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हिरण्यधनु
( ४०७ )
हेमकूट
हिरण्यधनु-एक निषादराज, जो एकलव्यका पिता था हिरण्यहस्त-एक प्राचीन ऋषि, जिन्हें राजा मदिराश्वसे (आदि० १३१ । ३१)।
उनकी सुन्दरी कन्याका दान प्राप्त हुआ था (शान्तिक हिरण्यनाभ-संजयपुत्र सुवर्णष्ठीवी जब मृत्युके पश्चात् ____२३४ । ३५)।
नारदजोकी कृपासे जीवित हुआ, तब उसका यही नाम हिरण्याक्ष-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंसे एक (अनु० रक्खा गया था । इसकी आयु एक हजार वर्षों की थी ४ । ५७)। (शान्ति० १२९ । १४९)।
हिरण्यवती-कुरुक्षेत्रमें बहनेवाली एक पवित्र नदी, जो हिरण्यपर-पलोमा और कालकाकी प्रार्थनासे उनके पत्रों के स्वच्छ एवं विशुद्ध जलसे भरी रहती है, इसमें कंकड़-पत्थर लिये ब्रह्माजीद्वारा निर्मित एक विमानोपम आकाशचारी
और कीचड़का नामतक नहीं है । इसीके तटपर भगवान् दिव्य नगर, जो पौलोम और कालकेय नामक दानवोंका
श्रीकृष्णने पाण्डव सेनाका पड़ाव डाला था ( उद्योग. निवासस्थान था एवं उन्हींके द्वारा सुरक्षित था (वन.
१५२ । ७-८)। यह भारतवर्षकी प्रमुख नदियों में है। १७३ । ९-१३)। अर्जुनद्वारा इसका संहार (वन० जिसका जल भारतवासी पीते हैं (भीष्म० ९ । २५)। १७३ । ३०)। नारदजीद्वारा मातलिको इस नगरका हीक-विपाशामें रहनेवाला एक राक्षस, जो बहि नामक परिचय ( उद्योग० १०० अध्याय)।
निशाचरका साथी था। इन्हीं दोनोंकी संतानें वाहीक हिरण्यवाह-वासकि-वंशोद्धव एक नाग, जो जनमेजयके कहलाती हैं ( कर्ण० ४४ । ४१-४२)। ___ सर्पसत्र में दग्ध हो गया था ( आदि० ५७।६)। हुण्ड-एक जनपद, जहाँके सैनिकोंके साथ नकल-सहदेव हिरण्यबिन्दु-हिमालयके निकटका एक तीर्थ, जहाँ तीर्थ- क्रौञ्चारुणन्यूहके बायें पंखके स्थानमें स्थित थे (भीष्म०
यात्राके अवसरपर अर्जुनका आगमन हुआ था ( आदि. २१४।४)। जो मन और इन्द्रियोंको संयममें रखते हतहव्यवह-धर' नामक वसुके दो पुत्रोंमेंसे एक, दूसरेका हुए हिरण्यबिन्दुतीर्थमें स्नान करके वहाँके प्रमुख देवता नाम द्रविण था (आदि० ६६ । २१)। • भगवान् कुशेशयको प्रणाम करता है, उसके सारे पाप धुल हूण-एक जाति, जिसकी उत्पत्ति नन्दिनी गौ' के फेनसे हुई
जाते हैं ( अनु० २५ । १०-११)। कालिञ्जर पर्वतार (आदि. १७४ । ३८)। हूणोंका जहाँ निवास है, उस स्थित एक महान् तीर्थ (वन० ८७ । २१)। भूभागको हूण देश कहा गया है । इस देश और जातिके हिरण्यरेता-अग्निका नाम (आदि० ५५। १०)।
जो पश्चिमदेशीय राजा थे, उन सबको नकुलने दूतोंद्वारा हिरण्यरोमा-दाक्षिणात्य देशोंके अधिपति विदर्भराज
ही वशमें कर लिया था (सभा० ३२ । १२)। हूण भीष्मकका दूसरा नाम ( उद्योग० १५८।१)।
देश और जातिके भूपाल युधिष्ठिरके राजसूय-यशमें भेंट हिरण्यवर्मा-दशाणदेशके राजा, जिन्होंने अपनी कन्याका ।
लेकर आये थे (सभा० ५१ । २४)। विवाह शिखण्डीके साथ किया था (उद्योग० १८९।१०)। हूहू-एक श्रेष्ठ गन्धर्व, जो महर्षि कश्यपद्वारा प्राधाके गर्भसे शिखण्डोके स्त्रोत्वकी जानकारीसे कुपित होकर इनका उत्पन्न हुए थे (आदि० ६५ । ५१; वन. ४३ । द्रुपदको संदेश ( उद्योग० १८९ । २१-२३)। मित्र
१४)। ये अर्जुनके जन्म-महोत्सवमें पधारे थे ( आदि० राजाओंकी मन्त्रणासे इनका द्रुपदपर चढ़ाई करनेका १२२ । ५९)।ये कुबेरकी सभामें रहकर उनकी उपासना निश्चय एवं संदेश ( उद्योग० १९० । ९-१०)। राजा करते हैं (सभा० १० । २५-२७)। इन्होंने इन्द्रलोककी द्रुपदकी राजधानीके पास आकर इनका पुरोहितद्वारा सभामें अर्जुनका स्वागत किया था (वन० ४३ । १४)। संदेश देना (उद्योग० १९२ । २०-२१)। युवतियों- हदिक-एक भोजवंशी यादव, जो कृतवर्माके पिता थे द्वारा शिखण्डीकी परीक्षा कराकर प्रसन्न होना और द्रुपद (आदि०६३ । १०५)। तथा शिखण्डीका सम्मान करके घर लौटना ( उद्योग० हृद्य-एक प्राचीन ऋषि, जो इन्द्रसभामें विराजते हैं १९२ । २८-३२)।
(सभा० ७ । १३)। हिरण्यशृंग-कैलासपर्वतसे उत्तर मैनाकपर्वतके समीपस्थ हृषीकेश-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम और इसकी
एक मणिमय विशाल पर्वत ( सभा० ३ । १०; भीष्म० . निरुक्ति (शान्ति० ३४२।६७)। ६ । ४२)।
हेमकूट-(१) उत्तर दिशाका एक पर्वत, जहाँ अर्जुनने हिरण्यसर-पश्चिमदिशाका एक प्राचीन तीर्थ, यहाँ चन्द्रमाने अपनी सेनाका पड़ाव डाला था और वहाँसे वे हरिवर्षमें
स्नान करके पापसे छुटकारा पाया था, तभीसे इसका नाम गये थे (सभा० २८ । ६ के बाद दा. पाठ)। प्रभास' हुआ (शान्ति० ३४२ । ५७)। . .. . .(२) नन्दाके तटपर दुर्गम पर्वत, जहाँ राजा युधिष्ठिर
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