Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

View full book text
Previous | Next

Page 393
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुभद्राहरणपर्व ( ३८९ ) सुमह ( आदि० २१८ । १७-१८)। ये अपने पिताकी बड़ी यज्ञमें विघ्न डालनेवाले पंद्रह उत्तर देवों (विनायकों) लाड़ली थीं ( आदि० २१८ । १७) । अर्जुनका इनके मेंसे एक हैं (वन० २२० । ११)। प्रति अनुराग और श्रीकृष्णके समक्ष इन्हें अपनी रानी सुभूमिक-सरस्वती-तटवर्ती एक प्राचीन तीर्थ, इसका बनानेका मनोभाव प्रकट करना (आदि० २१८ । १९)। विशेष वर्णन (शल्य० ३७ । २-८)। श्रीकृष्णकी सलाहसे रैवतक पर्वतके उत्सवपर परिक्रमाके सुभ्राज-सूर्यद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक । समय अर्जुनद्वारा इनका अपहरण ( आदि० २१९। दुसरेका नाम भास्वर था (शल्य. ४५।३१)। ६-८) । अर्जुनके साथ इनका विधिपूर्वक विवाह सुभ्र-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । ८)। (आदि० २२० । १३)। अर्जुनकी प्रेरणासे गोपीवेशमें 3 इनका द्रौपदीके पास आगमन तथा इनके लिये द्वारकासे सुमङ्गला-वन्दकीअनुचरी एक मातृका(शल्य०४६।१२)। दहेजका आना ( आदि० २२० अध्याय)। इनके गर्भ- सुमणि-चन्द्रमाद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे से अभिमन्युका जन्म ( आदि० २२० । ६५-६६, एक । दूसरेका नाम मणि था (शल्य०४५।३२)। आदि० ९५ । ७८) । पाण्डवोंके वनवास होनेपर सुमण्डल-एक राजा, जिसे अर्जुनने उत्तर-दिग्विजयके वनसे अभिमन्युसहित ये श्रीकृष्णके साथ द्वारका चली समय सेनासहित जीत लिया था (सभा० २६ । ४)। गयी थीं (वन० २२ । ३-४)। उपप्लव्यनगरमें सुमति-(१) एक राक्षस, जो वरुणकी सभामें रहकर अभिमन्युके विवाहोत्सवमें इनका आना (विराट०७२। उनकी उपासना करता है (सभा०९।१३)। (२) २२) । पुत्रशोकसे दुखी होनेपर इन्हें श्रीकृष्णद्वारा एक दिव्य महर्षि, जो शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीको आश्वासन (द्रोण० ७७ । १२-२६ )। श्रीकृष्णके देखनेके लिये आये थे ( अनु० २६ । ४)। समक्ष अभिमन्युके लिये इनका विलाप (द्रोण० ७८ । सुमन-इन्द्रकी सभामें विराजमान होनेवाले एक देवता २-३५)। श्रीकृष्णके साथ हस्तिनापुरसे द्वारकाको प्रस्थान (सभा० ७ । २२)। (आश्व० ५२ । ५५)। वसुदेवजीके सामने श्रीकृष्णसे सुमना-(१) एक किरातोंका राजा जो युधिष्ठिरकी सभामें अभिमन्यु-वधका वृत्तान्त कहनेके लिये कहकर मूर्छित बैठा करता था ( सभा० ४ । २५) । (२) एक होना (आश्व० ६१।४) । युधिष्ठिरके अश्वमेधयज्ञमें प्राचीन नरेश, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी सम्मिलित होनेके लिये द्वारकासे हस्तिनापुर आना (आश्व० उपासना करते हैं (सभा० ८।१२)। (३) एक ६६ । ४)। उत्तराके मृत पुत्रको जिलानेके लिये इनकी असुर, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना श्रीकृष्णसे प्रार्थना (आश्व० ६७ अध्याय) । परीक्षित्के करता है (सभा. ९ । १३)। (४)। देवलोकजीवित होनेसे इनकी प्रसन्नता ( आश्व०७० । ६-७)।। निवासिनी केकयराजकी पुत्री, जिसने शाण्डिलीदेवीसे इनका उलूपी और चित्राङ्गदासे मिलना तथा उन दोनोंको उनकी साधनाके विषयमें प्रश्न किया था ( अनु० उपहार देना (आश्व० ८८। ३-४)। ये कुन्ती और १२३ । ३-६)। गान्धारी दोनों सासुओंकी समान भावसे सेवा करती थीं सुमनाख्य-कश्यप और कद्रूसे उत्पन्न एक प्रमुख नाग (आश्रम० ११९)।ये अभिमन्युके लिये चिन्तित रहनेके (आदि० ३५। ८)। कारण सदा अप्रसन्न एवं हर्षशून्य रहा करती थीं । केवल सुमनामुख-एक कश्यपवंशी नाग (उद्योग० १०३ । १२)। परीक्षितको देखकर जीवन धारण करती थीं ( आश्रम सुमन्तु-एक ऋषि, जो महर्षि व्यासके शिष्य थे। २१ । १५.१६) । संजयका ऋषियोंके समक्ष इनका व्यासजीने इन्हें सम्पूर्ण वेदों तथा महाभारतका परिचय देना (आश्रम० २५ । १०)। गान्धारीका अध्ययन कराया था ( आदि. ६३ । ८९ )। ये व्यासजीके समक्ष इन्हें पुत्रशोकसे संतप्त बताना (आश्रम० युधिष्ठिरकी सभामें विराजते थे (सभा०४।११)। २९ । ४२)। युधिष्ठिरका दुःखसे आर्त होकर सुभद्राको ये शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीको देखनेके लिये गये थे। परीक्षित् एवं वज्रका पालन करनेके लिये कहना (शान्ति० ४७ । ५)। ( महाप्रस्था० १ । ७-९)। (२) रभिकी सुमन्त्र-अयोध्यानरेश महाराज दशरथके सारथि ( विराट एक धेनुरूपा पुत्री, जो पश्चिमदिशाको धारण करनेवाली १२ । ८ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। है (उद्योग. १०२।९)। सुमन्यु-एक प्राचीन नरेश, जिन्होंने मुनिवर शाण्डिल्यको सभटाहरणपर्व-आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( आदि० __ भक्ष्य-भोज्य पदार्थोंकी कितनी ही पर्वतोपम राशियाँ दानमें दी थीं ( अनु० १३७ । २२) (किसी-किसी प्रतिके अध्याय २१८ से २१९ तक)। अनुसार ये राजा भुमन्यु थे)। सुभा-महर्षि अङ्गिराकी पत्नी । इनके गर्भसे बृहत्कीर्ति आदि सुमल्लिक-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ५। ५५)। सात पुत्र हुए थे (वन० २१८ । १-२)। सुमह-परशुरामजीके सारथि (विराट. १२।८ के बाद सुभीम-तप नामधारी पाञ्जजन्य नामक अग्निके पुत्र, जो दा० पाठ)। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414