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श्रावस्तीपुरी
( ३५९ )
श्रुतश्रवा
पुत्रका नाम बृहदश्व था। राजा श्रावस्तने श्रावस्तीपुरी २८)। इसके द्वारा महामनस्वी शलका वध (द्रोण.१०८। बसायी थी (वन० २०२।४)।
१०)। इसके द्वारा अभिसारनरेश चित्रसेनका वध (कर्ण. श्रावस्तीपुरी-यह इक्ष्वाकुवंशी राजा श्रावस्तकी राजधानी १४।१-१४)। इसके द्वारा अश्वत्थामापर प्रहार थी, जिसे राजाने स्वयं बसाया था (वन० २०२१ (कणं० ५५ । १३-१९) । देवावृधकुमारका वध
(कर्ण०८८।१८) । अश्वत्थामाद्वारा इसका वध श्री-(१) भगवान् विष्णुकी पत्नी, लक्ष्मी। (देखिये लक्ष्मी) (सौप्तिक० ८ । ६०)। (२) ( श्रुतकीर्ति )-अर्जुन(२) धर्मकी एक पत्नीका नाम (आदि० ६६ । १४)।
___ का द्रौपदीके गर्भसे उत्पन्न हुआ पुत्र । इसके श्रुतकर्मा
नाम पड़नेका कारण (आदि० २२० । ८३, वन० श्रीकण्ठ-महादेव, भगवान् शंकरके कण्ठमें श्रीनारायणके
२३५ । १०)। (विशेष देखिये-श्रुतकीर्ति ।) (३) हाथसे अङ्कित चिह्न होनेके कारण ये श्रीकण्ठ कहलाते हैं
धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक । इसका शतानीकके साथ (शान्ति० ३४२ । १३५)।
युद्ध (कर्ण० २५ । १३-१६)। श्रीकुञ्ज-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत सरस्वतीका एक तीर्थ, इसमें स्नान करनेसे अग्निष्टोमयज्ञका फल मिलता है श्रुतकीर्ति-द्रौपदीके गर्भसे अर्जुनद्वारा उत्पन्न ( आदि०
६३ । १२३, आदि. ९५। ७५)। विश्वेदेवके अंशसे (वन० ८३ । १०८)। श्रीकुण्ड-एक त्रिभुवनविख्यात कुण्ड । यहाँ जाकर
इसका जन्म हुआ था ( आदि. ६७ । १२७-१२८)।
इसका जयत्सेनके साथ युद्ध (भीष्म ७९ । ४.)। ब्रह्माजीको नमस्कार करनेसे सहस्र गोदानका फल प्राप्त
इसके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण० २३ । ३२)। दुःशासनहोता है (वन० ८२ ! ८६)।
पुत्रके साथ युद्ध (द्रोण० २५ । ३२-३३)। अश्वत्थामाथीतीर्थ-कुरुक्षेत्र की सीमाके अन्तर्गत स्थित एक तीर्थ, द्वारा इसका वध ( सौप्तिक० ८ । ६१-६२)। जहाँ जाकर स्नान एवं देवा-पितरोंकी पूजा करनेसे मनुष्य उत्तम सम्पत्ति पाता है ( वनः । श्रुतञ्जय-त्रिगतराज सुशर्माका भाई । अर्जुनद्वारा इसका ४६)।
वध (कर्ण० २७ । १२)। श्रीपर्वत-एक तीर्थभूत पर्वत । वहाँ जाकर नदीके तटपर श्रुतध्वज-विराट के भाई । जो पाण्डवोंके रक्षक और सहायक स्नान करनेके पश्चात् भगवान् शंकरकी पूजा करनेसे थे ( द्रोण० १५८ । ४१)। मनुष्य अश्वमेधयज्ञका फल पाता है (वन० ४५ । १८)। श्रुता-(१) एक प्राचीन नरेश । इनके पास अगस्त्यजी श्रीमती-स्कन्दको अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६।३)। धन माँगने गये थे (वन० ९८ । १)। इनका अगस्त्यश्रीमद्भगवद्गीतापर्व-भीष्मपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय
जीके धन माँगनेपर उनके सामने अपने आय-व्ययका
विवरण रखना (वन० ९८ । ५)। इनका अगस्त्यजीके १३ से ४२ तक)।
साथ अन्य राजाओंके पास जाना (वन. ९८ । ७)। श्रीमान्-दत्तात्रेयकुमार निमिके कान्तिमान् पुत्र, जिन्होंने
अगस्त्यजीकी आशा लेकर इनका अपनी राजधानीको एक सहस्र वर्षांतक कठोर तपस्या करके अन्तकालमें काल.
लौटना (वन० ९९ । १८) । (२) धृतराष्ट्र के सौ धर्म के अधीन हो अपने प्राण त्याग दिये थे (अनु०९१ ।
पुत्रोंमेंसे एक । इसका अपने दस भाइयोंके साथ भीमसेन
पर आक्रमण और उनके द्वारा वध (शल्य. २६ । ६श्रीवत्स-भगवान् नारायणके वक्षःस्थलमें भगवान् शंकरके
३२)। त्रिशूलसे बना हुआ चिह्न (शान्ति०३४२ । १३३)।
श्रुतश्रवा-(१) एक ऋषि । इनके पुत्रका नाम सोमवा श्रीवह-कश्यपद्वारा कद्रूके गर्भसे उत्पन्न एक नाग (आदि.
था। सोमवाको अपना पुरोहित बनानेके लिये जनमेजय३५ । १३)।
की इनसे प्रार्थना (आदि० ३ । १३-१५)। इनका श्रुतकर्मा (श्रुतसेन )-(१) सहदेवके द्वारा द्रौपदीके अपने पुत्रके जन्म-प्रसंग तथा उदारतापूर्ण स्वभाव आदिगर्भसे उत्पन्न ( आदि०,९५ । ७५) । प्रथम दिनके का वर्णन करते हुए उनकी प्रार्थना स्वीकार करना संग्राममें सुदर्शनके साथ द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म० ४५ । (आदि. ३ । १६-१९)। ये जनमेजयके सर्पसत्रमें ६६-६८) । दुर्मुखद्वारा इसकी पराजय (भीष्म० ७९ । सदस्य बने थे (आदि० ५३ । ९-१०)। तपस्या करके ३५-३८)। इसके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३। सिद्धि प्राप्त करनेवाले ऋषियों में इनका भी नाम है ३१) चित्रसेनपुत्र के साथ इसका युद्ध (द्रोण.२५।२७- (शान्ति० २९२ । १६-१७) । (२) एक राजर्षित
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