Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 382
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सात्वत सामुद्रकताथ -- - ( मौसल० ३ । १६-१८)। प्रद्युम्नद्वारा इनके कथनका स्वयंवर देखनेके लिये ये लोग विमानोंद्वारा द्रुपदनगरके अनुमोदन तथा कृतवर्माद्वारा भूरिश्रवाके वधकी बात आकाशमें स्थित थे (आदि० १८६ । ६)। नैमिषाकहकर इनका तिरस्कार (मौसल. ३। १९-२१)। रण्यक्षेत्रमें देवताओंद्वारा आयोजित यज्ञमें ये सब लोग इनका भगवान् श्रीकृष्णको कृतवर्माद्वारा स्यमन्तकमणिके पधारे थे (आदि० १९६ । ३)। खाण्डवदाहके समय अपहरण और सत्राजित्के वधका स्मरण दिलाना और श्रीकृष्ण और अर्जुनके साथ युद्ध के लिये ये नाना सत्यभामाको रोती देख क्रोधपूर्वक उठकर तलवारसे प्रकारके अस्त्र-शस्त्र लेकर आये थे (आदि० २२६ । कृतवर्माका सिर काट लेना (मौसल० ३ । २२-२८)। ३८)। साध्यगण इन्द्रकी सभामें विराजमान होते हैं इन्हें दूसरे लोगोंका भी वध करते देख श्रीकृष्णका इन्हें (सभा० ७।२२)। ये ब्रह्माजीकी सभामें भी उनकी रोकने के लिये दौड़ना, भोजों और अन्धकोंका एक मत आराधनाके लिये उपस्थित होते हैं (सभा० १११४४)। होकर इन्हें चारों ओरसे घेरकर जूठे बर्तनोंसे मारना । स्कन्द और तारकासुरके युद्ध के समय इन्होंने भी दानवोंके इन्हें बचानेके लिये प्रद्युम्नका बीचमें कूद पड़ना । प्रद्युम्न- साथ युद्ध किया था (वन० २३१ । ७३) । दत्तात्रेयजीसहित सात्यकिका भोजों और अन्धकोंके साथ जूझना से उनकी उदार वाणी सुननेके लिये इनकी प्रार्थना और श्रीकृष्णके देखते-देखते बहुसंख्यक विपक्षियोंद्वारा (उद्योग०३६ । ३)। कर्ण और अर्जुनके युद्ध में मारा जाना (मौसल. ३ । २९-३३)। अर्जुनने इनके इन्होंने अर्जुनकी ही विजयका समर्थन किया था (कर्ण. प्रिय पुत्र यौयुधानिको सरस्वतीके तटवर्ती देशका अधिकारी ८७ । ४६)। स्कन्दके जन्मकालमें ये लोग उन्हें एवं निवासी बनाया तथा वृद्धों और बालकोंको उसके देखने के लिये आये थे (शल्य.४४ । २९)। स्कन्दके साथ कर दिया ( मौसल० ७ । ७१) । स्वर्गमें पहुँचकर अभिषेकके समय भी इनकी उपस्थिति थी (शल्य. इनका मरुद्गणोंमें प्रवेश (स्वर्गा० ४।१७-१८)। ४५। ६)। इन्होंने स्कन्दको सेनापति अर्पित किये थे महाभारतमें आये हुए सात्यकिके नाम-आनर्त, शैनेय, (शल्य० ४५। ५३)। ये लोग राजा मरुत्तके यशमें रसोई परोसनेका काम करते थे (शान्ति० २९ । शैनेयनन्दन, शौरि, शिनिपौत्र, शिनिपुत्र, शिनिसुत, शिनिनप्ता, शिनिप्रवर, शिनिप्रवीर, शिनिपुङ्गव, शिनिवीर, २२)। साध्यगण धर्मके पुत्र कहे गये हैं (शान्ति. शिनिवृषभ, दाशार्ह, माधव, माधवाग्र्य, माधवसिंह, २०७ । २३)। हंसरूपधारी ब्रह्मासे मोक्षविषयक इनका प्रश्न करना (शान्ति. २९९ अध्याय)। ये लोग माधबोत्तम, मधूदह, सात्वत, सात्वतश्रेष्ठ, सात्वताग्य, मुञ्जवान् पर्वतपर भगवान् शिवकी आराधना करते हैं सात्वतमुख्यः सात्वतप्रवर, सात्वतर्षभ, सात्यक, वार्ष्णेय, वृष्णि, वृष्णिशार्दूल, वृष्णिकुलोद्वह, वृष्णिप्रवीर, वृष्णि (आश्व० ८ 1 1-४)। पुङ्गव, वृष्णिसिंह, वृष्णिवर, वृष्णिवीर, वृष्ण्यन्धकप्रवीर, सान्दीपनि-भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजीके विद्यागुरु, वृष्ण्यन्धकव्याघ्र, यादव, यदूद्वह, यदूत्तम, यदुवीर, जिनके यहाँ वे दोनों भाई अध्ययन के लिये गये थे। यदुव्याघ्र और युयुधान आदि। इन्होंने उन्हें छहों अङ्गोसहित सम्पूर्ण वेद, चित्रकला, सात्वत-(१) यदुकुलमें उत्पन्न एक श्रेष्ठ महापुरुष, गणित, गान्धर्ववेद तथा वैद्यक भी पढ़ाये थे । गजशिक्षा जिनके वंशमें उत्पन्न मनुष्य सात्वत कहे गये हैं।। तथा अश्वशिक्षाका भी ज्ञान कराया था। ये धनुर्वेदके सात्यकि भी सात्वतकुलके ही एक रत्न थे (सभा० २। श्रेष्ठ आचार्य थे। इन्होंने श्रीकृष्ण-बलरामको दस अङ्गो. ३०)। (२) भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम सहित सुप्रतिष्ठित एवं रहस्यसहित सम्पूर्ण धनुर्वेदका तथा इसकी निरुक्ति (शान्ति० ३४२ । ७७-७८)। ज्ञान प्राप्त कराया । इसके बाद सान्दीपनिजीने गुरु दक्षिणाके रूपमें इन दोनों भाइयोंसे अपने मरे हुए साद्यस्क-एक प्रकारका राजर्षि-यज्ञ, जो एक ही दिनमें समात होनेवाला होता है (वन० २४० । १६)। पुत्रको माँगा और उसे जीवित करके ला देनेकी आज्ञा दी । तब उन दोनों भाइयोंने गुरुदक्षिणाके रूपमें इन्हें साध्य-एक गणदेवता, विराट-अण्डसे इनके प्रकट होनेका बहुत-सा धन ऐश्वर्य देकर इनके मरे हुए पुत्रको भी कथन (आदि० १ । ३५) । अमृतके लिये जीवित करके दे दिया (सभा०३८ । २९ के बाद गड और देवताओंमें युद्ध होते समय ये लोग पक्षि दा० पाठ, पृष्ठ ८०२)। राजसे पराजित हो भाग गये थे ( आदि० ३२ । १६)। विश्वामित्रके प्रभावसे इनके भयभीत रहने की चर्चा सामुद्रकतीर्थ-एक पवित्र तीर्थ, जो अरुन्धतीवटके समीप ( आदि०७१ । ३९) । अर्जुनके जन्म-समयमें साध्यगण है । इसमें स्नान करके ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक एकाग्रचित्त वहाँ पधारे थे (आदि. १२२ । ७.)। द्रौपदीका हो तीन रात उपवास करनेसे अश्वमेधयश तथा सहस्त्र For Private And Personal Use Only

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