Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 352
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिखावर्त ( ३४८ ) शिवि - ११७।१-७)। अर्जुनसे सुरक्षित होकर भीष्मपर धावा अपनेको मिलनेवाले पुण्यलोकोंके विषयमें पूछना करना (भीष्म. ११८ । ४३)। भीष्मपर प्रहार ययातिका उत्तर देना। इनका ययातिको अपने (भीष्म ११९ । ४३-४४)। धृतराष्ट्रद्वारा इसकी पुण्यलोक देना और उनका अस्वीकार करना (आदि. वोरताका वर्णन (द्रोण.१०। ४५-४६)। भूरिश्रवाके ९३ । ६-९)। अष्टक आदि राजर्षियोंके साथ इनका साथ इसका युद्ध (द्रोण०१४ । ४३-४५)। इसके स्वर्गलोकको गमन (आदि०९३।१६ के बाद दा०पाठ)। रथके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण २३ । १९-२०)। स्वर्गके मार्गमें अष्टकके पूछनेपर ययातिद्वारा इनकी श्रेष्ठता विकर्णके साथ युद्ध (द्रोण २५ । ३६-३०)। तथा इनके दानकी महिमाका वर्णन (आदि. ९३ । १८बाहीकके साथ युद्ध (द्रोण. ९६ । ७-१०)। १९)। ये यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना कृतवर्माके साथ युद्ध और उसके द्वारा इसकी पराजय करते हैं (सभा० ८।१०)। नारदजीद्वारा महोत्रके (द्रोण. ११४ । ८२-९.)। कृपाचार्यद्वारा पराजय मार्ग रोकनेपर इनकी श्रेष्ठताका वर्णन (वन० १९४ । (द्रोण. १६९ । २२-३२)। कृतवर्मा के साथ युद्ध में ५)। इनकी श्रेष्ठताकी परीक्षाके लिये देवताओंकी मन्त्रणा इसका मूर्छित होना ( कर्ण० २६ । २६-३७)।। (वन० १९७।।)। इनकी शरणागतरक्षाके विषयमें कृपाचार्यसे पराजित होकर भागना (कर्ण०५४१-२३)। बाजरूपधारी इन्द्रसे वार्ता (वन० १९७।११-१९)। कर्णद्वारा इसकी पराजय (कर्ण०६१७-२३)। प्रभद्रकोंकी इनका अपने शरीरका मांस काटकर बाजके लिये तराजूके सेना साथ लेकर इसका कृतवर्मा और महारथी कृपाचार्यके पलड़ेपर रखना और पूरा न पड़नेपर स्वयं भी उसपर चढ़ साथ युद्ध (शल्य०१५।७)। द्रोणपुत्र अश्वत्थामाको आगे जाना (वन० १९७ । २१-२३)। कपोतरूपधारी बढ़नेसे रोकना (शल्य१६।६)। अश्वत्थामाद्वारा अग्निदारा इन्हें वर-प्रदान (वन०१९७ । २६-२८)। इसका वध (सौप्तिक.८।६५)। देवर्षि नारदद्वारा इनकी महत्ताका प्रतिपादन । ब्राह्मणके महाभारतमें आये हुए शिखण्डीके नाम-भीष्महन्ता, लिये इनके द्वारा अपने पुत्रके वधका वृत्तान्त (वन. भीष्मनिहन्ता, शिखण्डिनी, द्रौपदेय, द्रुपदात्मज, पाञ्चाल्या १९८ अध्याय)। विराटनगरमें गोहरणके समय कृपाचार्य याज्ञसेनि आदि। और अर्जुनका युद्ध देखने के लिये इन्द्र के साथ विमानपर बैठकर आये थे (विराट० ५६ । ९.१०)। ये ययातिशिखावर्त-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें आकर उनकी की पुत्री माधवीके गर्भसे उशीनरनरेशद्वारा उत्पन्न हुए सेवामें उपस्थित होता है (सभा०१०।१७)। थे ( उद्योग० ११८।--२०)। इनका ययातिको शिखावान-एक ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते थे अपना पुण्यफल देना (उद्योग. १२२।८-११)। (सभा० ४।१४)। इन्हें भारतवर्ष बहुत ही प्रिय रहा है (भीष्म. ९। - शिखी-कश्यपकुलमें उत्पन्न एक नाग (उद्योग०१०३।१२)। १)। संजयको समझाते समय नारदजीद्वारा इनके यज्ञ शितिकण्ठ-एक नाग, जो बलरामजीके परमधाम-गमनके और दानकी महत्ताका वर्णन (द्रोण० ५८ अध्याय)। समय उनके स्वागतमें आया था (मौसल. ४१६)। श्रीकृष्णद्वारा नारद-सुंजय-संवादके उल्लेखपूर्वक इनके दानशितिकेश-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य०४५। ६१)। यज्ञका वर्णन (शान्ति० २९ । ३९-४४)। यदुवंशियों से इन्हें खगकी प्राप्ति (शान्ति० १६६ । ८०)। इनका शिनि-देवमीढके वंशज एक प्रधान यादव । इन्होंने अकेले ब्राह्मणके लिये अपने औरस पुत्रका दान तथा उससे इन्हें ही समस्त राजाओंको परास्त करके वसुदेवके लिये देवकी- स्वर्गकी प्राप्ति (शान्ति. २३४ । १९; अनु० १३७ । को जीता था (द्रोण. १४४ । ६-१०)। इनका )। अगस्त्यजीके कमलोकी चोरी होनेपर शपथ खाना सोमदत्तके साथ युद्ध । उन्हें पटककर लात मारना तथा (अनु० ९४ । २६)। इनके द्वारा मांसभक्षण-निषेध उनकी चुटिया पकड़ना (द्रोण. १४४ । १२-१३)। (अनु० ११५।६.)।(३) एक देश तथा वहाँके शिपिविष्ट-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम । इसकी व्याख्या निवासी । महाराज शान्तनुकी माता सुनन्दा यहींकी (शान्ति० ३४२ । ७.)। राजकुमारी थीं (भादि० ९५। ४४ ) । युधिष्ठिरके शिबि-(१) एक दैत्य, जो हिरण्यकशिपुका पुत्र था श्वशुर गोवासन यहींके राजा थे (आदि. ९५। ७६)। ( आदि. ६५। १८)। यह द्रुम नामक राजाके इस देशको पश्चिम-दिग्विजयके अवसरपर नकुलने जीता रूपमें पृथ्वीपर उत्पन्न हुआ था ( आदि०६७।८)। था (सभा० ३२.)। यहाँके निवासी राजा युधिष्ठिरके (२) एक प्राचीन राजर्षि, जिनका संग प्राप्त करके ययाति राजसूययशमें भेंट लेकर आये थे (सभा० ५२ । १४)। वर्गको गये थे (आदि. ८६।६)। इनका ययातिसे इस देशके राजा उशीनर थे (वन०१३।२१)। For Private And Personal Use Only

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