Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 345
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शरभङ्ग शर्मी (३) कश्यप और दनुके विख्यात चौंतीस हजार दासियोंके साथ देवयानीकी आजीवन दासी बनकर पुत्रों से एक दानव (आदि० ६५ । २५)। (४) रहने के लिये प्रतिज्ञा करना (आदि. ८०।१७-२२)। एक ऋषि, जो यमराजकी सभामें रहकर उनकी उपा- इसके प्रति देवयानीका कटाक्ष और इसके द्वारा उसको सना करते हैं (सभा० ८।१४ )। (५) चेदिराज समुचित उत्तर ( आदि० ८० । २३-२४)। एक सहल धृष्टकेतुका अनुज, जो पाण्डवोंकी सहायतामे आग था दासियोसहित शर्मिष्ठाका देवयानीकी सेवामें उपस्थित (उद्योग. ५०। ४७)। अश्वमेधीय अश्वकी रक्षा होकर उसके साथ वन-विहारके लिये जाना और वहाँ गये हुए अर्जनके साथ इसने पहले यद्ध किया; परंतु आमोद-प्रमोदमें मग्न होना ( आदि. ८१ ।२पीछे उस अश्वका विधिपूर्वक पूजन किया ( आश्व० ४)। राजा ययातिका उस स्थानपर जल पीनेकी इच्छासे ८३ । ३)। (६) शकुनिका भाई। भीमसेनद्वारा आना और शर्मिष्ठाद्वारा सेवित देवयानीसे उन दोनोंका इसका वध (द्रोण. १५७ । २४-२६)। (७) परिचय पूछना । देवयानीका दानवराज वृषपर्वाकी पुत्री प्राचीन कालका एक बलवान, वनवासी और समस्त शर्मिष्ठाको अपनी दासी बताना (आदि०८१।५प्राणियोंका हिंमक पशु, जिसके आठ पैर और ऊपरकी १०)। शुक्राचार्यका ययातिको अपनी पुत्रीका समर्पण ओर नेत्र होते थे। वह रक्त पीनेवाला जानवर माना करते समय कुमारी शर्मिष्ठाको भी समर्पित करना और गया है। इससे सिंह भी डरते थे (शान्ति. ११७॥ उसे अपनी शय्यापर बुलानेसे मना करना ( भादि. १२-१३ तथा दा० पाठ)। ८१।३४-३५)। एक दिन अपनेको रजस्वलावस्थामें शरभङ्ग-एक प्राचीन ऋषि, जिनका उत्तराखण्डमें विख्यात पाकर शर्मिष्ठा चिन्तामग्न हो गयी। स्नान करके शुद्ध आश्रम था ( वन० ९० । ९)। दक्षिणमें दण्डकारण्य हो समस्त आभूषणोंसे विभूषित हुई शर्मिष्ठा सुन्दर पुष्पोंके के आस-पास भी इनका एक आश्रम था । श्रीरामने गुच्छोंसे भरी अशोकशाम्खाका आश्रय लिये खड़ी थी। इनके आश्रमपर पहुँचकर इनका सत्कार किया था उसने दर्पणमें अपना मुँह देखा और इसके मनमें पतिके (वन०२७७ । ४०.४१)। दर्शनकी लालसा जाग उठी। इसने अशोकवृक्षसे प्रार्थना की कि तुम मुझे भी प्रियतमका दर्शन कराकर अपने शरभङ्ग-आश्रम-एक तीर्थ, जहाँ जानेवाला मनुष्य कभी ही समान अशोक (शोकरहित ) कर दो। फिर इसने दुर्गतिमें नहीं पड़ता और अपने कुलको पवित्र कर देता है राजा ययातिको ही पति बनानेका निश्चय किया, राजाको (वन०८५ । ४२)। एकान्तमें पाकर इसने नम्रतापूर्वक उनके सामने अपना शरस्तम्ब-एक प्राचीन तीर्थ, जिसके झरनेमें स्नान मनोभाव प्रकट किया। इस विषयको बेकर इन दोनों में करनेवाला स्वर्ग में अप्सराओंद्वारा सेवित होता है कुछ देरतक संवाद हुआ, अन्तमें राजाने इसके साथ (अनु. २५ । २८)। समागम किया । शर्मिष्ठाके गर्भ रह गया और इसने शरावती-भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल यहाँके लोग समय आनेपर एक देवोपम कुमारको जन्म दिया । पीते हैं ( भीष्म० ९ । २०)। (आदि० ८२।५-२७)। इसके पुत्र होनेकी बात सुनकर देवयानीका इमसे उस विषयमें पूछ ताछ करना शरासन-( देखिये चित्रशरासन )। और शर्मिष्ठाका एक श्रेष्ठ ऋषसे अपनेको संतान-प्राप्त शरु-एक दवगन्धवा जा अजुनक जन्मकालक महात्सवम होनेकी बात बताकर उसे संतुष्ट कर देना ( आदि. उपस्थित था ( आदि० १२२ । ५८ )। ८३।१-८)। इसके गर्भसे ययाति के द्वारा क्रमशः शर्मक-पूर्वोत्तर भारतका एक जनपद, जो 'वर्मक' प्रदेशके द्रुह्य, अनु तथा पूरु-इन तीन कुमारों की उत्पत्ति (आदि. आस-पास था। इसे भीमसेनने दिग्विजयके समय यहाँके ८३ । १०; आदि. ७५ । ३५) । शर्मिष्ठाके पुत्रोंसे शासकोंको समझा-बुझाकर ही जीत लिया था (सभा० उनके पिता माताका यथार्थ परिचय जानकर देवयानीका २०।१३)। शर्मिष्ठाको फटकारना और शर्मिष्ठाका उसे मुँहतोड़ उत्तर शर्मिष्ठा-दानवराज वृषपर्वाकी पुत्री, जिसने अनजानमें देना (आदि० ८३ । १८-२२ रा. पाठसहित)। सरोवरके तटपर देवयानीका वस्त्र पहन लिया था (आदि० शर्मी यामुन पर्वतकी तलहटीमें बसे हुए पर्णशाला' नामक ७८ )। देवयानीका इमको फटकारना ( आदि० गाँवका एक अगस्त्यगोत्रीय, शमपरायण, अध्यापक ०८।८) । इसके द्वारा देवयानीका तिरस्कार तथा ब्रामण, जिसे बुलानेके लिये यमराजने दूत भेजा था कुएँ, गिराया जाना (आदि०७४।९-१३)। पिताकी (अनु. ६८।३-.)। इसी नाम और गुणवाला आशासे जाति भाइयोंकी रक्षाके लिये इसका अपनी एक , एक दूसरा ब्राह्मण भी उस गाँवमें था, जिसे लानेका For Private And Personal Use Only

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