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सहदेव
( ३७४ )
सहदेव
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एवं खाद्यान्न जुटानेके लिये राजा युधिष्ठिरकी आज्ञा (समा० ३३ । २७-३१)। राजसूययज्ञके समय ये युधिष्ठिरके मन्त्री थे (सभा० ३३ । ४०)। इनके द्वारा राजसूय यज्ञमें श्रीकृष्णकी अग्रपूजा ( सभा० ३६ । ३०)। श्रीकृष्णकी अग्रपूजाके अवसरपर इनकी विरोधी राजाओंको चुनौती (सभा० ३९ । १-५)। राजसूय-यज्ञके बाद ये आचार्य द्रोण और अश्वत्थामाको पहुँचानेके लिये उनके साथ गये थे (सभा० ४५ । ४८)। युधिष्ठिरके द्वारा ये जुएके दाँवपर रखे और हारे गये थे (सभा० ६५ । १५)। इनकी शकुनिको मारनेकी प्रतिज्ञा (सभा० ७७ । २९-४२) । इस दुर्दिनमें कोई मुझे पहचान न ले यही सोचकर सहदेव अपने मुँहमें मिट्टी लपेटकर वनकी ओर गये थे (सभा० ८० । १७)। इनकी अर्जुनके लिये चिन्ता(वन०००।२७-३०)। इनका जटासुरकी पकड़से छूटकर भीमसेनको पुकारना (वन० १५७ । ११)। इनका शिष्योंसहित दुर्वासाको बुलानेके लिये नदीतटपर जाना और खोजना (वन० २६३ । ३७-३८) । द्रौपदीद्वारा जयद्रथसे इनके पराक्रम और ज्ञान आदि सद्गुणोंका वर्णन (धन० २७० । १५-१९)। द्रौपदी-हरणके समय अपने घोड़ोंके मारे जानेपर युधिष्ठिरका सहदेवके रथपर आना तथा धौम्य एवं द्रौपदीको भी सहदेवद्वारा उसी रथपर चढ़वाना (वन० २७१ । १५-३४) । द्वैतवनमें जल लानेके लिये जाना और सरोवरपर गिरना (वन० ३१२।१९)। इनका विराटनगरमें तन्तिपाल नामसे रहनेकी बात बताना (विराट. ३ । ९)। राजा विराटके यहाँ अरिष्टनेमि नामक वैश्यके रूपमें अपना परिचय देकर उनसे अपनेको रखनेके लिये प्रार्थना करना और उनके द्वारा गोशालाध्यक्षके पदपर नियुक्त होना (विराट. १०। ५-१६)। ये ग्वालेका वेष धारण करके पाण्डवोंको दूध, दही, घी दिया करते थे (विराट. १३।९)। द्रौपदीका भीमसेनसे सहदेवकी वर्तमान दुःखमयी परिस्थिति बताकर उनके लिये शोक प्रकट करना (विराट. १९ । ३३-४१)। विराटकी गौओंके अपहरणके समय इनका त्रिगतॊके साथ युद्ध (विराट० ३३ । ३४)। संजयद्वारा धृतराष्ट्रसे इनकी वीरताका वर्णन ( उद्योग० ५० । ३१-३३)। शान्तिदूत बनकर जानेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णसे युद्धकी ही योजना बनानेकी सम्मति देना (उद्योग० ८१। १-४)। इनका विराटको सेनापति बनानेका प्रस्ताव (उद्योग० १५१।१०)। उलूकसे दुर्योधनके संदेशका उत्तर देते हुए पुत्रसहित शकुनिको मार डालनेकी घोषणा करना (उद्योग० १६२।३१-३६)। उलूकसे दुर्योधनके संदेशका
उत्तर देना (उद्योग० १६३।३९-४०)। कवच उतारकर पैदल ही कौरवसेनाकी ओर जाते हुए युधिष्ठिरसे प्रश्न करना (भीष्म० ४३ । १९)। प्रथम दिनके संग्राममें दुर्मुखके साथ द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म० ४५ । २५-२७)। विकर्णके साथ युद्ध (भीष्म ७१ । २१)। इनके द्वारा शल्यको पराजय (भीष्म० ८३ । ५३)। कौरवोंकी अश्वसेनाका संहार (भीष्म ८९ । ३२-३४)। इनके द्वारा घुड़सवारोंकी सेनाका संहार एवं पलायन (भीष्म० १०५।१६-२३)। इनका कृपाचार्यके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म०११०१२-१३भीष्म० ११११२८-३३)। धृतराष्ट्रद्वारा इनकी वीरताका वर्णन (द्रोण. १०। ३१-३२)। शकुनिके साथ इनका युद्ध (द्रोण. १४ । २२-२५)। इनके रथके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण० २३। ९)। शकुनिके साथ युद्ध (द्रोण०९६ । २१-२५)। दुर्मुखके साथ युद्ध (द्रोण. १०६ । १३)। इनके द्वारा दुर्मुखकी पराजय (द्रोण० १०७।२१-२४)। त्रिगर्तराजकुमार निरमित्रका वध (द्रोण० १०७ । २५-२६)। कर्णके साथ युद्ध में इनकी पराजय (द्रोण० १६७ । १५)। दुःशासनके साथ युद्ध और उसे परास्त करना (द्रोण. १८८।२-९) । इनका धृष्टद्युम्नकी रक्षामें जाना (द्रोण. १८९७)। धृष्टद्युम्नको मारनेके लिये झपटते हुए सात्यकिको अनुनय-विनयसे शान्त करना (द्रोण. १९८ । ५३-५९) । इनके द्वारा पुण्ड्रराजकी पराजय (कर्ण० २२ । १४-१५ )। दुःशासनकी पराजय (कर्ण० २३ अध्याय)। दुर्योधनके साथ युद्धमें इनका घायल होना ( कर्ण० ५६ । ७-१८)। इनके द्वारा उलूकको पराजय (कर्ण०६१ । ४४ ) । कर्णद्वारा इनकी पराजय ( कर्ण० ६३ । ३३)। इनके द्वारा शल्यके पुत्रका वध (शल्य०११। ४३)। शल्यके साथ युद्ध (शल्य० १३ अध्यायः शल्य १५ अध्याय)। इनके द्वारा शकुनिपुत्र उलूकका वध (शल्य. २८ । ३२-३३)। इनके द्वारा शकुनिका वध (शल्य. २८ । ४६-६१)। युधिष्ठिरको ममता और आसक्तिसे रहित होकर राज्य करनेकी सलाह देना (शान्ति० १३ अध्याय) युधिष्ठिरद्वारा इन्हें सभी अवस्थाओंमें अपनी रक्षाका कार्य सौंपना (शान्ति०४१।१५)। युधिष्ठिरद्वारा इनके लिये दिये गये दुर्मुखके महलमें इनका प्रवेश (शान्ति० ४४ । १२-१३)। युधिष्ठिरके पूछनेपर इनका त्रिवर्गमें अर्थकी प्रधानता बताना (शान्ति० १६७ । २२-२७)। इनके द्वारा शकुनिके मारे जानेकी श्रीकृष्णद्वारा चर्चा (आश्व. ६० । २५)। अभिमन्युके बालककी रक्षासे युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेवके भी जीवनकी रक्षा होगी--ऐसा कुन्तीका श्रीकृष्णके प्रति कथन (आश्व.
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