Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 337
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यास ( ३३३ ) व्रजन २।१५-२०)। युधिष्ठिरको अश्वमेधयज्ञ करने की सलाह दैपायन, द्वैपायन, सत्यवतीसुत, सत्यवत्यात्मज, पाराशर्य, देना (आश्व. ३।८-१०)। व्यासजीका युधिष्ठिरको पराशरात्मज, वादरायण, वेदव्यास आदि । धन-प्राप्तिका उपाय बताना (आश्व० ३।२०-२१)। व्यासवन-करुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक वन, जहाँ मनोयुधिष्ठिरको मरुत्तका वृत्तान्त सुनाना ( आश्व० अध्याय जव तीर्थमें स्नान करके मनुष्य सहस्र गोदानका फल पाता १ से १० तक)। पतिशोकसे दुखी उत्तराको आश्वासन है (वन० ८३ । ९३)। देना (भाश्व० ६२ । ११-१२) । पुत्रशोकसे दुखी व्यासस्थली-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ, अर्जुनको समझाना ( आश्व० ६२ । १४-१७)। जहाँ व्यासने पुत्रशोकसे संतप्त हो शरीर त्याग देनेका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञकी आज्ञा देकर अन्तर्धान होना विचार कर लिया था। उस समय उन्हें देवताओंने पुनः (आश्व० ६२।२०)। इनका अर्जुनको अश्वमेधीय उठाया था । इस स्थलमें जानेसे सहस्र गोदानका फल अश्वकी रक्षाके लिये, भीमसेन और नकुलको राज्य-पालन मिलता है (वन० ८३ । ९६-९८)। के लिये तथा सहदेवको कुटुम्बसम्बन्धी कार्योंकी देखरेखके लिये नियुक्त करना (आश्व०७२।१४-२०)। व्युषिताश्व-एक पूरुवंशी धर्मात्मा नरेश (आदि. १२.। इनके द्वारा शास्त्रीय विधिके अनुसार अश्वमेधीय अश्वका .)। इनके द्वारा विविध यज्ञोंका अनुष्ठान (आदि. उत्सर्ग (आश्व० ७३ । ३)। युधिष्ठिरद्वारा इनको १२०।८--१६)। राजा कक्षीवान्की पुत्री भद्रा इनकी समस्त पृथ्वीका दान तथा इनके द्वारा पृथ्वीको उन्हें लौटा प्यारी पत्नी थी, जो अपने समयकी अप्रतिम सुन्दरी थी। उसके प्रति अत्यधिक कामासक्त हो जानेके कारण यक्ष्मासे कर उसके निष्क्रयरूपसे ब्राह्मणों के लिये सुवर्ण देनेका आदेश (आश्व० ८९ । ८-१८)। इनके समझानेसे इनकी असामयिक मृत्यु हो गयी (आदि० १२०।१४युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेके लिये अनुमति देना १९)। भद्राके विलाप करनेपर आकाशवाणीद्वारा इनका (आश्रम १ अध्याय)। इनका वनमें धृतराष्ट्र के पास उसे आश्वासन देना तथा इनके शवद्वारा उसके गर्भसे सात आना और उनका कुशल-समाचार पूछते हुए विदुर और पुत्राका उत्पात्त (आदि० १२० । ३३-३६)। युधिष्ठिरकी धर्मरूपताका प्रतिपादन करके उनसे अभीष्ट व्यूक-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ६१)। वस्तु मांगनेके लिये कहना (आश्रम० २८ अध्याय)। व्यढोरु (व्यढोरस्क)-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक इनका अपना तपोबल दिखानेके लिये कहकर धृतराष्ट्रको (आदि०६७ । १०५, आदि. ११६ । १४)। भीमसेनमनोवाञ्छित वर माँगनेके लिये आज्ञा देना तथा गान्धारी द्वारा इसका वध ( भीष्म० ९६ । २३)। और कुन्तीका इनसे अपने मरे हुए पुत्रों एवं सम्बन्धियों के व्यूह-युद्ध के समय चतुरङ्गिणी सेनाके विभिन्न अङ्गोंको दर्शन कराने का अनुरोध करना (आश्रम०२९अध्याय)। संगठित करके विशेष प्रकारसे खड़ी करनेकी रीतिको व्यूह कुन्तीका इन्हें कर्णके जन्मका गुप्त रहस्य बताना और कहते हैं । दूसरे शब्दमें यही मोर्चाबंदी है । महाभारतव्यासजीका उन्हें सान्त्वना देना (आश्रम०३८ अध्याय)। कालमें अनेक प्रकारकी व्यूह रचना होती थी। महाभारतइनके द्वारा धृतराष्ट्र आदिके पूर्वजन्मका परिचय तथा में वर्णित कुछ व्यूहोंके नाम इस प्रकार हैं-अद्धचन्द्र इनकी आज्ञासे सबका गङ्गातटपर जाना (भाश्रम० ३१ व्यूह (भीष्म अध्याय ५६)। क्रौञ्चव्यूह (भीष्म. अध्याय )। इनके प्रभावसे कुरुक्षेत्रमें मारे गये कौरव अध्याय ५०)। गरुड़न्यूह (भीष्म अध्याय ५६)। पाण्डव वीरोंका गङ्गाके जलसे प्रकट होना ( आश्रम० ३२ चक्रव्यूह (द्रोण अध्याय ३४)। मकरव्यूह (भीष्मक अध्याय)। इनका आज्ञासे विधवा क्षत्राणियोंका गङ्गाजीमें अध्याय ६१)। मण्डलव्यूह ( भीष्म अध्याय ८१)। गोता लगाकर अपने-अपने पतिके लोकको प्राप्त करना मण्डलार्द्धव्यूह (द्रोण अध्याय २०)। वज्रव्यूह (भीष्म. (आश्रम ३३ । १८-२२)। इनकी कृपासे जनमेजय अध्याय ८१)। शकटव्यूह (द्रोण. अध्याय ७)। को अपने पिताका दर्शन प्राप्त होना (श्राश्रम०३५। ४-११)। इनका धृतराष्ट्रको पाण्डवोंको विदा करनेके श्येनव्यूह (भीष्म० अध्याय ६९)। सर्वतोभद्र (भीष्म लिये आदेश देना (आश्रम ३६ । ५-१२)। अध्याय ९९)। सुपर्णव्यूह (द्रोण अध्याय २०)। सूचीमुखव्यूह (भीष्म अध्याय ७७ )। यदुकुल-संहारके पश्चात् अर्जुनका इनके आश्रमपर आना। और उनके साथ इनका वार्तालाप ( मौसल. ८ व्योमारि-एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३५)। अध्याय)। व्यासनिर्मित महाभारतके श्रवण एवं पठनकी वजन-सम्राट अजमीढ़के द्वारा केशिनीके गर्भसे उत्पन्न महिमा (स्वर्गा० ५ । ३५-६८)। तीन पुत्रोमंसे एक । शेष दोके नाम हैं—जह और महाभारतमें भाये हुए व्यासजीके नाम-कृष्ण, कृष्ण- रूपिण (भादि० ९४ । ३१-३२)। For Private And Personal Use Only

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