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शल्य
( ३४३ )
शल्य
हुए राजा शल्यसे मिले थे ( सभा० ५८ । २४-२५)। (द्रोण० १.५। १८-२०)। ये जयद्रथके संरक्षोंमें पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें रण-निमन्त्रण भेजनेका निश्चय थे। इनका अर्जुनके साथ युद्ध (द्रोण. १४५। ९, किया गया ( उद्योग. ४८)। मार्गमें दुर्योधनके ५५)। अर्जुनका इन्हें बाण मारना (द्रोण. १४६। सत्कारसे प्रसन्न होकर उसके पक्षमें रहनेके लिये इनका ५४)। इनके द्वारा विराटके भाई शतानीकका वध और उसे वर देना (उद्योग० ८ । १८ के बाद दा० पाठ)। विराटकी पराजय (द्रोण. १६७ । ३०-३४)। युधिष्ठिरके पास जाना, पाण्डवोंसे मिलना, वहाँका सत्कार द्रोणाचार्यके मारे जानेपर युद्धस्थलसे भागना (द्रोण. ग्रहण करके युधिष्ठिरसे बातचीत करना और उन्हें कर्णका १९३ । ")। इनपर श्रुतकीर्तिका आक्रमण (कर्ण. उत्साह नष्ट करनेके लिये वर देना ( उद्योग०८।२४- १३ । १०)। कर्णका दुर्योधनसे इनके बल-पराक्रम एवं ४८)। इनका युधिष्ठिरको इन्द्रविजय नामक उपाख्यान अश्वविज्ञानकी प्रशंसा करके इनको अपना सारथि बनानेके सुनाना (उद्योग० अध्याय ९ से १८ । २० तक)। लिये प्रस्ताव करना (कर्ण. ३१ । ५८-६९)। कुन्तीकुमारोंसे विदा लेकर दुर्योधनके पास लौटना कर्णका सारथ्य करनेके लिये दुर्योधनके कहनेपर इनका (उद्योग० १८ । २५)। इनका एक अक्षौहिणी सेना ___ कुपित होकर उसे रोषपूर्ण उत्तर देना और रूठकर चल लेकर दुर्योधनके पास आना ( उद्योग० १९ । १६- देना; फिर श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसके १७) । दुर्योधन का धृतराष्ट्रके समक्ष इनके पराक्रमका प्रस्तावको स्वीकार कर लेना (कर्ण. ३२ अध्याय)। वर्णन करना (उद्योग० ५५ । ४३ ) । दुर्योधनका दुर्योधनका इन्हें त्रिपुर-विजयकी कथा सुनाना ( कर्ण. इनको एक अक्षौहिणी सेनाका नायक नियत करके इनका ३३, ३४ अध्याय) । इनका दुर्योधनके साथ वार्तालाप विधिवत् अभिषेक करना ( उद्योग० १५५। ३२-३३)। और कर्णका सारथि बननेके लिये अपनी स्वीकृति देना युधिष्ठिरको युद्धकी आज्ञा देकर उनकी शुभ कामना करना (कर्ण० ३५ अध्याय) । कर्णसे पाण्डवोंकी प्रशंसा (भीष्म० ४३ । ७९-८७)। प्रथम दिनके संग्राममें करना (कर्ण० ३६ । २७-३२) । कर्णको फटकारयुधिष्ठिरके साथ द्वन्दूयुद्ध (भीष्म०४५। २८-३०)। कर अर्जुनकी प्रशंसा करना (कणे० ३७ । ३३-४०)। इनके द्वारा विराटकुमार उत्तरका वध (भीष्म०४७। कर्णके प्रति आक्षेपपूर्ण वचन (कर्ण० ३९ अध्याय)। ३५-३९)। इनके द्वारा विराटकुमार शङ्खकी पराजय कर्णका शल्यको फटकारना और मारनेकी धमकी देना (भीष्म ४९ । ३९)। इनका धृष्टद्युम्नके साथ युद्ध (कर्ण० ४० अध्याय) । कर्णको कौवे और हंसका (भीष्म० ६३। ८-१४)। भीमसेनद्वारा इनकी उपाख्यान सुनाकर फटकारना (कर्ण०४१ अध्याय)। इनका पराजय (भीष्म०६४।२७)। इनका युधिष्ठिरके कर्णको उत्तर देना (कर्ण०४५।४०-५६)। इनके साथ युद्ध (भीष्म० ७१ । २०-२१)। नकुल और द्वारा कर्णसे अर्जुनकी प्रशंसा तथा पाण्डव-पक्षके प्रमुख वीरोंका सहदेवका इनपर आक्रमण (भीष्म० ८१।२६)। वर्णन (कर्ण०४६।४१-८६)। भीमसेनको अर्जुनकी सहदेवद्वारा इनकी पराजय (भीष्म०८३॥ ५१-५३)। प्रतिज्ञाका स्मरण कराकर कर्णकी जीभ काटनेसे रोकना शिखण्डीपर इनका आक्रमण (भीष्म० ८५।२७)। (कर्ण० ५०। ४७ के बाद दा० पाठ)। कर्णको नकुल, इनका पाण्डवोंके साथ युद्ध में युधिष्ठिरको घायल करना ___ सहदेव तथा युधिष्ठिरके वधसे रोकना (कर्ण०६३ । २१(भीष्म० १०५ । ३०-३३)। भीमसेन और अर्जुनके २९)। कर्णसे अर्जुनके पराक्रमका वर्णन करके उन्हें साथ युद्ध (भीष्म. ११३, ११४ अध्याय )। मारनेके लिये कहना ( कर्ण० ७९। १९-४८)। भीमयुधिष्ठिरके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११६। ४०.४१)। सेनके भयसे डरे हुए कर्णको समझाना (कर्ण० ४४ । नकुलके साथ युद्ध (द्रोण. १४ । ३१-३२ )। ८-१७)। कर्णकी बातका उत्तर देना ( कर्ण०८७। अभिमन्युके साथ युद्ध (द्रोण. १३ । ७०-८२)। १०३) कर्णवधसे दुःखित हुए दुयोधनको सान्त्वना देना भीमसेनके साथ गदायुद्ध और इनकी पराजय (द्रोण. (कर्ण० ९२ । १०-१४) । दुर्योधनसे रणभूमिका १५। ८-३२)। युधिष्ठिरके साथ युद्ध (द्रोण. संक्षिप्त वर्णन करना (कर्ण० ९४ । २-२३)। दुर्योधन२५ । १५-१७)। अभिमन्युके साथ युद्ध और उसके की प्रार्थनासे सेनापति-पद स्वीकार करना (शल्य०६। प्रहारसे मूञ्छित होना ( द्रोण० ३७ । २४-३४ २८)। इनके वीरोचित उद्गार (शल्य. . ।।द्रोण. ३८ । ३)। अभिमन्युद्वारा पराजित होना २०)। इनका अद्भुत पराक्रम (शल्य. १५। २०(द्रोण० ४८ । १४-१५)। युधिष्ठिरके साथ युद्ध ३२)। भीमसेनद्वारा इनकी पराजय (शल्य०११।६०(द्रोण० ९६ । २९-३० ) । अर्जुनको बाण मारना २२)। भीमसेनके साथ गदायुद्ध ( शल्य. १२।१३(द्रोण. १०४ । २७-२८) । इनके ध्वजका वर्णन २७) । युधिष्ठिरके साथ युद्ध (शल्य १२ । -
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