Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

View full book text
Previous | Next

Page 377
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सबिता www.kobatirth.org ( ३७३ ) सविता - बारह आदित्योंमेंसे एक । इनकी माता अदिति और पिता कश्यप हैं ( आदि० ६५ । १५ ) । सव्यसाची - अर्जुनका एक नाम और इसकी निरुक्ति ( विराट० ४४ । १९ ) । सह - ( १ ) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि ० ११६ । २ ) । यह द्रौपदीके स्वयंवर में गया था ( आदि० १८५ । १ ) । इसके द्वारा भीमसेनपर आक्रमण ( कर्ण ० ५१ । ८ ) । (२) एक प्रभावशाली अग्नि, जो समुद्रमें छिप गये थे ( वन० २२२ । ७ ) । देवताओंके खोज करनेपर इनका अथर्वाको अभिके पदपर प्रतिष्ठित करके अन्यत्र गमन ( वन० २२२ । ८-१० ) । इनके द्वारा मछलियों को शाप और अपने शरीरका त्याग ( वन० २२२ । १०– १२ ) । इनके शरीर के अवयवोंसे विविध धातुओं की उत्पत्ति ( वन० २२२ । १४ – १६ ) । समुद्रमें छिपे हुए इनका अभिद्वारा पुनः प्राकट्य ( वन० २२२ । २० ) । सहज - चेदि तथा मत्स्यदेशका एक कुलाङ्गार नरेश ( उद्योग० ७४ । १६ )। सहजन्या -छः श्रेष्ठ अप्सराओंमेंसे एक (आदि० ७४ । ६८ ) । यह दस विख्यात अप्सराओंमेंसे एक है । इसने अर्जुनके जन्म महोत्सव में पधारकर वहाँ गान किया था ( आदि० १२२ । ६४ ) | यह कुबेरकी सभा में उनकी सेवाके लिये उपस्थित होती है ( सभा० १० । ११ ) । इसने अर्जुनके स्वागतार्थ इन्द्र भवनकी सभामें नृत्य किया था ( वन० ४३ | ३० ) । सहदेव - ( १ ) पाण्डुके क्षेत्रज पुत्र, अश्विनीकुमारोंके द्वारा माद्रीके गर्भ से उत्पन्न दो पुत्रोंमेंसे एक । ये दोनों भाई जुड़वें उत्पन्न हुए थे। दोनों ही सुन्दर तथा गुरुजनोंकी सेवामें तत्पर रहनेवाले थे । ( आदि० १ | ११४, आदि० ६३ | ११७ आदि० ९५ | ६३ ) । अनुपम रूपशाली तथा परम मनोहर नकुल सहदेव अश्विनीकुमारोंके अंश से उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६७॥ १११-११२ ) । इनकी उत्पत्ति तथा शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंद्वारा इनका नामकरणसंस्कार ( आदि० १२३ । १७ - २१ ) । वसुदेव के पुरोहित काश्यपद्वारा इनके उपनयन आदि संस्कार तथा राजर्षि शुकद्वारा इनका अस्त्रविद्याका अध्ययन और ढाल-तलवार चलानेकी कला में निपुणता प्राप्त करना ( आदि० १२३ । ३१ के बाद दा० पाठ ) । पाण्डुकी मृत्युके पश्चात् माद्रीका अपने पुत्र ( नकुल-सहदेव ) को कुन्तीके हाथोंमें सौंपकर पति के साथ चितापर आरूढ़ होना ( आदि० १२४ अध्याय ) । शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंका सहदेव आदि पाँचों पाण्डवोंको कुन्तीसहित हस्तिनापुर ले जाना और Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहदेब उन्हें भीष्म आदिके हाथ में सौंपना। द्रोणाचार्यका पाण्डवोंको नाना प्रकारके दिव्य एवं मानव अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा देना ( आदि० १३१ । ९ ) । द्रुपदपर आक्रमण करते समय अर्जुनका माद्रीकुमार नकुल और सहदेवको अपना चक्ररक्षक बनाना ( आदि० १३७ । २७ ) । द्रोणद्वारा सुशिक्षित किये गये सहदेव अपने भाइयोंके अधीन ( अनुकूल ) रहते थे ( आदि० १३८ । १८ ) । धृतराष्ट्रके आदेश से कुन्तीसहित पाण्डवोंकी वारणावत- यात्रा, वहाँ उनका स्वागत और लाक्षागृह में निवास (आदि० अध्याय १४२ से १४५ तक ) । लाक्षागृहका दाह और पाण्डवोका सुरंगके रास्ते निकलना, भीमसेनका नकुल सहदेवको गोद में लेकर चलना ( आदि० १४७ अध्याय ) | पाण्saint व्यासजीका दर्शन और उनका एकचक्रानगरीमें प्रवेश ( आदि० १५५ अध्याय ) | पाण्डवों की पाञ्चाल-यात्रा ( आदि० १६९ अध्याय ) । इनका द्रुपदकी राजधानी में जाकर कुम्हारके यहाँ रहना (आदि० १८४ अध्याय ) । पाँचों पाण्डवोंका द्रौपदीके साथ विवाहका विचार ( आदि० १९० अध्याय ) । पाँचों पाण्डवोंका कुन्तीसहित द्रुपदके घर में जाकर सम्मानित होना ( आदि० १९३ अध्याय ) | द्रौपदीके साथ इनका विधिपूर्वक विवाह ( आदि० १९७ । १३ ) । विदुर के साथ पाण्डवोंका हस्तिनापुरमें आना और आधा राज्य पाकर 'इन्द्रप्रस्थ' नगरका निर्माण करना । पाँचों भाइयोंका द्रौपदी के विषय में नियम-निर्धारण ( आदि० २११ अध्याय ) | सहदेवद्वारा द्रौपदीके गर्भ से श्रुतसेन ( श्रुतकर्मा) का जन्म ( आदि० २२० । ८०१ आदि० ९५ । ७५ ) । इनका मद्रराज द्युतिमान्की पुत्री विजयासे विवाह तथा इनके द्वारा उसके गर्भ से सुहोत्रका जन्म ( आदि० ९५ । ८० ) । इनके द्वारा दक्षिण दिशाके नरेशोंपर विजय ( सभा० ३१ अध्याय ) । इनके द्वारा मत्स्यनरेश विराट्की पराजय ( सभा० ३१ । ) । दन्तवक्त्रकी पराजय ( सभा० ३१ । ३ I माहिष्मती नरेश नीलके साथ इनका घोर युद्ध ( सभा० ३१ । २१ ) । इनके द्वारा अभिकी स्तुति ( सभा० ३१ । ४१ ) | अग्निकी कृपासे इनको राजा नीलद्वारा करकी प्राप्ति (सभा० ३१ । ५९ ) । लङ्कासे कर लानेके लिये इनका घटोत्कचको दूत बनाकर राक्षसराज विभीषण के पास भेजना । घटोत्कचसे विभीषणकी बातचीत | विभीषणका बहुत-से सुवर्ण, मणि, रत्न आदि उपहार देकर दूतको विदा करना । उन भेंट-सामग्रियोंको पहुँचानेके लिये अठासी हजार राक्षस आये थे ( सभा० ३१ । ७२ के बाद दा० पाठ पृष्ठ ७५९ से ७६४ तक ) । अन्य मन्त्रियों सहित सहदेवको यज्ञका आवश्यक उपकरण For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414