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( ४०२ )
हंस
होती है, अतएव
मुख हो; इसीलिये वह अभीष्ट साधक इस उत्कृष्ट अग्निका नाम 'स्विष्टकृत् ' । इसे बृहस्पतिका छठा पुत्र समझना चाहिये ( वन० २१९ । २१ ) । ( २ ) मनुके द्वितीय पुत्र विश्वपति नामक अग्नि, मनुकी कन्या रोहिणी भी स्विष्टकृत् मानी गयी है । इन्हींके प्रभाव से हविष्य की सुन्दरतासे आहुति - क्रिया सम्पन्न होती है; अतः वे 'स्विष्टकृत् ' कहलाते हैं (वन० २२१ । १७-१८ ) ।
( ह )
हंस - ( १ ) एक श्रेष्ठ पक्षी, कश्यपपत्नी ताम्रा देवीकी पुत्री धृतराष्ट्र से हंस उत्पन्न हुए थे ( आदि ० ६६ । ५६-५८ ) । सुवर्णमय पंख भूषित एक हंसने नल और दमयन्ती के पास एक दूसरेके संदेशको पहुँचाकर उनमें अनुराग उत्पन्न किया था ( वन० ५३ । १९ - ३२ ) । सप्तर्षियोंने हंसरूप धारण करके भीष्मके निकट आकर उन्हें दक्षिणायनमें प्राणत्याग करनेसे रोका था ( भीष्म० ११९ । १०२ ) । एक हंस और काकका उपाख्यान ( कर्ण० ४१ । १४ – ७० ) । ( २ ) जरासंधका एक मन्त्री, जो डिम्भकका भाई था । इसे किसी भी अस्त्र-शस्त्रसे मारे न जानेका देवताओं द्वारा वर प्राप्त था ( सभा० १४ । ३७ ) । यह अपने भाई डिम्भककी मृत्युका समाचार सुनकर यमुनाजी में कूद पड़ा और मर गया ( सभा० १४ । ४२ ) । जरासंघको सलाह देनेके लिये ये ही दोनों भाई नीतिनिपुण मन्त्री थे ( सभा० १९ । २६ ) । भीमसेनके साथ युद्धका निश्चय हो जानेपर इसने अपने इन दोनों स्वर्गीय मन्त्रियों-कौशिक और चित्रसेनका - हंस और डिम्भकका स्मरण किया था ( सभा० २२ । ३२ ) । (३) जरासंध की सेनाका एक राजा, जो सत्रहवीं बारके युद्धमें बलरामजीद्वारा मारा गया था ( सभा० १४ । ४० ) । हंसकायन-क्षत्रियोंकी एक जाति, इस जातिके उत्तम कुलोत्पन्न क्षत्रिय भेंट लेकर युधिष्ठिर के राजसूययज्ञमें आये थे ( सभा० ५२ । १४ )।
हंसकूट - एक पर्वत, यहाँ पत्नियों सहित पाण्डुका आगमन हुआ था। इसे लाँघकर शतशृङ्ग पर्वतपर पहुँचे थे ( आदि० ११८ | ५० ) । इस पर्वतका शिखर श्रीकृष्णने द्वारकापुर में स्थापित किया था, जो साठ ताड़के बराबर ऊँचा और आधा योजन चौड़ा था ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पा०, पृष्ठ ८१६ ) ।
हंसचूड़ - एक यक्ष, जो कुबेरकी सेवाके लिये उनकी सभा में उपस्थित रहता है ( सभा० १० । १७ ) । हंसज - स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ | ६८ ) । हंसपथ - एक देश, जहाँ के निवासी सैनिक द्रोणनिर्मित
गरुड़-व्यूहके ग्रीवाभागमें खड़े थे ( द्रोण० २० । ७ )। हंसप्रपतन तीर्थ- प्रयाग में स्थित एक त्रिलोकविख्यात तीर्थ,
जो गङ्गा तटपर अवस्थित है ( वन० ८५ । ८७ ) । हंसवक्त्र - स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७५ ) ।
