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बैलगाड़ीके दानको सुवर्ण-जल आदि सभी श्रेष्ठ वस्तुओंके सत्यवतीके गर्भसे चित्राङ्गद एवं विचित्रवीर्यका जन्म दानके समान बताया है (अनु० ६५ । १९)। राजा (भादि. १०१ । २-३)। इनका स्वर्गवास ( आदि० सुमन्युने भक्ष्य भोज्य-पदार्थोंके पर्वतों-जैसे कितने ही ढेर १. )। इनका अपने जीवनकालमें वनमें अनाथकी लगाकर उन्हें शाण्डिल्यको दान कर दिया था। इससे स्वर्ग- तरह पड़े हुए बालक कृप एवं कृपीको घर लाकर उनका लोकमें स्थान प्राप्त कर लिया ( अनु० १३७ । २२)। पालन-पोषण एवं समस्त संस्कार कराना (आदि० २२९ । शान्त- अह' नामक वसुके चार पुत्रों से एक । शेष
१८)। ये यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना तीनके नाम हैं--शम, ज्योति और मुनि ( आदि०६६।
करते हैं (सभा० ८।२५)। ये आर्चीकपर्वतपर तपस्या २३)।
करके नित्यधामको प्राप्त हुए थे (वन० १२५ । १९)। शान्तनु-महाराज प्रतीपके द्वितीय पुत्र । देवापिके अनुज
इन्होंने भीमसे पिण्ड लेनेके लिये अपना हाथ बढ़ाया था तथा बाह्रोकके अग्रज । इनकी माताका नाम सुनन्दा था
(अनु० ८४ । १५)। ये सायं-प्रातः स्मरण करने ( आदि० ९४ । ६१, आदि. ९५ । ४४ )। इनके
योग्य राजाओमें गिने गये हैं ( अनु. १६५। ५८)। बड़े भाई देवापिके बाल्यावस्था में ही राज्य छोड़कर वन महाभारतमें आये हुए शान्तनुके नाम-भारत, भारतचले जानेके कारण ये हो राजा हुए थे (आदि० ९४ । गोप्ता, भरतसत्तम, कौरव्य, कुरुसत्तमप्रातीप आदि । ६२, आदि० ९५ । ४५)। ये जिसे अपने दोनों हाथोंसे छू देते, वह सुख-शान्तिका अनुभव करता और बूढ़ेसे
शान्तमय-एक प्राचीन राजा ( आदि० ।। २३६ ) । जवान हो जाता था। इसीलिये इनका नाम शान्तनु हुआ शान्ता-राजा लोमपादकी गोद ली हुई पुत्री, जिसे राजाने (आदि० ९५। ४६)। ये पूर्वजन्ममें राजा महाभिष महर्षि ऋष्यशृङ्गके साथ ब्याह दिया था ( वन० ११० । थे। इनके स्वर्गसे मर्त्यलोकमें आनेका इतिहास (भादि. २६वन० ११३ । ११)। अपने पति ऋष्यशृङ्गके ९६ । १-५)। गङ्गाको पत्नी रूपमें स्वीकार करनेके साथ आश्रमपर आना और उनकी सेवामें सलग्न होना लिये इनको पिताका आदेश ( आदि. ९० । २१- (वन० ११३ । २२-२४)। महर्षि ऋष्यशृङ्गको २३)। गङ्गाके अनुपम रूपसे आकृष्ट हो उनसे अपनी शान्ताका दान करनेसे राजा लोमपाद सभी प्रकारके पत्नी होनेके लिये इनकी याचना ( भादि. ९७। प्रचुर भागासे सम्पन्न हो गये (शान्ति०२३४ । ३४)। ३१-३२)। गङ्गाके साथ इनके विवाहकी शर्त (आदि० शान्ति-(१) भूतपूर्व चौथे इन्द्रका नाम ( आदि० ९८ । ३)। इनके द्वारा गङ्गाको फटकार (भादि०
१९६ । २९)। (२) एक प्राचीन ऋषि, जो राजा ९८ । १६ ) । इनको वसिष्ठद्वारा वसुओंको प्राप्त हुए
उपरिचरके यज्ञके सदस्य बने थे ( शान्ति० ३३६ । शापका वृत्तान्त बतलाकर गङ्गाका अन्तर्धान होना (आदि.
८)। इनके पिताका नाम अङ्गिरा था। ये अग्निवंशमें ९९ । ५-४६)। इनका सम्राटपदपर अभिषेक (भादि.
उत्पन्न होनेसे आग्नेय कहलाये ( अनु० ८५ । १००।७)। इनके राज्यकी विशेषता (आदि. १००।।
१३०-१३१)। ८-२०)। गङ्गाजीका इनको बालक भीष्मका
शान्तिपर्व-महाभारतका एक प्रमुख पर्व । परिचय देना ( आदि० १०० । ३३ )। संध्यवतीके
शामित्र-यशके अन्तर्गत एक कर्मविशेष ( आदि० १९६ । रूपसे मोहित होकर उसकी प्राप्तिके लिये निषादराजसे इनकी याचना (आदि० १००1५०-५१)। सत्यवतीके पुत्रको ही सम्राट के पदपर अभिषिक्त करनेके लिये शारद्वती-एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके जन्म-कालिक
महोत्सवमें गान किया था (आदि. १२२ । ६४)। निषादराजका इनके प्रति प्रस्ताव ( आदि. १००।। ५४-५६ )। इनका निषादके प्रस्तावको अस्वीकार शाडू-भगवान् श्रीकृष्णका दिव्य धनुष (सभा०२।१४ करना (आदि. १००1५७-५८)। इनका इकलौते समा०३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८२१॥ पुत्रको नहींके समान बतलाकर संतानकी महिमाका वन २०। १९) । कौरव-सभामें विश्वरूप धारण किये वर्णन करना (आदि. १००। ६६-७०)। इनकी हुए श्रीकृष्ण की एक भुजामें यह देदीप्यमान होता था वंशोच्छेदकी चिन्ता ( आदि. १००। ७०-७१)। (उद्योग० १३१ १०) । इन्द्र के विजय नामक धनुषकी इनको भीष्मद्वारा सत्यवतीका समर्पण ( आदि.१००। इसके साथ तुलना (उद्योग. १५८।४)। यह तीन १००)। इनके द्वारा भीष्मको स्वच्छन्द-मृत्युका वरदान दिव्य धनुर्षोमेंसे एक है । इसे भगवान् विष्णुका तेजस्वी (आदि.१०.१०२)। सत्यवतीके साथ इनका धनुष बताया गया है (उद्योग. १५८ । ५)। विधिपूर्वक विवाह ( आदि. १०१। )। इनके द्वारा लोकपितामह ब्रह्माने इसका निर्माण करके इसे श्रीहरिको
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