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विनदी
( ३१३ )
विपाठ
पाँच सौ वर्षोंतक सौतकी दासी होनेका शाप देना एवं ४५ । ७२-७६)। विराटकुमार श्वेतके चंगुलमें फँसे उससे छूटनेका उपाय बतलाना ( आदि०१६ । १८- हुए मद्रराज शल्यकी इसने सहायता की (भीष्म०४७ । २२) । सौत कद्रुद्वारा इनका छला जाना तथा पाँच सौ ४८-४९)। अपने भाई अनुविन्दके साथ इसका इरावान्वर्षातक उसकी दासी होना (आदि.२०१२ से आदि. पर आक्रमण करना (भीष्म० ८१।२७)। इसका २३ । ४ तक)। इनका गरुडको अमृत लानेका आदेश इरावान्के साथ युद्ध तथा उनके द्वारा पराजित होना (आदि० २७ । १३-१५)। इनकी गरुडको ब्राह्मण- (भीष्म० ८३ । १२-२२)। इसका धृष्टद्युम्न और . की हिंसासे बचने के लिये चेतावनी ( आदि० २८।२-- युधिष्ठिरके साथ युद्ध (भीष्म० ८६ । ३३-३६)। १४)। स्वर्गसे अमृत लाकर गरुडका इन्हें दासीपनसे. भीमसेन और अर्जुनके साथ युद्ध ( भीष्म० अध्याय ११३ छुटकारा दिलाना (आदि. ३४।८-२०)। तार्क्ष्य से ११४ तक)। विराटके साथ युद्ध (द्रोण० २५ । अरिष्टनेमि, गरुड, अरुण तथा वारुणि-ये विनताके पुत्र २०-२१)। भीमसेनके साथ युद्ध (द्रोण. ९५ । ३५हैं (आदि० ६५। ३५-४०)। इन्होंने स्कन्दको अपना ३६)। विराटपर इसका धावा (द्रोण. ९५ । ४३)। पिण्डदाता पुत्र माना और सदा उनके साथ रहनेकी इच्छा विराटके साथ युद्ध (द्रोण. ९६ । ४-६) । अर्जुनके प्रकट की (वन० २३० । १२)।
साथ युद्ध और उनके द्वारा इसका वध (द्रोण. ५९ । विनदी-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके
१७-२५)। इसके मारे जानेकी चर्चा ( कर्ण निवासी पीते हैं (भीष्म०९।२७)।
५।१०)। (३) एक केकय राजकुमार, जो कौरवपक्षका
योद्धा था। इसका सात्यकिके साथ युद्ध और उनके द्वारा विनशन-(१) एक तीर्थ, जहाँ सरस्वती अदृश्य भावसे
वध (कर्ण. १३ । ६-३५)। बहती है ( वन० ८२ । १११)। इसकी विशेष महिमा (शल्य. ३७।।)। (२) समस्त पापोंसे छुटकारा
विन्ध्य-मध्यभारतका एक प्रसिद्ध पर्वत, जहाँ सुन्द और दिलानेवाला एक तीर्थ, जिसके सेवनसे मनुष्य वाजपेय
उपसुन्दने तपस्या की थी (भादि० २.८ । ७)। यज्ञका फल पाता और सोमलोकको जाता है (वन.
सुन्दकी उग्र तपस्यासे संतप्त होनेके कारण इस पर्वतसे ८४ । ११२)।
धुआँ निकलने लगा था (आदि० २०८ । १.)। यह
कुबेर-सभामें उपस्थित हो धनाध्यक्षकी उपासना करता है विनायक-एक प्रकारके गण देवता, जिनके नामका शुद्ध
(सभा०१०।३१)। इसका सूर्यका मार्ग रोकनेके भावसे कीर्तन करनेसे मनुष्य सब पापोंसे छट जाता है
लिये बढ़ना (वन. १०४ । ६)। अगस्त्यजीदारा (अनु. १५० । २५-२९)।।
इसकी वृद्धिका निवारण (वन० १०४ । १३-१४)। विनाशन-काला नामक कश्यप-पत्नीके गर्भसे उत्पन्न एक
इस उत्तम पर्वतपर दुर्गा देवीका सनातन निवास स्थान है दानव । कालाके पुत्र अस्त्र-शस्त्रोंके प्रहारमें कुशल तथा
(विराट० ६ । १७)। यह सात कुलपर्वतों से एक है साक्षात् कालके समान भयंकर थे ( आदि. ६५ ।
(भीष्म०९।११)। त्रिपुरदाहके समय यह शिव३४-३५)।
जीके रथका पार्श्ववर्ती ध्वज बनाया गया था (द्रोण. विन्द-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि ६७। २०२।७१)। इसने उनके रथमें आधार-काष्ठका स्थान
९४; आदि. ११६ । ३)। इसका भीमसेनके साथ ग्रहण किया था ( कर्ण. ३४ । २२)। इसके द्वारा युद्ध और उनके द्वारा वध (द्रोण. १२७ । ३४- स्कन्दको उच्छृङ्ग और अतिशृङ्ग नामक दो पार्षदोंका ६६) । (२) अवन्तीका राजकुमार, जो अनुविन्दका दान (स्य. ४५ । ४९-५०)। जो हिंसाका त्याग भाई था । दक्षिण-दिग्विजयके अवसरपर सहदेवने इसे करके सत्यप्रतिश होकर विन्ध्याचलमें अपने शरीरको कष्ट परास्त किया था (सभा० ३१ । १.)। इसका एक दे विनीत भावसे तपस्याका आश्रय लेकर रहता है, उसे अक्षौहिणी सेना लेकर दुर्योधनकी सहायताके लिये आना एक महीने में सिद्धि प्राप्त हो जाती है (अनु. २५ । (उद्योग० १९ । २४-२५)। भीष्मद्वारा इसकी श्रेष्ठ ४९)। रथियोंमें गणना ( उद्योग० १६६ । ६) । दुर्योधनकी विन्ध्यचुलिक-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । १२)। सेनाके दस प्रधान अधिनायकों से एक यह भी था विपाट-कर्णका एक भाई, जो अर्जुनद्वारा मारा गया
(भीष्म० १६ । १५-१७)। यह भगदत्तके समान (द्रोण. ३२ । ६२-६३)। तेजस्वी था और हाथीकी पीठपर बैठकर केतुमान्के पीछे विपाठ-बाणविशेष ( इसकी आकृति खनतीकी माँति चल रहा था (भीष्म० १.३७) । प्रथम दिनके होती है। यह दूसरे बाणोंसे बड़ा होता है) (आदि. युबमें कुन्तिभोजके साथ इसका द्वन्द-युद्ध (भीम. १८ )।
म. ना.४०
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