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हर
हंसिका - सुरभिकी पुत्री, जो दक्षिण दिशाको धारण करनेवाली है ( उद्योग० १०२ । ७-८ ) ।
हंसी - राजर्षि भगीरथकी एक यशस्विनी कन्या, जिसका हाथ उन्होंने कौत्स ऋषिके हाथमें दिया था ( अनु० १३७ । २६)।
हनुमान - ( केसरीकी पत्नी अञ्जना देवीके गर्भसे वायुद्वारा उत्पन्न महावीर मारुति ) इनका कदलीवनमें भीमसेनका मार्ग रोककर लेटना ( वन० १४६ । ६६-६७ ) । इनका भीमसेनके साथ संवाद ( वन० अध्याय १४७ से १५० तक ) । इनका भीमसेनको संक्षितमें श्रीरामचरित्र सुनाना ( वन० १४८ अध्याय ) । इनके द्वारा चारों युगों धर्मोका वर्णन ( वन० १४९ अध्याय ) । इनका भीमसेनको अपना विशाल रूप दिखाना ( वन० १५० । ३-४ ) । इनके द्वारा चारों वर्णोंके धर्मका प्रतिपादन ( वन० १५० । ३० - ३६ ) । इनके द्वारा राजधर्म
वर्णन ( वन० १५० । ३७-४९ ) । इनका भीमसेनके सिंहनादको अपनी गर्जनासे बढ़ाने तथा अर्जुनकी ध्वजापर स्थित होकर अपनी भीषण गर्जनाद्वारा शत्रुओंको डराने की बात कहकर भीमसेनको आश्वासन दे अन्तर्धान होना ( वन० १५१ ।१६ - १९ ) । इनका लंकासे लौटकर श्रीरामसे सीताका समाचार बताना ( वन० २८२ । १७५७) | इनके द्वारा धूम्राक्षका वध ( वन० २८६ । १४) । इनके द्वारा वज्रवेगका वध ( वन० २८७ । २६ ) । इनका दूत बनकर भरत के पास जाना और लौटकर श्रीरामको इसकी सूचना देना ( वन० २९१ । ६१-६२ ) । हन्यमान - एक दक्षिणभारतीय जनपद ( भीष्म० ९/६९ ) । हयग्रीव - ( १ ) नरकासुरके राज्यकी रक्षा करनेवाले चार असुरोंमेंसे एक, श्रीकृष्णद्वारा ही इसका वध होनेवाला था (सभा० ३८ | २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ट ८०५ ) । श्रीकृष्णद्वारा हयग्रीवके मारे जाने की चर्चा ( उद्योग० १३० | ५० ) । ( २ ) विदेह वंशका एक कुलाङ्गार राजा ( उद्योग० ७४ । १५) । ( ३ ) एक प्राचीन राजर्षि, जो शत्रुओं पर विजय पा चुके थे, किंतु पीछे असहाय होने के कारण मारे गये । इन्होंने युद्धसे उत्तम कीर्ति पायी और अब स्वर्ग में आनन्द भोगते । इनका विशेष वर्णन (शान्ति० २४ । २३ – ३४ ) । हयज्ञान - अश्वसंचालनकी एक विद्या, जिससे घोड़ोंकी गति बहुत अधिक बढ़ जाती है तथा उनके गुण-दोष भी जाने जाते हैं (वन० ७७ । १७ ) । हयशिरा ( हयग्रीव ) भगवान्का एक अवतार | इनका विशेष वर्णन ( शान्ति० ३४७ अध्याय ) । हर - ( १ ) एक विख्यात दानव, जो दनुके गर्भसे कश्यपद्वारा उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६५ | २५ ) | यह राजा सुबाहुके रूपमें पृथ्वीपर पैदा हुआ था ( आदि ० ६७ । २३-२४ ) । ( २ ) महादेवजी, ये स्कन्दके अभिषेक में पधारे थे ( शल्य० ४५ । १० ) । 'हर'