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विराट
( ३१७ )
विरूपाक्ष
छोटेका उत्तर । इन दोनोंसे छोटी एक उत्तरा नामकी इनके मोड़ोंका वर्णन (द्रोण० २३ । १)। विन्दकन्या थी (विराट. १६ । ५१ के बाद दा. पाठ, अनुविन्दके साथ युद्ध (द्रोण० २५।२०-२ द्रोण. पृा १८९१)। कहीं-कहीं इनके दस भाइयोंका उल्लेख ९५ । -६) । शल्यके साथ युद्धमें मूञ्छित होना मिलता है (विराट. १६ । ५१ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ (द्रोण. १६७ । ३५) । द्रोणाचार्यद्वारा इनका वध १८९४ ) । उपकीचकोंको द्रौपदीको जलानेकी अनुमति (द्रोण. १८१ । ४३)। इनके मारे जाने की चर्चा दे देना (विराट. २३ । ८)। कीचक तथा उप- (कर्ण० ६ । ६)। इनके शवका दाह संस्कार (स्त्री. कीचकोंके दाह-संस्कारके लिये आदेश देना (विराट० २६ । ३३)। युधिष्ठिरद्वारा इनका श्राद्ध सम्पन्न होना २५। ६-७)। सुदेष्णाद्वारा द्रौपदीको राजमहलसे निकल (शान्ति०४२।४)। स्वर्गमें जाकर ये मरुद्गों में जानेके लिये संदेश कहलाना (विराट. २४ । ९-१०)। मिल गये (स्वर्गा०५।१५)। इनके भाइयोंके नाम शतानीक और मदिराक्ष थे । महाभारतमें आये हुए विराटके नाम--मत्स्य, मत्स्यशतानीकका दूसरा नाम सूर्यदत्त था। ये सेनापति थे।
पति, मत्स्यराट, मत्स्यराज आदि । मदिराक्षको 'विशालाक्ष' भी कहा जाता था । ये दोनों
विराटनगर-मत्स्यदेशकी राजधानी, इसपर त्रिगतों तथा महारथी थे (विराट० ३१ । ११-१२, १५, २०, २४,
कौरवोंने चढ़ाई की थी (विराट. ३० । २३)। विराट. ३२ । १९)। इनके सुदेष्णासे उत्पन्न ज्येष्ठ ।
विराटपर्व-महाभारतका एक प्रमुख पर्व । पुत्रका नाम शङ्ख था (विराट० ३१ । १६)। गोहरणके समय पाण्डवों तथा अपनी सेनाके साथ युद्ध के लिये प्रस्थान
विराध-एक क्रूरकर्मा राक्षस, जो शापग्रस्त गन्धर्व था ।
भगवान् श्रीरामद्वारा इसका वध (सभा० ३८ । २९ के (विराट. ३१ । ३२)। गोहरणके समय सुशर्माके साथ इनका द्वन्द-युद्ध ( विराट. ३२ । २३ -३०)।
बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७९४)। सुशर्माद्वारा इनका जीते-जी पकड़ा जाना (विराट. ३३।।
विराव-इल्वलद्वारा अगस्त्यजीको दिये गये रथमें जुते हुए ७-८) । सुशर्माके रथसे कूदकर उसकी गदा ले उसीकी
एक घोड़ेका नाम । दूसरेका नाम सुगव था ( वन. ओर इनका दौड़ना (विराट. ३३१४२)। युद्धसे छटकारा ९९।१७)। पानेपर पाण्डवोंका इनके द्वारा सम्मान (विराट. ३४। विरावी-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेसे एक (आदि०६७।१०४ ४-१३)। नगरमें विजय-घोषणाके लिये दूत भेजना आदि. ११६ । १३)। (विराट० ३४ । १७)। इनकी उत्तरके लिये चिन्ता विरूप-(१) एक असुर, जो श्रीकृष्णद्वारा मारा गया था (विराट०६८।१०-१४)। इनके द्वारा युधिष्ठिरका (समा० ३८ । २९ के बाद, पृष्ठ ८२५, कालम १)। तिरस्कार (विराट. ६८।४६) । युधिष्ठिरसे इनकी (२) अन्य नाम और रूप धारण करके आया हुआ क्षमा-प्रार्थना (विराट० ६८ । ६२)। उत्तरसे युद्धका क्रोध, जिसका राजा इक्ष्वाकुके साथ संवाद हुआ था समाचार पूछना ( विराट. ६८ । ६८-७६ )। (शान्ति. १९९ । ८८-११७)। (३) अङ्गिराके पाण्डवोंका सस्कार तथा अर्जुनके साथ उत्तराका विवाह आठ पुत्रोंसे एक । इनके सात भाइयोंके नाम हैंकरनेके लिये युधिष्ठिरके सामने इनका प्रस्ताव (विराट. बृहस्पति, उतथ्य, पयस्य, शान्ति, घोर, संवर्त और ७१।३२-३४)। ये अपनी सेनाके साथ युधिष्ठिरकी सुधन्वा । ये सभी वारुण तथा आग्नेय कहलाते हैं सहायताके लिये आये ( उद्योग. १९ । १२)। (अनु. ८५ | १३०-१३१)। युधिष्ठिरकी सेनाके सात प्रमुख सेनापतियोंमें एक ये भी थे विरूपक-एक दैत्य, दानव या राक्षस, जो प्राचीनकालमें (उद्योग० १५७ । ११-१४)। उलूकसे दुर्योधनके पृथ्वीका शासक था. परंतु कालवश इसे छोड़कर चल संदेशका उत्तर देना ( उद्योग० १६३ । ४.)। प्रथम बसा ( शान्ति० २२७ । ५१)। दिनके संग्राममें भगदत्तके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध विरूपाक्ष-(१)दनुके सुविख्यात चौंतीस पुत्रों से एक । ( भीष्मः ४५ । ४९-५१ )। भीष्मपर आक्रमण इसके पिताका नाम कश्यप था ( आदि. ६५ । २१(भीष्म०७३ । १) द्रोणाचार्यके साथ युद्ध और शङ्खके २६)। यही राजा चित्रवर्मा होकर उत्पन्न हुआ था मारे जानेपर इनका पलायन ( भीष्म ८२ । १४- ( आदि. ६७ । २२-२३ ) । (२) नरकासुरका २४)। अश्वत्थामाके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म अनुयायी एक असुर, जो औदकाके अन्तर्गत लोहित११० । १६, भीष्म० १११ । २२-२७)। जयद्रथके गङ्गाके बीच श्रीकृष्णद्वारा मारा गया था (सभा० ३८ । साथ द्वन्द-युद्ध (भीष्म० ११६ । ४२-४४)। धृतराष्ट्र- २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८०७, कालम २)। (३) द्वारा इनकी वीरताका वर्णन (द्रोण. १०।१)। एक राक्षस, जिसके साथ वानरराज सुग्रीवने युद्ध किया था
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