Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 288
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राम (रामचन्द्र) ( २८४ ) रामक - - - - -- . ना आर र्धान हो जाना (वन.२०९। ४०-४८)। पंपा-सरोवरपर जाकर श्रीरामका सीताके लिये विलाप और लक्ष्मणका उन्हें सान्त्वना देना (वन० २८० । १-६)। इनका पंपा-सरोवरमें स्नान करके पितरोंका तर्पण करना और ऋष्यमूकके पास जा उसके शिखरपर बैठे हुए पाँच वानरोंको देखना ( वन. २८ । ८-९)। हनुमानजीसे भेंट और वार्तालापके पश्चात् इनकी सुग्रीवके साथ मित्रता और उनसे अपना कार्य निवेदन करना । सुग्रीवका सीताके गिराये हुए वस्त्रको इन्हें दिखाना (वन० २८० । १०१२)। श्रीरामका सुग्रीवको वानरराजके पदपर अभिषिक्त करना तथा वालीको मार गिरानेकी प्रतिज्ञा करना । सुग्रीवका भी सीताको ढूँढ़ लानेका विश्वास दिलाना (वन० २८० । १३-१४)। इनके द्वारा बालीका वध (वन० २८० ।३५-३०)। इनका वर्षाके चार मासतक माल्यवान्के सुन्दर पृष्ठ-भागपर निवास करना (वन. २८० । ४०)। इनका सुग्रीवपर कोप (वन० २८२ । ५-११)। लक्ष्मणका सुग्रीवको साथ लेकर माल्यवान् पर्वतके शिखरपर श्रीरामके पास आना और उनके द्वारा किये जानेवाले सीताके अनुसंधान-कार्यकी सूचना देना (वन० २८२ । २२)।श्रीहनुमान्जीका लंकासे लौटकर श्रीरामको वहाँका वृत्तान्त एवं सीताका कुशल-समाचार सुनाना ( वन० २०२ । ३७-७१)। श्रीरामके पास विभिन्न देशोसे विशाल वानर-सेनाओंसहित वानर-यूथपतियोंका आगमन (वन० २८३ । १-१३)। शुभमुहर्तमें सेनासहित श्रीरामका लंकाको प्रस्थान (वन० २८३ । १४-१५)। श्रीगमका समुद्रसे पार होनेके लिये वानरोंसे उपाय पूछना और समुद्रकी आराधनाका निश्चय करके उसके तटपर धरना देना (वन० २८३ । २३३२)। स्वप्नमें समुद्रका श्रीरामचन्द्रजीको दर्शन देकर उन्हें नलके द्वारा सेतु बाँधकर उसीसे सेनासहित पार जानेका परामर्श देना (वन० २८३ । ३३-४२)। श्रीरामका नलको आदेश देकर समुद्रपर सौ योजन लम्बा और दस योजन चौड़ा पुल तैयार कराना ( वन० २८३ । ४३-४५) । इनके पास सचिवोसहित विभीषणका आगमन तथा श्रीरामका चरित्र और चेष्टाओंद्वारा उन्हें शुद्ध पाकर उनपर संतुष्ट होना, उन्हें राक्षसोंके राज्यपर अभिषिक्त करना, सलाहकार बनाना और उन्हींकी रायसे महासागरको पार करना (वन० २८३ । १६-५०)। इनका लंकाकी सीमामें पहुँचकर वहाँके उद्यानोंको नष्टभ्रष्ट करना, विभीषणकी कैदमें पड़े हुए शुक और सारणको अपनी सेनाका दर्शन कराकर छोड़ना और अङ्गदको रावणके दरबारमें दूत बनाकर भेजना (वन २८३ । ५१-५४)। अङ्गदका रावणके पास जाकर श्रीरामका संदेश सुनाना और वहाँसे लौटकर श्रीरामको वहाँकी सारी बातें बताकर इनके द्वारा प्रशंसित होना (वन० २८४।१-२२)। इनके द्वारा निशाचरोंका संहार (वन० २८४ । ३९)। श्रीराम और रावणकी सेनाओंका द्वन्द्वयुद्ध (वन० २८५ अध्याय)। इन्द्रजित्द्वारा किये गये मायामय युद्ध में लक्ष्मणसहित श्रीरामकी मूर्छा (वन० २८८ अध्याय)। इनका सचेत होकर कुबेरके भेजे हुए अभिमन्त्रित जलसे प्रमुख वानरोंसहित अपने नेत्र धोना (वन.२८९ । १-१४)। श्रीराम और रावणका युद्ध तथा इनके द्वारा रावणका वध (वन० २९० अध्याय)। सीताके प्रति श्रीरामका संदेह इनके पास ब्रह्मा, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण, कुबेर, सप्तर्षिगण तथा स्वर्गीय महाराज दशरथका आगमन, सीताका इनके समक्ष आत्मशुद्धिके लिये शपथ खाना, वायु-अग्नि आदि देवताओंका इनके सामने सीताकी शुद्धिका समर्थन करना, दशरथका इन्हें अयोध्या जाकर राज्यशासन करनेकीआज्ञा देना, श्रीरामका देवताओंको नमस्कार करके अपनी पत्नी सीतासे मिलना, अविन्ध्यको वरदान और त्रिजटाको धन एवं सम्मान देकर संतुष्ट करना (वन. २९१ । १-४१) ब्रह्माजीके दिये हुए वरसे श्रीरामका मरे हुए वानरोंको जिलाना, मातलिका इन्हें वर देना और श्रीरामका पुष्पकविमानद्वारा दलबलसहित किष्किन्धामें पधारकर सुग्रीवका राज्याभिषेक करके अङ्गदको युवराज-पदपर प्रतिष्ठित करना तथा अयोध्यामें लौटकर भरतसे मिलना एवं राज्यपर अभिषिक्त होना (वन. २९१ । १२-६६)। राज्याभिषेकके बाद श्रीरामका सुग्रीव और विभीषणको सादर विदा करना, पुष्पकविमानको कुबेरके पास लौटा देना और गोमतीके तटपर ( नैमिषारण्यमें ) दस अश्वमेध यशोंका अनुष्ठान करना (वन० २९१ । ६७-७०)। सुंजयको समझाते हुए नारदजीका इनके चरित्रका वर्णन करना (द्रोण० ५९ अध्याय) । श्रीकृष्णद्वारा इनके राज्य आदिका वर्णन (शान्ति० २९।५१-६२) गोदान-महिमाके प्रसंगमें इनका नाम-निर्देश ( अनु. ७६ । २६)। इनके द्वारा मांस-भक्षण-निषेध (अनु० ११५। ६४)। इनके यज्ञमें धन-दानका वर्णन (अनु. १३७ । १४)। महाभारतमें आये हुए रामके नाम-अयोच्याधिपति, दशरथपुत्र, दशरथात्मज, दाशरथि, इक्ष्वाकुनन्दन, काकुत्स्थ, कौसल्यानन्दिवर्धन, कौसल्यामातः, कोसलेन्द्र, __ लक्ष्मणाग्रज, राघव आदि । रामक-एक पर्वत, जिसे दक्षिण-दिग्विजयके समय सहदेवने अपने अधिकारमें कर लिया था (सभा० ३१ । ६८) For Private And Personal Use Only

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