Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

View full book text
Previous | Next

Page 353
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शिरीषक यह देश किसी समय जयद्रथके अधिकारमें था ( वन० २६७ । ११ ) । अर्जुनने जयद्रथके साथ आये हुए शिविदेश के सैनिकोंका संहार कर डाला ( वन० २७१ । २८ ) । इस देशके महारथी अपनी सेनाके साथ दुर्योधनकी सहायता में थे ( उद्योग० १९५ । ७-८ )। शिविदेशको कभी कर्णने जीता था ( द्रोण० ९१ । ३८-४०) । इस देश के लोग पहले कम समझवाले होते थे ( कर्ण० ४५ । ३४-३५) । ( ४ ) उशीनर देश या कुलमें उत्पन्न एक राजा, जो द्रौपदीके स्वयंवर में आया था ( आदि ० १८५ । १६ ) | यह पाण्डवपक्षका एक योद्धा था और द्रोणाचार्य के साथ लड़ा था ( द्रोण० ८ । २५ ) । द्रोणाचार्यद्वारा इसका वध ( द्रोण० १५५ । १९ ) | ( ५ ) भूतपूर्व पाँच इन्द्रोंमेंसे एक, जो पर्वतकी कन्दरामै अवरुद्ध थे; इन सबको मानवलोक में जन्म लेनेके लिये भगवान् शिवका आदेश (आदि० १९६ । १९ - ३० ) । शिरीषक- एक कश्यपवंशी नाग ( उद्योग० १०३ | १४ ) । शिरीषी - विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक ( अनु० ४ । ५९ ) । ( ३४९ ) शिलायूप - विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक ( अनु० ४ । ५४ ) । शिली - तक्षक- कुल में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके यज्ञमें • जल मरा था (आदि० ५७ । ९ ) । शिव - (१) सच्चिदानन्दघन परमात्मा, जो 'ईशान' कहे गये हैं । ये ही त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव हैं ( आदि ० १।२२ ) । ब्राह्मकल्पके आदिमें जो महान् दिव्य अण्ड प्रकट हुआ था, जिसमें सत्यस्वरूप, ज्योतिर्मय सनातन ब्रह्म अन्तर्यामीरूपसे प्रविष्ट हुआ है, उससे ब्रह्मा तथा स्थाणु नामवाले शिवका भी प्रादुर्भाव हुआ है ( आदि ० १ । ३०-३२ ) । इन्होंने ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे त्रिलोकीकी रक्षा के लिये कालकूट नामक विषको कण्ठमें धारण कर लिया, तभीसे ये कण्ठ में नील चिह्नके कारण 'नीलकण्ठ' कहलाने लगे ( आदि० १८ । ४१-४३ ) । स्थाणु नाम से ये ही परम तेजस्वी ग्यारह रुद्रोंके पिता हैं ( आदि० ६६ । १ ) | अश्वत्थामा इनके अंशसे उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६७ । ७२-७३) । इन्होंने गान्धारीको सौ पुत्र होनेका वरदान दिया था ( आदि० १०९ । १०)। इन्होंने एक तपस्विनी ऋषिकन्याको पाँच पति प्राप्त होनेका वर दिया था, जो दूसरे जन्ममें द्रौपदी हुई थी ( आदि० १६८ । ६-१५ ) । इनके द्वारा पाँच इन्द्रोंका हिमालयकी गुफार्मे अवरोध और उन्हें मनुष्यलोक में पाण्डवोंके रूपमें जन्म लेनेके लिये आदेश (आदि० १९६ । १६--३० ) | तिलोत्तमाके रूपको देखने के लिये शिव इनके चतुर्मुख होने की उत्प्रेक्षा (आदि० २१० । २२ - २८ ) । इनके द्वारा प्रभञ्जनको उसके कुलमें एक-एक संतान होनेका वरदान ( आदि० २१४ | २०-२१ ) । बारह वर्षो निरन्तर अग्निमें आहुति देनेके लिये इनका श्वेतकिको आदेश ( आदि० २२२ । ४१-४८ ) । इनकी ब्राह्मणसे यज्ञ करानेके लिये राजा श्वेतकिको सामग्री जुटाने की आज्ञा ( आदि० २२२ । ५१-५३ ) । उनके यज्ञका सम्पादन करने के लिये इनका दुर्वासाको आदेश ( आदि ० २२२ । ५७-५८ ) । एक हजार युग बीतने पर विन्दुसरपर यज्ञ करते हैं ( सभा० ३ । १५ ) । ये पार्वतीदेवी तथा अपने गणोंके साथ कुबेरकी सभा में विराजमान होते हैं ( सभा० १० । २१-२४ ) । जरासंधने उग्र तपस्या के द्वारा इनकी आराधना करके एक विशेष प्रकारकी शक्ति प्राप्त कर ली थी, इसीसे सब राजा उसमें परास्त हो गये थे (सभा० १४ । ६४-६५) । बाणासुरको इनका वरदान। इनके द्वारा बाणासुरकी राजधानीकी रक्षा तथा बाणासुरकी रक्षाके लिये इनका श्रीकृष्णके साथ भयानक युद्ध ( सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८२१-८२३) । ये भगवान् श्रीहरिके ललाटसे प्रकट हुए थे ( वन० १२ । ४० ) । अर्जुनकी उम्र तपस्या के विषय महर्षियोंका पिनाकपाणि महादेवजी के साथ वार्तालाप और इनका उन्हें आश्वासन देकर विदा करना वन० ३८ | २८-३५ ) । इनका किरातवेष धारण करके धनुष-बाण ले नाना वेषधारी भूतों, सहस्रों स्त्रियों और भगवती उमाके साथ वनमें अर्जुनके समीप जाना और उन्हें मारने की घातमें लगे हुए मूक नामक वाराहरूपधारी दानवको अर्जुनके साथ ही बाण मारना । फिर अर्जुनके साथ इनका विवाद और युद्ध | इनपर अर्जुनके बाणोंका विफल होना । इनके साथ उनका मल्लयुद्ध | पराजित हुए अर्जुनका भगवान् शिवकी शरणमें जाकर इनकी पार्थिव मूर्तिका पूजन करना और अपनी चढ़ायी हुई मालाको किरात के सिरपर विद्यमान देख इन्हें पहचानकर अर्जुनका इनके चरणों में पड़ जाना । भगवान् शिवका संतुष्ट होकर उन्हें पाशुपतास्त्र देनेके लिये कहना । अर्जुनद्वारा इनका स्तवन । इनका अर्जुनको हृदयसे लगाना और उन्हें वरदान देकर पाशुपतास्त्र के धारण और प्रयोगका नियम बताते हुए उन्हें उस अस्त्रका उपदेश देना । उस प्रज्वलित अस्त्रका अर्जुन के पार्श्वभागमें स्थित दिखायी देना । इनके स्पर्शसे अर्जुनके अशुभका नष्ट होना तथा अर्जुनको स्वर्गलोक में जानेकी आज्ञा दे उन्हें उनके अस्न गाण्डीव आदिको लौटाकर उमासहित भगवान् शिवका आकाशमार्ग से प्रस्थान (वन० अध्याय ३९ से ४० तक ) । इनका मङ्कणक मुनिका नृत्य रोकनेके लिये Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414