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सिंहचन्द्र
( ३८१ )
सिन्धु
सिंहचन्द्र-युधिष्ठिरका सम्बन्धी और सहायक राजा (द्रोण शापसे यदि पागलपन आदि दोष प्राप्त हों तो उन्हें सिद्ध१५८ । ४.)।
रूपी ग्रहकी बाधा' समझना चाहिये (वन० २३० । सिंहपुर-उत्तरभारतका एक प्राचीन पर्वतीय नगर, जो ४९)।
राजा चित्रायुधक द्वारा सुराक्षत एव सुरम्य था। इस सिद्धपात्र-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य.४५। ६६)। अर्जुनने उत्तरदिग्विज के समय जीतकर अपने अधिकारमें
सिद्धार्थ-(१) एक राजा, जो क्रोधवश' संज्ञक दैत्यके कर लिया था ( सभा० २७ । २०)। सिंहल-एक देश और जाति । नन्दिनीके पार्श्वभागसे
___ अंशसे उत्पन्न हुआ था (आदि० ६७ । ६०)। (२)
स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६४)। सिंहलनामक म्लेच्छ जातियोंकी सृष्टि हुई थी (आदि.
सिद्धि-(१) एक देवी, जो कुन्तीके रूपमें इस भूतलपर १७४ । ३७) । सिंहलदेशके नरेश युधिष्ठिरके राजसूय
प्रकट हुई थीं (आदि०६७ । १६०)। ये दैत्योंके यज्ञमें पधारे थे (सभा० ३४ । १२)। इस देशके
साथ युद्ध के लिये जाते हुए स्कन्दके सैनिकोंके आगे-आगे चलती क्षत्रियोंने राजा युधिष्ठिरको समुद्रका सारभूत वैदूर्य, मोतियों के ढेर तथा हाथियों के सैकड़ों झूल अर्पित किये। सिंहल
थी (शल्य०४६ । ६४)। (२) वीर नामक अग्निक
पुत्र, इनकी माताका नाम सरयू था। इन्होंने अपनी प्रभासे देशीय वीर मणियुक्त वस्त्र पहने हुए थे । इनके शरीरका
सूर्यको भी आच्छादित कर लिया । सूर्य के आच्छादित हो रंग काला और आँखोंके कोने लाल दिखायी देते थे
जानेपर इन्होंने अग्निदेवतासम्बन्धी यज्ञका अनुष्ठान किया (सभा० ५२ । ३५-३६) । सिंहलदेशके सैनिक
था। आह्वान-मन्त्रमें इन्हींकी स्तुति की जाती है (वन. द्रोणद्वारा निर्मित गरुडव्यूह के भीतर उसके ग्रीवाभागमें
२१८ । ११)। खड़े थे (द्रोण.२०।६)। सिंहसेन-(१) एक पाञ्चालदेशीय पाण्डवपक्षका योद्धा,
सिनीवाक्-एक महर्षि, जो राजा युधिष्ठिरकी सभामें विराजते
थे ( सभा० ४ । १४)। इसका द्रोणाचार्यके साथ युद्ध और उनके द्वारा मारा जाना (द्रोण. १६ । ३२-३७)।(२) एक पाण्डव
सिनीवाली-महर्षि अङ्गिराकी तृतीय पुत्री ( चतुर्दशीयुक्ता पक्षीय पाञ्चाल योद्धा । इसके रथके घोड़ोंका वर्गन
अमावस्या), इनका दूसरा नाम है-दृश्यादृश्या'; (द्रोण.२३ । ५०)। इसका कर्ण के साथ युद्ध और
क्योंकि ये अत्यन्त कृश होनेके कारण कभी दिखायी देती
हैं, कभी नहीं। भगवान् रुद्र इन्हें अपने ललाटपर धारण उसके द्वारा घायल होना ( कर्ण० ५६ । ४४-४८)।
करते हैं। अतः इनको रुद्रसुता भी कहते हैं (वन. सिंहिका-दक्ष प्रजापतिकी पुत्री और कश्यप ऋषिकी पत्नी
२१८ । ५) । त्रिपुरदाइके समय भगवान् शंकरने इन्हें (आदि० ६५ । १२)। इसके गर्भसे चार पुत्र उत्पन्न
अपने रथके घोड़ोंके लिये जोता बनाया था (कर्ण० ३४ । हुए थे, जिनके नाम हैं-राहु, चन्द्र, चन्द्रहर्ता और
३२-३३)। ये स्कन्दके जन्म-समयमें उन्हें देखने के चन्द्रप्रमर्दन ( आदि० ६५ । ३१)।
लिये आयी थीं (शल्य.४५। १३)। सिकत-एक प्राचीन महर्षि, जिन्होंने द्रोणाचार्यके पास
सिन्धु-(१) एक महानद, जिसके तटवर्ती निकुञ्जमें जाकर उनसे युद्ध बंद करनेको कहा था (द्रोण.
शत्रुओंसे पराजित राजा संवरणने आश्रय लिया था १९० । ३५-४०)। इन्हें स्वाध्यायद्वारा स्वर्गकी प्राप्ति
(आदि० ९४ । ४०)। (यह पंजाबके पश्चिम भागमें हुई थी (शान्ति. २६ । ७)।
है।) यह वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना करता सिकताक्ष-एक तीर्थ, जिसका दर्शन युधिष्ठिरने किया था
है (सभा० ९ । १९)। इसे मार्कण्डेयजीने भगवान् (वन० १२५ । १२)।
बालमुकुन्दके उदरमें देखा था (वन०१८८ । १०३)। सित-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५। ६९)।
यह अग्निकी उत्पत्तिका स्थान है ( वन० २२२ । २२)। सिद्ध-(१) एक देवगन्धर्व, जो कश्यपके द्वारा प्राधा'से गङ्गाकी सात धाराओंमेंसे एक है ( भीष्म०६ । ४८)।
उत्पन्न हुआ था (आदि. ६५ । ४६)।(२) एक इस पवित्र नदका जल भारतवासी पीते हैं (भीष्म०९। प्रकारके देवगण, जो हिमालय पर्वतपर कण्वके आश्रमके २१)। इस महानदमें स्नान करके शीलवान् पुरुष निकटवर्ती तपोवनमें विचरते थे (आदि०७०।१५)। मृत्युके पश्चात् स्वर्गमें जाता है ( अनु० २५८)। ये यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं स्त्रीधर्मका वर्णन करते समय अन्य नदियोंके साथ इसका (सभा०८ । २९)। (३) एक भारतीय जनपद भी शिव-पार्वतीके समीप आगमन हुआ था (अनु० १४६ । (भीष्म०९। ५७)।
१८)। यह सायं-प्रातः स्मरणीय नद है (अनु. १६५ । सिद्धग्रह-सिद्धरूपी ग्रह, तिरस्कृत किये हुए सिद्ध पुरुषोंके १९)। (२) एक जनपद, जिसका स्वामी जयद्रथ
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