Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 338
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्रौणिकपर्व व्रीहिद्रौणिकपर्व - वनपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय २५९ से २६१ तक ) । ( ३३४ ) ( श ) शंयु-ये बृहस्पति के प्रथम पुत्र हैं । इनके लिये प्रधान आहुतियोंके देते समय सर्वप्रथम घीकी आहुति दी जाती है । चातुर्मास्यसम्बन्धी यज्ञोंमें तथा अश्वमेध यज्ञमें इनका पूजन होता है । ये सर्वप्रथम उत्पन्न होनेवाले और सर्वसमर्थ हैं तथा अनेक वर्णकी ज्वालाओंसे प्रज्वलित होते हैं। इनकी पत्नीका नाम सत्या था । वह धर्मकी पुत्री थी। उसके गर्भ से इनके द्वारा एक अग्निस्वरूप पुत्र तथा उत्तम व्रतका पालन करनेवाळी तीन कन्याएँ हुई बन० २१९ । २-४ ) । शक- एक भारतीय जनपद और जाति । शक जातिके लोग वशिष्ठकी नन्दिनी गायके थनसे प्रकट हुए ( आदि० १७४ । ३६ ) | भीमसेनने पूर्व-दिग्विजय के समय शर्कोको परास्त किया था ( सभा० ३० । १४ ) | नकुलने भी इनपर विजय पायी थी ( सभा० ३२ । १७ ) । शंक देश और जातिके राजा राजसूय यज्ञमें युधिष्ठिरके लिये भेंट लाये थे सभा० ५१ । ३२ ) । कलियुगमें शक आदि जातियोंके लोगोंके राजा होनेका उल्लेख ( वन० १८८ । ३५ । शक देशके राजाके पास पाण्डवोंकी ओरसे रण-निमन्त्रण भेजनेका विचार किया गया था ( उद्योग० ४ । १५ ) | ये काम्बोजराज सुदक्षिण के साथ दुर्योधन की सेना में सम्मिलित हुए थे ( उद्योग० १९ । २१ ) । शक एक भारतीय जनपदका नाम है ( भीष्म ० ९ । ५१ ) । भगवान् श्रीकृष्णने शक देशपर विजय पायी थी ( द्रोण० ११ । १८ ) । सात्यकिने बहुतसे शक सैनिकों का संहार किया था ( द्रोण० ११९ । ४५, ५३) । कर्णने भी शक देशको जीता था ( कर्ण० ८ । १८ ) । शक पहले क्षत्रिय थे, परंतु ब्राह्मणोंके दर्शन से चित होने के कारण ( अपने धर्म-कर्मसे भ्रष्ट हो ) शूद्र भावको प्राप्त हो गये ( अनु० ३३ । २१ ) । शकुनि - ( १ ) धृतराष्ट्र-कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र में दग्ध हो गया था ( आदि० ५७ । १६ ) | ( २ ) गान्धारराज सुचलका पुत्र, दुर्योधन का मामा, इसकी सहायता से दुर्योधनने युधिष्ठिरको जूएमें ठग लिया था ( आदि० ६१ । ५० ) । देवताओंके कोपसे यह धर्मविरोधी हुआ ( आदि० ६३ । १११११२ ) | यह द्वापर के अंशसे उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६७ । ७८; आश्रम० ३१ । १० ) । इसके द्वारा गाभारीके विवाह कार्यका सम्पादन ( आदि० १०९ । १५-१६) । यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था ( आदि ० शकुनि १८५ | २ ) | पाण्डवोंको जड़ - मूलसहित नष्ट कर देनेके लिये इसका द्रुपदनगरमें कौरवोंको परामर्श देना (आदि० १९९ । ७ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ५७३-५७४ )। युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञ में इसका पदार्पण सभा० ३४ । ६ ) | यह सबके विदा होनेपर भी उस दिव्य सभाभवनमें दुर्योधनके साथ ठहरा रहा ( सभा० ४५ । ६८ ) । पाण्डवोंपर विजय प्राप्त करनेके सम्बन्धमें इसकी दुर्योधनसे बातचीत ( सभा० ४८ अध्याय ) | युधिष्ठिरकी सम्पत्ति ( ऐश्वर्य ) को हड़पने के लिये इसके द्वारा धृतराष्ट्रको द्यूतक्रीड़ाका परामर्श देना ( सभा० १९ अध्याय ) । जूए के अनौचित्य के सम्बन्धमें इसके साथ युधिष्ठिरका संवाद ( सभा० ५९ अध्याय ) । जूएमें छल करके इसका युधिष्ठिर को हराना (सभा • अध्याय ६० से ६१तक ) । इसके साथ जुआ खेलकर युधिष्ठिर का अपना सब कुछ हार जाना ( सभा• अध्याय ३५ ) । पुनर्द्य तमें इसका युधिष्ठिरको जएकी शर्त सुनाना और एक ही दाँवमें अपनी विजय घोषित करना ( सभा० ७६ । ९ - २४ ) । पाण्डव प्रतिज्ञा तोड़कर वनसे नहीं लौटेंगे, यह कहकर इसका दुर्योधनकी आशंकाको दूर करना (वन० ७ । ७-१० ) । द्वैतवनमें पाण्डवों के पास चलनेके लिये इसका घोषयात्राके प्रस्तावका समर्थन करना ( वन० २३८ । २१, २३ ) । धृतराष्ट्रको घोषयात्रा की अनुमति के लिये समझाना ( वन० २३९ | १८-२१ ) | इसका घोषयात्रामें दुर्योधनके साथ और गन्धवसे युद्ध करके घायल होना ( बन० २४१ । १७ – २७ | दुर्योधनको पाण्डवोंका राज्य लौटा देनेके लिये समझाना ( बन० २५१ । १-८ ) । प्रथम दिनके संग्राम में प्रतिविन्ध्यके साथ द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ४५ । ६३-६५ ) । इसके पाँच भाइयों का इरावान्द्वारा वध ( भीष्म० ९० । २५४७ ) । इसका युधिष्ठिर, नकुल और सहदेवपर आक्रमण और उनके द्वारा इसकी पराजय ( भीष्म० १०५ । ८२३) । सहदेवके साथ युद्ध (द्रोण० १४ । २२ - २५) । इसके द्वारा मायाओंका प्रयोग तथा अर्जुनद्वारा उन मायाओंका नाश होने पर इसका पलायन (द्रोण० ३०।१५ - २८) | अभिमन्यु के साथ युद्ध ( द्रोण० ३७ । ५ ) । नकुलसहदेव के साथ युद्ध ( द्रोण० ९६ । २१ - २५ ) । सात्यकिके साथ युद्ध ( द्रोण० १२० । ११) । भीमसेनद्वारा इसके सात रथियों और पाँच भाइयोंका संहार ( द्रोण० १५७ । २२ - २६ ) । नकुलद्वारा इसकी पराजय (द्रोण० १६९ । १६ ) । इसका दुर्योधनकी आशासे पाण्डव सेना पर आक्रमण द्रोण० १७० । ६६ ) । अर्जुनद्वारा इसकी पराजय ( द्रोण० १६३ । २५-१९ ) । द्रोणाचार्य के मारे जानेपर इसका युद्ध जाना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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