Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

View full book text
Previous | Next

Page 363
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावस्तीपुरी ( ३५९ ) श्रुतश्रवा पुत्रका नाम बृहदश्व था। राजा श्रावस्तने श्रावस्तीपुरी २८)। इसके द्वारा महामनस्वी शलका वध (द्रोण.१०८। बसायी थी (वन० २०२।४)। १०)। इसके द्वारा अभिसारनरेश चित्रसेनका वध (कर्ण. श्रावस्तीपुरी-यह इक्ष्वाकुवंशी राजा श्रावस्तकी राजधानी १४।१-१४)। इसके द्वारा अश्वत्थामापर प्रहार थी, जिसे राजाने स्वयं बसाया था (वन० २०२१ (कणं० ५५ । १३-१९) । देवावृधकुमारका वध (कर्ण०८८।१८) । अश्वत्थामाद्वारा इसका वध श्री-(१) भगवान् विष्णुकी पत्नी, लक्ष्मी। (देखिये लक्ष्मी) (सौप्तिक० ८ । ६०)। (२) ( श्रुतकीर्ति )-अर्जुन(२) धर्मकी एक पत्नीका नाम (आदि० ६६ । १४)। ___ का द्रौपदीके गर्भसे उत्पन्न हुआ पुत्र । इसके श्रुतकर्मा नाम पड़नेका कारण (आदि० २२० । ८३, वन० श्रीकण्ठ-महादेव, भगवान् शंकरके कण्ठमें श्रीनारायणके २३५ । १०)। (विशेष देखिये-श्रुतकीर्ति ।) (३) हाथसे अङ्कित चिह्न होनेके कारण ये श्रीकण्ठ कहलाते हैं धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक । इसका शतानीकके साथ (शान्ति० ३४२ । १३५)। युद्ध (कर्ण० २५ । १३-१६)। श्रीकुञ्ज-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत सरस्वतीका एक तीर्थ, इसमें स्नान करनेसे अग्निष्टोमयज्ञका फल मिलता है श्रुतकीर्ति-द्रौपदीके गर्भसे अर्जुनद्वारा उत्पन्न ( आदि० ६३ । १२३, आदि. ९५। ७५)। विश्वेदेवके अंशसे (वन० ८३ । १०८)। श्रीकुण्ड-एक त्रिभुवनविख्यात कुण्ड । यहाँ जाकर इसका जन्म हुआ था ( आदि. ६७ । १२७-१२८)। इसका जयत्सेनके साथ युद्ध (भीष्म ७९ । ४.)। ब्रह्माजीको नमस्कार करनेसे सहस्र गोदानका फल प्राप्त इसके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण० २३ । ३२)। दुःशासनहोता है (वन० ८२ ! ८६)। पुत्रके साथ युद्ध (द्रोण० २५ । ३२-३३)। अश्वत्थामाथीतीर्थ-कुरुक्षेत्र की सीमाके अन्तर्गत स्थित एक तीर्थ, द्वारा इसका वध ( सौप्तिक० ८ । ६१-६२)। जहाँ जाकर स्नान एवं देवा-पितरोंकी पूजा करनेसे मनुष्य उत्तम सम्पत्ति पाता है ( वनः । श्रुतञ्जय-त्रिगतराज सुशर्माका भाई । अर्जुनद्वारा इसका ४६)। वध (कर्ण० २७ । १२)। श्रीपर्वत-एक तीर्थभूत पर्वत । वहाँ जाकर नदीके तटपर श्रुतध्वज-विराट के भाई । जो पाण्डवोंके रक्षक और सहायक स्नान करनेके पश्चात् भगवान् शंकरकी पूजा करनेसे थे ( द्रोण० १५८ । ४१)। मनुष्य अश्वमेधयज्ञका फल पाता है (वन० ४५ । १८)। श्रुता-(१) एक प्राचीन नरेश । इनके पास अगस्त्यजी श्रीमती-स्कन्दको अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६।३)। धन माँगने गये थे (वन० ९८ । १)। इनका अगस्त्यश्रीमद्भगवद्गीतापर्व-भीष्मपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय जीके धन माँगनेपर उनके सामने अपने आय-व्ययका विवरण रखना (वन० ९८ । ५)। इनका अगस्त्यजीके १३ से ४२ तक)। साथ अन्य राजाओंके पास जाना (वन. ९८ । ७)। श्रीमान्-दत्तात्रेयकुमार निमिके कान्तिमान् पुत्र, जिन्होंने अगस्त्यजीकी आशा लेकर इनका अपनी राजधानीको एक सहस्र वर्षांतक कठोर तपस्या करके अन्तकालमें काल. लौटना (वन० ९९ । १८) । (२) धृतराष्ट्र के सौ धर्म के अधीन हो अपने प्राण त्याग दिये थे (अनु०९१ । पुत्रोंमेंसे एक । इसका अपने दस भाइयोंके साथ भीमसेन पर आक्रमण और उनके द्वारा वध (शल्य. २६ । ६श्रीवत्स-भगवान् नारायणके वक्षःस्थलमें भगवान् शंकरके ३२)। त्रिशूलसे बना हुआ चिह्न (शान्ति०३४२ । १३३)। श्रुतश्रवा-(१) एक ऋषि । इनके पुत्रका नाम सोमवा श्रीवह-कश्यपद्वारा कद्रूके गर्भसे उत्पन्न एक नाग (आदि. था। सोमवाको अपना पुरोहित बनानेके लिये जनमेजय३५ । १३)। की इनसे प्रार्थना (आदि० ३ । १३-१५)। इनका श्रुतकर्मा (श्रुतसेन )-(१) सहदेवके द्वारा द्रौपदीके अपने पुत्रके जन्म-प्रसंग तथा उदारतापूर्ण स्वभाव आदिगर्भसे उत्पन्न ( आदि०,९५ । ७५) । प्रथम दिनके का वर्णन करते हुए उनकी प्रार्थना स्वीकार करना संग्राममें सुदर्शनके साथ द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म० ४५ । (आदि. ३ । १६-१९)। ये जनमेजयके सर्पसत्रमें ६६-६८) । दुर्मुखद्वारा इसकी पराजय (भीष्म० ७९ । सदस्य बने थे (आदि० ५३ । ९-१०)। तपस्या करके ३५-३८)। इसके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३। सिद्धि प्राप्त करनेवाले ऋषियों में इनका भी नाम है ३१) चित्रसेनपुत्र के साथ इसका युद्ध (द्रोण.२५।२७- (शान्ति० २९२ । १६-१७) । (२) एक राजर्षित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414