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हिडिम्बा
( ४०५ )
हिमवान्
हिडिम्बा-राक्षसराज हिडिम्बकी बहिन, भीमसेनकी पत्नी तथा
घटोत्कचकी माता ( आदि०६३ । २५)। सोये हुए पाण्डवोंको मारकर लानेके लिये इसको हिडिम्बका आदेश (आदि०१५११७-१४)। भीमसेनके रूपसे मोहित होकर उनसे अपना पति होनेके लिये इसकी प्रार्थना ( आदि० १५१ । १७-२९)। इसपर हिडिम्बका क्रोध तथा इसका भय (आदि० १५२ । १६-१९) । वधकी इच्छासे इसपर हिडिम्बका आक्रमण ( आदि. १५२। २०)। इसका कुन्ती आदिसे अपना मनोभाव प्रकट करना (आदि० १५३ । ५-१२)। भीमसेनको पतिरूपमें प्राप्त करनेके लिये इसकी कुन्तीसे प्रार्थना (आदि० १५४ । ४-१५ के बादतक)। युधिष्ठिरका शर्तके साथ हिडिम्बाको भीमसेनकी सेवामें रहने के लिये आदेश देना (आदि. १५४ । १६-१८ के बादतक)। भीमसेनका एक शर्तके साथ उसके साथ जानेके लिये उद्यत होना ( आदि. १५४ । १९-२०)। इसका भीमसेनको साथ लेकर आकाशमें उड़ जाना और परम सुन्दर रूप धारणकर रमणीय प्रदेशोंमें उनके साथ विहार करना ( आदि. १५४ । २१३०)। इसके गर्भसे भीमसेनद्वारा घटोत्कचका जन्म (आदि. १५४ । ३१)। इसका पाण्डवोंसे मिलकर
अपने अभीष्ट स्थानको जाना ( आदि० १५४ । ४०)। हिमवान-भारतकी उत्तर-सीमापर स्थित एक विशाल पर्वत
राज, जो शरीरसे पर्वत होते हुए भी 'आत्मा' से देवता है । यहाँ हिमवान्का अर्थ हिमालय पर्वत और उसके अधिष्ठाता देवता समझना चाहिये । वालखिल्य मुनि यहाँ तपस्या करनेके लिये आये थे ( आदि०३०।१८)। शेषनाग संयम-नियम तथा एकान्तवासके लिये हिमालय पर्वतपर आये थे (आदि. ३६ । ३-४ ) । व्यासजी गान्धारीके बालकोंकी रक्षाको व्यवस्था करके हिमालयपर तपस्याके लिये चले गये थे (आदि०११४ । २४)। राजा पाण्डु कालकूट और हिमालयपर्वतको लाँघते हुए गन्धमादनपर्वतपर चले गये थे (आदि० ११८ । ४८)। क्षत्रियलोग भृगुवंशी ब्राह्मणोंके गर्भस्थ बालकोंकी भी हत्या करते हुए सारी पृथ्वीपर विचरने लगे। यह देख भयके मारे भृगुवंशियोंकी पत्नियोंने दुर्गम हिमालयपर्वतका आश्रय लिया (आदि० १७७ । २०-२१)। पराशरने समस्त राक्षसोंके विनाशके उद्देश्यसे किये जानेवाले सत्रके लिये जो अग्नि संचित की थी, उसे उत्तर-दिशामें हिमालयके आसपास एक विशाल वनमें छोड़ दिया (आदि. १८० । २२)। इन्द्रपुत्र अर्जुनने भी हिमालयकी यात्रा की थी (आदि० २१४।१)। हिमवान् कुबेर-सभामें रहकर धनके स्वामी महामना भगवान् कुबेरकी उपासना करते हैं (सभा० १० । ३१-३४)। देवर्षि नारदजीने ब्रह्माजीकी सभाका दर्शन पानेके उद्देश्यसे सूर्यके बताये अनुसार हिमालयके शिखरपर एक हजार वर्षों में पूर्ण होनेवाले महान् व्रतका अनुष्ठान किया था (सभा० ११॥ ८-९) । अर्जुनने
