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तित्तिरि
( १३१ )
तुषार
भयानक मुखसे उत्पन्न हुए थे ( उद्योग० ९ । ४१)। युद्ध किया था (वन० २८५ । ९)। (२) एक
(२) एक भारतीय जनपद (भीष्म० ५० ।५.)। राजा, जिन्हें पाण्डवोकी ओरसे रण-निमन्त्रण भेजा गया तित्तिरि-(१) कश्यप और कद्रसे उत्पन्न एक प्रमुख नाग था ( उद्योग० ४ । २१)।
(आदि. ३५ । १५)। (२) युधिष्ठिरकी सभा तुण्डिकेर-एक भारतीय जनपद (द्रोण. १७ । २०)। विराजनेवाले एक ऋषि (सभा०४।१२)। (३)
तुम्बुरु-(१) एक देवगन्धर्व, जो कश्यप और प्राधा अश्वोंकी एक जाति, जो तीतरोंकी भाँति चितकबरी होती
पुत्र थे ( आदि० ६५ । ५१ ) । अर्जुनके जन्मोत्सवपर है (यह अश्व अर्जुनने दिग्विजयके समय गन्धर्व
इनका संगीत हुआ था (आदि. १२२ । ५४) । ये नगरसे प्राप्त किया था ।) (सभा० २८ । ६)।
इन्द्रकी सभामें विराजमान होते हैं (सभा० ७।१४)। तिमि-एक जलजन्तु, जो समुद्र में ही होता है ( सभा० कुबेरकी सभाके भी प्रधान गन्धर्व हैं (सभा०१०। ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)।
२६)। इन्होंने युधिष्ठिरको सौ घोड़े भेंट किये थे तिमिशिल एक राजा, जिन्हें दक्षिण-दिग्विजयके समय (सभा० ५२ । २४)। इन्द्रलोकमें अर्जुनके स्वागत के
सहदेवने अपने अधीन किया था (सभा० ३१ । ६९)। समय ये भी थे (वन० ४३ । १४)। पर्वसंधिके समय तिलभार-एक पूर्वोत्तरवर्ती भारतीय जनपद (भीष्म०
गन्धमादन पर्वतपर कुबेरकी सेवामें उपस्थित हुए. तुम्बुरुके ९। ५३)।
सामगानका स्वर स्पष्ट सुनायी पड़ता है (वन. १५९ ।
२९)। गोग्रहणके अवसरपर कौरवोंके साथ अर्जुनका तिलोत्तमा-एक अप्सरा, जो कश्यपकी प्राधा' नामवाली
युद्ध देखनेके लिये ये स्वयं भी आये थे (विराट० ५६ । पत्नीसे उत्पन्न हुई थी (आदि०६५।४९)। अर्जुनके
१२)। युधिष्ठिरके अश्वमेधमें भी ये पधारे थे (आश्व० जन्म-समयमें पदार्पण करके इसने वहाँ नृत्य किया था
८८। ३९)। (२) एक प्राचीन ऋषि, जो शरशय्या(आदि. १२२ । ६२)। ब्रह्माके आदेशसे विश्वकर्मा
पर पड़े हुए भीष्मजीको देखने गये थे (शान्ति० ४७ । द्वारा तीनों लोकोंके दर्शनीय पदार्थोंके सारतत्त्व तथा रत्नराशिसे इसका निर्माण ( आदि. २१० । ११-१४)। इसका तिलोत्तमा नाम होनेका कारण ( आदि. २१०। तुर्वसु-ययातिके द्वारा देवयानीके गर्भसे उत्पन्न ( आदि १८)। इसके रूपसे मोहित होकर भगवान् शिवका
७५ । ३५; आदि. ८३ । ९)। ययातिकी तुर्वसुसे चतुमुंख और इन्द्रका सहस्रनेत्र होना (आदि० २१० ।
युवावस्थाकी याचना ( आदि. ८४ । १०-११)। २८)। इसको अपनी पत्नी बनानेके लिये ही मन्द और उप- तुर्वसुका उन्हें अपनी युवावस्था देनेसे इनकार करना(आदि. सुन्दका परस्पर गदायुद्ध करके एक-दूसरेके हाथसे मारा
७५ । ४३, आदि० ८४ । १२)। ययातिका तुर्वसुको जाना (आदि० २११ । १९)। इसको ब्रह्माद्वारा
शाप-तेरी संतति नष्ट हो जायगी; जिनके आचार और त्रिभुवनमें अव्याहत गतिका वरदान (आदि० २११ ।
धर्म वर्णसंकरोंके समान हैं, जो प्रतिलोमसंकर जातियोंमें २३)। इसके नाम की निक्ति ( अनु. १४१।१)।
गिने जाते हैं तथा जो कच्चा मांस खानेवाले चाण्डाल
आदिकी श्रेणी में हैं, ऐसे लोगोंका तू राजा होगा, पशुवत् तीरग्रह-एक पूर्वोत्तरवर्ती भारतीय जनपद ( भीष्म ९ ।
आचरण करनेवाले पापात्मा म्लेच्छोंमें तेरा वास होगा'
(आदि०८४ । १३-१५)। तीर्थकोटि-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेवाले यात्रीको पुण्डरीक-यज्ञका फल मिलता है और वह विष्णुलोकको जाता है तुलाधार
सो तुलाधार-एक काशीनिवासी धर्मात्मा वैश्य (शान्ति. (वन० ८४ । १२१)।
२६१ । ४२-४३)। इनका अपने पास आये हुए जाजलि तीर्थनेमि-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ७)।
मुनिका सत्कार करके उनके आगमनका कारण स्वयं ही
बताना (शान्ति. २६१ । ४६-५१) । जाजलिको तीर्थयात्रापर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय ८०
धर्मका उपदेश देना (शान्ति. २६२ । ५-५५)। से १५६ तक)।
इनके द्वारा जाजलिको आत्मयज्ञविषयक धर्मका उपदेश तुङ्गकारण्य-एक तीर्थ, जहाँ सारस्वत मुनिने दूसरे ऋषियों
(शान्ति० २६३ । ४-४३)। इन्हें जाजलिके साथ को वेदाध्ययन कराया था (वन० ८५। ४६)। स्वर्गकी प्राति (शान्ति. २६४ । २०-२१)। तहवेणा-एक श्रेष्ठ नदी, जिसका जल भारतके लोग पीते हैं तबार-(१) एक उदीच्य जनपद (कुछ लोगोंके मतमें (भीष्म०९।२७)।
आधुनिक तुखारिस्तान-आक्सस नदीके आस-पासका तुण्ड-(१) एक राक्षस, जिसने बानर सेनापति नलके साथ प्रदेश ही तुषार है)। यहाँके नरेश युधिष्ठिरके राजसूय
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