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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विराट ( ३१७ ) विरूपाक्ष छोटेका उत्तर । इन दोनोंसे छोटी एक उत्तरा नामकी इनके मोड़ोंका वर्णन (द्रोण० २३ । १)। विन्दकन्या थी (विराट. १६ । ५१ के बाद दा. पाठ, अनुविन्दके साथ युद्ध (द्रोण० २५।२०-२ द्रोण. पृा १८९१)। कहीं-कहीं इनके दस भाइयोंका उल्लेख ९५ । -६) । शल्यके साथ युद्धमें मूञ्छित होना मिलता है (विराट. १६ । ५१ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ (द्रोण. १६७ । ३५) । द्रोणाचार्यद्वारा इनका वध १८९४ ) । उपकीचकोंको द्रौपदीको जलानेकी अनुमति (द्रोण. १८१ । ४३)। इनके मारे जाने की चर्चा दे देना (विराट. २३ । ८)। कीचक तथा उप- (कर्ण० ६ । ६)। इनके शवका दाह संस्कार (स्त्री. कीचकोंके दाह-संस्कारके लिये आदेश देना (विराट० २६ । ३३)। युधिष्ठिरद्वारा इनका श्राद्ध सम्पन्न होना २५। ६-७)। सुदेष्णाद्वारा द्रौपदीको राजमहलसे निकल (शान्ति०४२।४)। स्वर्गमें जाकर ये मरुद्गों में जानेके लिये संदेश कहलाना (विराट. २४ । ९-१०)। मिल गये (स्वर्गा०५।१५)। इनके भाइयोंके नाम शतानीक और मदिराक्ष थे । महाभारतमें आये हुए विराटके नाम--मत्स्य, मत्स्यशतानीकका दूसरा नाम सूर्यदत्त था। ये सेनापति थे। पति, मत्स्यराट, मत्स्यराज आदि । मदिराक्षको 'विशालाक्ष' भी कहा जाता था । ये दोनों विराटनगर-मत्स्यदेशकी राजधानी, इसपर त्रिगतों तथा महारथी थे (विराट० ३१ । ११-१२, १५, २०, २४, कौरवोंने चढ़ाई की थी (विराट. ३० । २३)। विराट. ३२ । १९)। इनके सुदेष्णासे उत्पन्न ज्येष्ठ । विराटपर्व-महाभारतका एक प्रमुख पर्व । पुत्रका नाम शङ्ख था (विराट० ३१ । १६)। गोहरणके समय पाण्डवों तथा अपनी सेनाके साथ युद्ध के लिये प्रस्थान विराध-एक क्रूरकर्मा राक्षस, जो शापग्रस्त गन्धर्व था । भगवान् श्रीरामद्वारा इसका वध (सभा० ३८ । २९ के (विराट. ३१ । ३२)। गोहरणके समय सुशर्माके साथ इनका द्वन्द-युद्ध ( विराट. ३२ । २३ -३०)। बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७९४)। सुशर्माद्वारा इनका जीते-जी पकड़ा जाना (विराट. ३३।। विराव-इल्वलद्वारा अगस्त्यजीको दिये गये रथमें जुते हुए ७-८) । सुशर्माके रथसे कूदकर उसकी गदा ले उसीकी एक घोड़ेका नाम । दूसरेका नाम सुगव था ( वन. ओर इनका दौड़ना (विराट. ३३१४२)। युद्धसे छटकारा ९९।१७)। पानेपर पाण्डवोंका इनके द्वारा सम्मान (विराट. ३४। विरावी-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेसे एक (आदि०६७।१०४ ४-१३)। नगरमें विजय-घोषणाके लिये दूत भेजना आदि. ११६ । १३)। (विराट० ३४ । १७)। इनकी उत्तरके लिये चिन्ता विरूप-(१) एक असुर, जो श्रीकृष्णद्वारा मारा गया था (विराट०६८।१०-१४)। इनके द्वारा युधिष्ठिरका (समा० ३८ । २९ के बाद, पृष्ठ ८२५, कालम १)। तिरस्कार (विराट. ६८।४६) । युधिष्ठिरसे इनकी (२) अन्य नाम और रूप धारण करके आया हुआ क्षमा-प्रार्थना (विराट० ६८ । ६२)। उत्तरसे युद्धका क्रोध, जिसका राजा इक्ष्वाकुके साथ संवाद हुआ था समाचार पूछना ( विराट. ६८ । ६८-७६ )। (शान्ति. १९९ । ८८-११७)। (३) अङ्गिराके पाण्डवोंका सस्कार तथा अर्जुनके साथ उत्तराका विवाह आठ पुत्रोंसे एक । इनके सात भाइयोंके नाम हैंकरनेके लिये युधिष्ठिरके सामने इनका प्रस्ताव (विराट. बृहस्पति, उतथ्य, पयस्य, शान्ति, घोर, संवर्त और ७१।३२-३४)। ये अपनी सेनाके साथ युधिष्ठिरकी सुधन्वा । ये सभी वारुण तथा आग्नेय कहलाते हैं सहायताके लिये आये ( उद्योग. १९ । १२)। (अनु. ८५ | १३०-१३१)। युधिष्ठिरकी सेनाके सात प्रमुख सेनापतियोंमें एक ये भी थे विरूपक-एक दैत्य, दानव या राक्षस, जो प्राचीनकालमें (उद्योग० १५७ । ११-१४)। उलूकसे दुर्योधनके पृथ्वीका शासक था. परंतु कालवश इसे छोड़कर चल संदेशका उत्तर देना ( उद्योग० १६३ । ४.)। प्रथम बसा ( शान्ति० २२७ । ५१)। दिनके संग्राममें भगदत्तके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध विरूपाक्ष-(१)दनुके सुविख्यात चौंतीस पुत्रों से एक । ( भीष्मः ४५ । ४९-५१ )। भीष्मपर आक्रमण इसके पिताका नाम कश्यप था ( आदि. ६५ । २१(भीष्म०७३ । १) द्रोणाचार्यके साथ युद्ध और शङ्खके २६)। यही राजा चित्रवर्मा होकर उत्पन्न हुआ था मारे जानेपर इनका पलायन ( भीष्म ८२ । १४- ( आदि. ६७ । २२-२३ ) । (२) नरकासुरका २४)। अश्वत्थामाके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म अनुयायी एक असुर, जो औदकाके अन्तर्गत लोहित११० । १६, भीष्म० १११ । २२-२७)। जयद्रथके गङ्गाके बीच श्रीकृष्णद्वारा मारा गया था (सभा० ३८ । साथ द्वन्द-युद्ध (भीष्म० ११६ । ४२-४४)। धृतराष्ट्र- २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८०७, कालम २)। (३) द्वारा इनकी वीरताका वर्णन (द्रोण. १०।१)। एक राक्षस, जिसके साथ वानरराज सुग्रीवने युद्ध किया था For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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