यपरायण और अहिंसक थे, (आदि० १६६। १३-२०) । इनके द्वारा याजकी इन्होंने सब कुछ भगवान्को समर्पित कर दिया था। इन्हें हीन वृत्तिका वर्णन (आदि. १६६ ।।५-१९)। इन्द्रदेव अपने साथ एक शय्या और आसनपर बिठाते थे द्रोगविनाशक पुत्रेष्टि-यज्ञमें सहयोग देने के लिये इनको (शान्ति०३३५ । १७-२६)। इनके यज्ञका आरम्भ याजकी प्रेरणा ( आदि० १६६ । ३२)। (याज और) (शान्ति. ३३६ । ५ ) । इनके यज्ञकी समाप्ति उपयाजकी तपस्यासे द्रपदको द्रौपदी एवं धृष्टद्युम्नकी (शान्ति० ३३६ । ६.)। अजका अर्थ बकरा बतानेके प्राप्ति (सभा.८.। ४५)।
कारण ऋषियों के शापसे इनका पातालमें प्रवेश (शान्ति. उपरिचरवसु-एक प्राचीन पुरुवंशी राजा, जो नित्य धर्म
३३७ । १३-१६)। देवताओंद्वारा इन्हें वर-प्राप्ति परायण थे (आदि० ६३ ।।) । इन्द्र की आज्ञासे
(शान्ति• ३३७ । २४-२७)। भगवत्कृपासे गरुडने उन्होंने चेदिदेशका राज्य स्वीकार किया (आदि. ६२ ।
इन्हें आकाशचारी बनाया (शान्ति० ३३७ । ३७)। २)। इन्द्र के द्वारा इनके प्रति चेदिदेशकी प्रशंसा (आदि. इनका ब्रह्मलोकगमन (शान्ति० ३३७ । ३८)। ६३ । ८-११) । देवराजद्वारा इन्हें सर्वज्ञ होनेका वर- उपवेणा-एक नदी, जो अग्निकी जननी मानी जाती है दान (आदि० ६३ । १२) । इनको देवेन्द्रके द्वारा ( किसी-किसीके मतमें यह सम्भवतः दक्षिणभारतकी दिव्य विमान, बाँसकी छडी एवं वैजयन्तीमालाकी भेंट कृष्णवेणा या कृष्णा नामक नदीकी एक शाखा है।) (आदि०६३ । १३-७)। इनका बाँसकी छडीको (वन० २२२ । २४ )। धरतीमें गाड़कर इन्द्रपूजाकी प्रथा चलाना (आदि०६३। उपश्रुति-उत्तरायणकी अधिष्ठात्री देवी। इन्होंने ही कमल१८-१९)। हंसका स्वरूप धारण करके इन्द्रका इनकी नालकी ग्रन्थिमै इन्द्राणीको इन्द्रका दर्शन कराया था की हुई पूजा ग्रहण करना एवं अपनी पूजाका महत्त्व बत- (आदि. १६६ । ५६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ लाना ( आदि० ६३। २२-२५ )। उपरिचरवसुने ४८३)। इनकी सहायतासे शचीकी इन्द्रसे भेंट (उद्योग चेदिदेशमें ही रहकर इस पृथ्वीका धर्मपूर्वक पालन किया १४ । १२-१३)। (आदि०६३।२८)।इनके बृहद्रथ, प्रत्यग्रह, कुशाम्बु, उपसन्ध-निकम्भ दैत्यका पुत्र । सुन्दका भाई। ये दोनों माबेल्ल तथा यदु नामके पाँच पुत्र थे (आदि० ६३ ।
भयंकर और क्रूर हृदयके थे (आदि० २०८ । २-३)। ३०-३१ )। इनका उपरिचर' नाम होनेका कारण
इन दोनों भाइयोंके पारस्परिक प्रेमका वर्णन (आदि. (आदि० ६३। ३४ ) । इनकी राजधानीके समीप
२०८ । ४-६)। त्रिभुवनपर विजय पानेके लिये विन्ध्यप्रसिद्ध नदी 'शुक्तिमती' बहती थी (आदि०६३ । ३५)।
पर्वतपर इन दोनों की उग्र तपस्या (आदि० २०८।७)। इनके द्वारा कोलाहल, पर्वतपर पैरसे प्रहार ( आदि.
इनकी तपस्या में देवताओंका विघ्न डालना ( आदि. ६३ । ३६)। इनके द्वारा शुक्तिमतीकी पुत्री गिरिका'
२०८ । ११)। इन दोनोंको अपने भाईके अतिरिक्त का पाणिग्रहण (आदि० ६३ । ३९)। पितरोंकी आज्ञा
किसी दूसरेसे न मरने का ब्रह्माजीद्वारा वरदान (आदि. का पालन करने के लिये हिंसक पशुओंको मारनेके हेतु इनका
२०८ । २४-२५)। त्रिभुवन में इन दोनों के अत्याचार वनमें जाना ( आदि०६३ । ४१-४२)। श्येनपक्षीके
(आदि० २०९ अध्याय)। तिलोत्तमाके कारण इन द्वारा आनी पत्नी गिरिकाके लिये इनके द्वारा अपना दोनों भाइयोंकी एक-दसरेके हाथसे गदायुद्ध में मृत्यु वीर्य भेजना (आदि०६३ । ५४)। बाजोंके पारस्परिक (आदि० २११ । १९)। युद्धसे इनके वीर्यका यमुनाजीमें गिर जाना ( आदि.
उपावृत्त-भारतवर्षका एक जनपद (भीष्म०९ । ४८)। ६३ । ५८)। यमुनाजीमें गिरे हुए इनके वीर्यसे मत्स्यरूपधारिणी 'अद्रिका' नामक अप्सराद्वारा सत्यवती' एवं ।
उपेन्द्र भगवान् विष्णुका एक नाम (अनु. १४९ । 'मत्स्य' राजाका जन्म (आदि० ६३ । ५०-६१)। मछलीके पेटसे उत्पन्न हुए 'मत्स्य' नामक बालकका उपेन्द्रा-एक नदी, जिसका जल भारतके लोग पीते हैं इनके द्वारा ग्रहण एवं सत्यवतीको मल्लाहके हाथमें सौंपना (भीष्म० ९ । २७)। (आदि०६३ । ६३-६७)। यमकी सभामें ये विराज- उमा-पार्वती देवी (वन. ३७ । ३३ ) (विशेष पार्वती' मान होते हैं (सभा०८।२०)। ये इन्द्रके सखा, शब्द देखिये।) नारायणके भक्त, धर्मात्मा, पितृभक्त तथा आलस्यरहित उम्लोचा-एक अप्सरा, जो अर्जुनके जन्म-महोत्सवपर अन्य थे, श्रीनारायणदेवके वरसे इन्हें साम्राज्य प्राप्त हुआ था. अप्सराओंके साथ नाचने-गाने आयी थी (आदि. वे वैष्णवशास्त्रके अनुसार भगवान्का पूजन करते थे, १२२ । ६५)।
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