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कृतवर्मा
( ७७ )
कृतशौच
कृतवर्मा-यदुकुलके अन्तर्गत भोजवंशी हृदिकका पुत्र, जो से भागना (द्रोण० १९३ । १३)। सात्यकिद्वारा भगवान् श्रीकृष्णका अनुरागी एवं आज्ञापालक था इसकी पराजय (द्रोण. २०० । ५३)। इसके द्वारा (आदि० ६३ । १०५)। यह मरुद्गणोंके अंशसे उत्पन्न शिखण्डीकी पराजय (कणे० २६ । ३६-३७)।धृष्टद्युम्न हुआ था (आदि० ६७ । ८१)। इसका द्रौपदीके द्वारा इसका मूञ्छित किया जाना (कर्ण० ५४ । ४० के स्वयंवरमें पदार्पण (आदि. १८५ । १८)। यह बाद दा० पाठ )। इसके द्वारा उत्तमौजाकी पराजय सुभद्राके लिये उपहार-सामग्री लेकर खाण्डवप्रस्थमैं गया (कर्ण० ६१ । ५९)। भीमसेनके साथ युद्धमें भागना था (आदि० २२० ।३१)। यह युधिष्ठिरकी सभामें (शल्य० ११। ४५-६७ )। सात्यकिद्वारा इसकी विराजमान होता था (सभा० ४ । ३०)। यह वृष्णि- पराजय (शल्य. १७ । ७७-७८; शल्य. २१ । २९वंशके सात महारथियोंमेंसे एक था (सभा० १४ । ३०)। युधिष्ठिरद्वारा पराजय (शल्य. १७ । ८७)। ५८)। उपप्लव्य नगरमें अभिमन्युके विवाहमें उपस्थित द्वैपायन सरोवरपर जाकर दुर्योधनको युद्धके लिये उत्साहित हुआ था (विराट. ७२ ॥ २१) । पाण्डवोंकी ओरसे करना (शल्य० ३० । ९-१४)। सेनासहित युधिष्ठिरइसको रणनिमन्त्रण भेजा गया था ( उद्योग०४१ १२)। के पहुँचनेपर इसका वहाँसे हट जाना (शल्य. ३० । दुर्योधनके माँगनेपर एक अक्षौहिणी सेनाकी सहायता देना ६३)। अश्वत्थामाके साथ रातमें सौतिक युद्ध के लिये (उद्योग. ७ । ३२)। इसका सेनासहित दुर्योधन- जाना (सौप्तिक० ५। ३८)। रातमें शिविरसे भागे की सहायतामें जाना (उद्योग० १९ । १७)। सात्यकि- हुए योद्धाओंका इसके द्वारा वध (सौप्तिक० ८।१०६. के कहनेसे श्रीकृष्णकी रक्षाके लिये कौरवसभाके द्वारपर १०७) । पाण्डवोंके शिविरमें इसका आग लगाना उसका सेनासहित डट जाना ( उद्योग० १३०। १०. (सौप्तिक०८।१०९-११०)। धृतराष्ट्रको दुर्योधन११)। यह कौरवपक्षका अतिरथी वीर था ( उद्योग के मारे जानेका समाचार बताकर इसका अपने देशकी १६५ । २४ ) । प्रथम दिनके युद्धमें इसका सात्यकिके ओर जाना (स्त्री० ११ । २१)। युधिष्ठिरके अश्वमेधसाथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ४५ । १२-१३)। अभिमन्यु- यज्ञमें सम्मिलित होनेके लिये भगवान् श्रीकृष्णके साथ के हाथों यह घायल हुआ था (भीष्म० ४७ १०)। कृतवर्माका भी आगमन (आश्व०६६ । ३-४ ) । भीष्मद्वारा निर्मित क्रौञ्चारुणव्यूहमें मस्तककी जगह खड़ा सात्यकिद्वारा मौसल-युद्धमें इसका वध (मौसल. ३ । किया गया था ( भीष्म० ७५ । १७) । भीमसेन- २८)। स्वर्गमें जानेपर इसका मरुद्गणोंमें प्रवेश (स्वर्गा० द्वारा इसका पराजित होना (भीष्म० ८२ । १)। ५। १३ )। सात्यकिद्वारा इसका घायल होना ( भीष्मः १०४। महाभारतमें आये हए कृतवर्माके नाम-आनर्तवासी, १६) । धृष्टद्युम्न के साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११०। भोज, भोजराज, हार्दिक्य, हृदिकसुता हदिकात्मज, ९-१०, भीष्म० १११।४०-४४)। भीमसेन और माधव, सात्वत, वाष्र्णेय, वृष्णि, वृष्णिसिंह आदि । अर्जुनके साथ युद्ध (भीष्म० ११३, ११४ अध्याय)। कृतवाक-अजातशत्रु युधिष्ठिरका आदर करनेवाले एक सात्यकिके साथ युद्ध (द्रोण० १४ । ३५-३६; द्रोण. महर्षि ( वन० २६ । २४)। २५ । ८.९)। अभिमन्युपर प्रहार और उसके घोड़ोंको कृतवीर्य-(१) सोमवंशी राजा अहंयातिके श्वशुर, भानुमार डालना (द्रोण० ४८ । ३२) । अभिमन्युपर मतीके पिता (आदि. ९५ । १५)। (२) भूमण्डलआक्रमण करनेवाले छः महारथियोंमें एक यह भी था के एक सुप्रसिद्ध प्राचीन राजा, जो कार्तवीर्यके पिता और (द्रोण० ७३ । १०)। अर्जुनके साथ युद्ध और उनके वेदज्ञ भृगुवंशियोंके यजमान थे (आदि. १७७॥ ११)। प्रहारसे इसका मूछित होना (द्रोण० ९२।१६-२६)। इनके द्वारा सोमयज्ञ करके भृगुवंशियोंके लिये विपुल इसका युधामन्यु और उत्तमौजाके साथ युद्ध (द्रोण. धनराशिका दान (आदि० १७७ । १३)। ये यमराज९२ । २७-३२)। सात्यकिके साथ युद्ध (द्रोण. की सभाके एक सदस्य हैं (सभा०८।९)। माहिष्मती ११३ । ४६-५८)। भीमसेनको आगे बढनेसे रोकना नगरीका राजा अर्जुन इन्हीं कृतवीर्यका ज्येष्ठ पुत्र था (द्रोण० ११३ । ६४-६७) भीमसेन और शिखण्डी- (सभा०३८ । २९ के बाद दा० पाठ,पृष्ठ ७९१,कालम २)। को परास्त करके इसका पाण्डव-सेनाको खदेड़ना (द्रोण. कृतवेग-एक पुण्यात्मा एवं बहुश्रत राजर्षि, जो यमसभाको ११४ । ५९-१०३ )। सात्यकिद्वारा इसकी पराजय सुशोभित करते हैं (सभा०८।९)। (द्रोण. ११५ । १०-११; द्रोण. ११६ । ४१)। क्रतशौच-कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ जाने और युधिष्ठिरके साथ युद्ध और उन्हें परास्त करना (द्रोण तीर्थ सेवन करनेसे पुण्डरीक-यज्ञका फल प्राप्त होता १६५ । २४-४०)। द्रोणाचार्यके मारे जानेपर युद्धस्थल- है (वन० ८३ । २१)।
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