संग्राममें हिमवान्को जीतकर धवलगिरिपर आकर वहीं अपनी सेनाका पड़ाव डाला (सभा० २७ । २९)। भीमसेनने हिमालयके पास जाकर सारे जलोद्भव देशपर थोड़े ही समयमें अधिकार प्राप्त कर लिया। (सभा० ३०। ४)। हिमालयपर्वतपर मेरु-सावर्णिने युधिष्ठिरको धर्म और ज्ञानका उपदेश किया था (सभा० ७८ । १४)। राजा भगीरथने तपस्याके लिये हिमालयपर्वतको प्रस्थान किया। गिरिराज हिमालय विविध वस्तुओंसे विभूषित तथा नाना प्रकारके शिखरोंसे अलंकृत है। इसकी रमणीय शोभाका विस्तृत वर्णन ( वन० १०८ । ३-११)। कुलिन्दराज सुबाहुका विशाल राज्य हिमालयपर्वतके निकट था । पाण्डवोंने रातमें वहाँ रहकर दूसरे दिन सबेरे हिमालयकी ओर प्रस्थान किया ( वन० १४० । २४-२७ ) । पाण्डवलोग सत्रहवें दिन हिमालयके एक पावन पृष्ठभागपर जा पहँचे । हिमालयके उस पावन प्रदेशमें वृषपर्वाका पवित्र आश्रम था। वहाँ जाकर उन्होंने वृषपर्वाको प्रणाम किया (वन० १५८ ॥ १८-२१)। भीमसेन हिमालयपर्वतके सुन्दर प्रदेशोंका अवलोकन करते हुए वनमें शिकार खेलने लगे। इसी अवस्थामें उन्हें एक अजगरने पकड़ लिया (वन० १७८ अध्याय)। मार्कण्डेय जीने भगवान् बालमुकुन्दके उदरमें हिमवान् तथा हेमकूट आदि पर्वतोंको देखा था (वन. १८८।११२)। हिमवान् पर्वतपर प्रावारकर्ण नामसे प्रसिद्ध एक उल्लू निवास करता है, जो मार्कण्डेयजीसे भी पहलेका उत्पन्न हुआ है (वन० १९९ । ४) । कर्णने हिमालयपर्वतपर आरूढ़ हो हिमवत्पदेशके समस्त भूपालोंको जीतकर उन सबसे कर वसूल किया (वन० २५४ । ४-६)। उत्तरमें हिमवान्के शिखरपर भगवान् महेश्वर भगवती उमाके साथ नित्य निवास करते हैं (उद्योग० १११।५)। हिमवान् पूर्वसे पश्चिम दिशाकी ओर फैले हुए छः वर्षपर्वतों से एक है (भीष्म० ६ । ३-५)। अर्जुनने स्वप्नमें भगवान् श्रीकृष्णके साथ कैलासकी यात्रा करते समय पवित्र हिमवान् पर्वतका शिखर देखा था (द्रोण० ८० । २३. २४)। त्रिपुरदाहके समय हिमवान् और विन्ध्य भगवान् रुद्रके रथमें आधारकाष्ठ बने थे (कर्ण०३४।२२)। गङ्गाने अपने गर्भको देवपूजित हिमवान् पर्वतके सुरम्य शिवरपर छोड़ दिया था, जिससे स्कन्द प्रकट हुए थे (कर्ण०४४।९)। कुमारकार्तिकेयका अभिषेक करनेके लिये गिरिराज हिमालयके अधिष्ठाता देवता हिमवान् भी पधारे थे (शल्य० ४५। १४-१८)। इन्होंने कुमारको सुवचों और अतिवर्चा नामक दो पार्षद प्रदान किये ये (शल्य० ४५। ४६-४७)। भगवान् श्रीकृष्णने हिमालयको घाटीमें रहकर बड़ी भारी तपस्याके द्वारा रुक्मिणीदेवीके गर्भसे प्रद्युम्नको जन्म दिया (सौप्तिक. १२ । ३०-३१) । पर्वतोंमें श्रेष्ठ हिमवान्ने राजा पृथुको अक्षय धन समर्पित किया था (शान्ति० ५९ । ११८)।
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