Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

View full book text
Previous | Next

Page 331
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृषाकपि ( ३२७ ) बेतालजननी वृषाकपि-(१) भगवान् विष्णुका एक नाम । इस नामकी पापोंका नाश करनेवाली है (वन० ८५ । ३२; वन. निरुक्ति (शान्ति. ३४२।। । (२) एक ऋषि, ८८।३)। अग्निको उत्पन्न करनेवाली नदियोंमें जो अन्य ऋषियों के साथ देवताओंके यशमें उपस्थित हुए इसकी भी गणना है (वन० २२२ । २४-२६) । यह थे (अनु. ६६ । २३ )। (३) ग्यारह रुद्रोमेसे एक भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी है, जिसका जल यहाँकी (अनु० १५० । १२-१३)। प्रजा पीती है (भीष्म. ९ । २०, २७)। इसका नाम सायं-प्रातः स्मरण करनेयोग्य है ( अनु० १६५ । वृषाण्ड-एक दैत्य, दानव या राक्षस, जो इस पृथ्वीका। २०)। प्राचीन शासक था; किंतु कालसे पीड़ित हो इसे छोड़कर वेणासङ्गम-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे अश्वमेध यज्ञका चल दिया (शान्ति० २२७ । ५३)। फल प्राप्त होता है (वन० ८५ । ३४)। वृषादर्भि-(१) काशिराज वृषदर्भके पुत्र युवनाश्व, जो वेणिका-शांकद्वीपकी एक पवित्र जलपाली नदी ( भीष्म सब प्रकारके रत्न, अभीष्ट स्त्री और सुरम्य गृह दान करके ११ । ३२)। स्वर्गलोकमें निवास करते हैं (शान्ति०२३४ । २५, वेणी-कौरव्य-कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्पअनु. १३७।१०)। (२) वृषदर्भ (प्रथम) के सत्रमें दग्ध हो गया था (आदि. ५७ । १२-१३)। पुत्र राजा वृषादर्भि; इनका सप्तर्षियोंको दान देनेके लिये याका दान दनक ालय वेणीस्कन्द-कौरव्यकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके र उद्यत होना (अनु० १३ । २७--३०)। सप्तर्षियोपर सर्पसत्र में दग्ध हो गया था (आदि. ५७ । १२-१३)। कुपित होकर इनके द्वारा कृत्या प्रकट करना ( अनु. वेणुजङ्क-एक प्राचीन ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराज९३ । ५२-५३) । सप्तर्षियोंको मारने के लिये कृत्याको __ मान होते थे (सभा०४।१८)। भेजना (अनु० ९३ । ५५-५६)। वेणुदारि-एक यादव, जिसने वभ्र ( अक्रूरजी) की भार्यावृषामित्र-एक ऋषि, जो युधिष्ठिरका विशेष आदर करते का अपहरण किया था (सभा० ३८।२९ के बाद दा. थे (वन० २६ । २४)। पाठ, पृष्ठ ८२५, कालम )। वृष्णि-एक यदुवंशी क्षत्रिय, इनके वंशज वृष्णि कहलाये वेणदारिसुत-एक यादव, जिसे दिग्विजयके अवसरपर (आदि० २१०।१८)। ( इसी वंशमें भगवान् कर्णने परास्त किया था (वन० २५४ । १५.१६)। श्रीकृष्ण प्रकट हुए थे।) वेणुप-एक भारतीय जनपद ( उद्योग० ६४० । २६)। वेणमण्डल-कुशद्वीपके सात वर्षों से दूसरा वर्ष । इन सातों वेगवान-(१) धृतराष्ट्र-कुलमें उत्पन्न एक नाग, जावों में देवता, गन्धर्व और मनुष्य आनन्दपूर्वक निवास जनमेजयके सर्पसत्रमें जल मरा या ( आदि. ५७ । करते हैं। इनमें किसीकी भी मृत्यु नहीं होती तथा यहाँ १७)। (२) एक दानव, जो दनुका विख्यात पुत्र था लुटेरे और म्लेच्छ जातिके लोग नहीं हैं (भीष्म० १२ । (आदि० ६५ । २४)। यह इस पृथ्वीपर केकयराज १२--१५)। कुमारके रूपमें उत्पन्न हुआ था (आदि. ६७ । १०. वेणमन्त-एक श्वेतवर्णका पर्वत, जो उत्तर भागमें मन्दरा")। (३) एक दैत्य, जो शाल्वका अनुयायी था । चलके सदृश विद्यमान था (सभा० ३८ । २९ के बाद जाम्बवतीपुत्र साम्बके साथ इसका युद्ध और उनके द्वारा दा० पाठ, पृष्ठ ८१३, कालम)। वध (वन १६ । १७-२०)। बेणवीणाधरा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. वेगवाहिनी-एक नदी, जो वरुण-सभामै रहकर वरुणदेवकी मसालेका देवकी ४६ । २१)। उपासना करती है ( सभा० ९ । १०)। वेतसवन-एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ मृत्युने तपस्या की थी वेणा-एक नदी, जो वरुणसभामें रहकर उनकी उपासना (द्रोण० ५४ । २३)। करती है (सभा०९१८) । दक्षिण-दिग्विजयके वेतसिका-ब्रह्माजीद्वारा सेवित एक तीर्थ, जहाँ जानेसे अवसरपर सहदेवने वेणातटवर्ती प्रदेशके स्वामीको पराजित मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता और शुक्राचार्यके लोककिया था (समा०३१ .)। वेणानदीके तटपर में जाता है (वन०८४ । ५६)। जाकर तीन रात उपवास करनेवाला मनुष्य मोर और वेतालजननी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य. हंसोंसे जुता हुआ विमान प्राप्त करता है । यह समस्त ४६ । १३)। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414