Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 379
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहदेव सहस्रजित् ६६ । १९)। अश्वमेध-यज्ञके अवसरपर व्यासजी और पुत्र, पाण्डुसुत, तन्तिपाल, यम, यमज, माद्रीसुत आदि । युधिष्ठिरके द्वारा इन्हें कुटुम्ब-पालन-सम्बन्धी समस्त कार्यों- (२) एक महर्षि, जो इन्द्रकी सभामें विराजते थे की देखभालका काम सौंपा जाना। (आश्व० ७२।२०- ( सभा० ७ । १६ )। (३) एक प्राचीन राजा, २६)। वनको जाती हुई कुन्तीका इन्हें युधिष्ठिरको सौंपना जो यम-सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं और इनपर सदा प्रसन्न रहनेके लिये आदेश देना (सभा० ८।१७)। आचार्य नीलकण्ठके मतानुसार ( आश्रम १६ । १०)। नकुल और सहदेव ये सुप्रसिद्ध राजा सृञ्जयके पुत्र थे | इन्होंने यमुनाके गुरुजनोंकी आज्ञाके पालनमें लगे रहनेवाले थे, इन्हें अमिशिर नामक तीर्थमें एक लाख स्वर्ण-मुद्राओंकी दक्षिणा भूखका कष्ट न उठाना पड़े, इसके लिये कुन्तीने देकर विशाल यज्ञका अनुष्ठान किया था (वन० ९० । युधिष्ठिरको युद्धके निमित्त उत्साह दिलाया था ( आश्रम ५-७)। (४) जरासंधका पुत्र । इसके दो छोटी १७ । ८)। माताके दर्शनके लिये युधिष्ठिरके वन-गमन- बहिनें थीं, जो कंसको ब्याही गयी थीं। उनके नाम विषयक विचारको जानकर इनका हर्ष प्रकट करना और थे—अस्ति और प्राप्ति ( सभा० १४ । ३१)। यह स्वयं भी उनके साथ जानेकी उत्सुकता दिखाना (आश्रम द्रौपदीके स्वयंवरमें आया था (आदि० १८५।८)। २२ । ९-१३) । वनमें माताको दूरसे ही देखकर इनका जरासंधका इसके राज्याभिषेककी आज्ञा देना (सभा० दौड़ना और पास पहुँचकर उनके दोनों चरण पकड़कर २२ । ३.)। पिताके मारे जानेपर इसका भेंट लेकर फूट-फूटकर रोना, नेत्रोंसे आँसू बहाती हुई कुन्तीका भी भगवान् श्रीकृष्णकी शरणमें जाना । श्रीकृष्णका इसे इन्हें हाथोंसे उठाकर छातीसे लगा लेना और गान्धारीको अभयदान देकर पिताके राज्यपर अभिषिक्त करना इनके आगमनकी सूचना देना (आश्रम०२४।८-१०)। और इसको अपना अभिन्न सुहृद बना लेना । भीम संजयका ऋषियोंसे सहदेव तथा इनकी पत्नीका परिचय देना और अर्जुनद्वारा भी इसका सत्कार होना ( सभा० (आश्रम० २५। ८-१३) । इनका अपने नेत्रोंमें आँसू भर- २४ । ४२-४३ दाक्षिणात्य पाठसहित ) । एक कर युधिष्ठिरके समक्ष वनमें रहनेकी इच्छा प्रकट करना, अक्षौहिणी सेनाके साथ इसका युधिष्ठिरकी सहायताके माताको छोड़कर घर जानेसे अरुचि दिखाना और माता- लिये आना (उद्योग० १९ । ८)। संजयद्वारा इसकी पिताकी सेवा करते हुए तपस्यासे शरीरको सुखा डालनेका वीरताका वर्णन ( उद्योग० ५० । ४८)। युधिष्ठिरकी विचार व्यक्त करना । इनकी बात सुनकर कुन्तीका इन्हें सेनाके सात सेनापतियोंमेंसे एक मगधराज सहदेव भी छातीसे लगा लेना और अपनी बात माननेके लिये कहकर था, जिसका युधिष्ठिरने उक्त पदपर अभिषेक किया था घर जानेकी आज्ञा देना (आश्रम ३६ । ३६-४३)। ( उद्योग० १५७ । ११-१४ )। इसके घोड़ोंका माद्रीकुमार सहदेव भी जोमाता कुन्तीको विशेष प्रिय रहे है, वर्णन (द्रोण. २३ । १८)। द्रोणाचार्यद्वारा इसका उन्हें आगमें जलनेसे बचा न सके-ऐसा कहकर युधिष्ठिरका वध (द्रोण० १२५ । ४५)। विलाप ( आश्रम० ३८ ॥ १८-१९)। युधिष्ठिर, भीमसेन, महाभारतमें आये हुए सहदेवके नाम-जरासंधसुत, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी-ये छः व्यक्ति एक ही ___ जरासंधात्मज, जारसंधि और मागध । हृदयरखते थे (मौसल० १७ । ३)। इनका युधिष्ठिरके महाप्रस्थानविषयक निश्चयका अनुमोदन ( महाप्र० ।।५)। सहभोजन-रुडकी प्रमुख संतानोंकी परम्परामें उत्पन्न इनकी भाइयोंके साथ महाप्रस्थान-यात्रा ( महाप्र. एक पक्षी ( उद्योग० १०१ । १२)। ।। २२-२५)। उस यात्रामे ये नकुलके पीछे और सहनचित्य-एक प्राचीन नरेश, जिन्होंने एक ब्राह्मणके द्रौपदीके आगे चलते थे (महाप्र० ।।३१-३२)। लिये अपने प्राणोंका बलिदान करके स्वर्ग प्राप्त किया था महागिरि मेरुके पास द्रौपदीके पतनके पश्चात् मार्गमें (अनु० १३७ । २०)। ये तेजस्वी नरेश केकयदेशकी सहदेवका भी धराशायी होना और भीमसेनके पूछनेपर प्रजाका पालन करते थे तथा राजर्षि शतयूपके पितामह युधिष्ठिरका इनके पतनका कारण बताना (महाप. थे। ये अपने परम धर्मात्मा ज्येष्ठ पुत्रको राज्यका भार २।२-११)। सौंपकर वनमें तपस्याके लिये चले गये और अपनी उद्दीप्त महाभारतमें आये हुए सहदेवके नाम-आश्विनेय, तपस्या पूरी करके इन्द्रलोकको प्राप्त हुए । तपस्यासे इनके अश्विनीसुत, अश्विसुत, भरतशाल, भरतश्रेष्ठ, भरतर्षभ, सारे पाप भस्म हो गये थे (आश्रम० २० । ६-९)। भरतसत्तम, कौरव्य, कुरुनन्दन, माद्रीपुत्र, माद्रवतीसुत, सहस्रजित-एक महायशस्वी राजर्षि, जिन्होंने ब्राह्मणके माद्रेय, माद्रीनन्दन, माद्रीनन्दनक, माद्रीनन्दकर, लिये अपने प्यारे प्राणोंका त्याग करके उत्तम लोक प्राप्त माद्रीतनुज, नकुलानुज, पाण्डव, पाण्डुनन्दन, पाण्डु- किया था (शान्ति. २३४ । ३१)। For Private And Personal Use Only

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