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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विभीषणा ( ३१६ ) विराट पुलस्त्मकुलनन्दन विभीषणको अपने घर लौटनेकी आज्ञा (खास रहनेका स्थान ) था ( सभा० ३८ । २९ के दी और कर्तव्यकी शिक्षा दे इन्हें बड़े दुःखसे विदा किया बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८१५, कालम २)। (बन० २९१ । ६७-६८)। बिरजा-(१) कश्यपद्वारा कद्र के गर्भसे उत्पन्न एक नाग विभीषणा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६।। (आदि.३५ । १३, उद्योग०१०३ । १६)। (२) २२)। धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि० ११६ । १४)। विभु-शकुनिका भाई । अपने चार भाइयोंके साथ इसका भाइयोसहित इसका भीमसेनके साथ युद्ध और उनके द्वारा भीमसेनपर आक्रमण और उनके द्वारा वध (द्रोण० वध (द्रोण. १५७ । १७-१९)। (३) भगवान् १५७ । २३-२६)। नारायणके तेजसे उत्पन्न एक मानस पुत्र, जिन्होंने पृथ्वीपर राज्य करनेकी इच्छा न करके संन्यास लेनेका विभूति-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोमैसे एक (अनु० ४। ही निश्चय किया । इनके पुत्रका नाम कीर्तिमान् था (शान्ति० ५९ । ८५-९०)। (४) कविके आठ विभूरसि-अद्भुत नामक अग्निके पुत्र ( वन० २२२। पुत्रोंसे एक । इनके सात भाइयोके नाम हैं-कवि, २६)। काव्य, विष्णु, शुक्राचार्य, भृगु, काशी और उग्र । ये .विमल तीर्थ-एक उत्तम तीर्थ, जिसमें सोने और चाँदीके आठों प्रजापति हैं ( अनु० ८५ । १३२-१३४)। रंगकी मछलियाँ दिखायी देती हैं। इसमें स्नान करनेसे या दता है । इसम स्नान करनसे विरस-एक कश्यपवंशी नाग ( उद्योग. १०३।१६)। मनुष्य शीघ्र ही इन्द्रलोकको प्राप्त होता है और सब पापोंसे शुद्ध हो परमगतिको प्राप्त कर लेता है (वन० ८२ । विराज-ये भरतवंशी महाराज कुरुके पौत्र एवं अविक्षित्के ८७-८८)। पुत्र थे ( आदि० ९४ । ५२ )। विमलपिण्डक-कश्यपद्वारा कद्रुके गर्भसे उत्पन्न एक नाग विराट-मत्स्यदेशके शत्रुदमन नरेश, जो मरुद्गणोंके अंशसे (भादि० ३५। ८)। उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६७ । ८२)। ये अपने पुत्र उत्तर एवं शतके साथ द्रौपदीके स्वयंवरमें पधारे थे विमला-सुरभिपुत्री रोहिणीकी दो कन्याओंमेंसे एक । दूसरी (आदि. १८५ । ८)। राजसूय-दिग्विजयके समय का नाम अनला था ( आदि० ६६ । ६७-६८.)। सहदेवद्वारा इनकी पराजय (सभा० ३१ ।२)। ये विमलाशोकतीर्थ-एक तीर्थ, जहाँ जाकर ब्रह्मचर्य-पालन युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें पधारे थे (सभा० ४४ । २.)। पूर्वक एक रात निवास करनेसे मनुष्य स्वर्गलोकमें प्रति- इन्होंने राजा युधिष्ठिरको सुवर्ण-मालाओंसे विभूषित दो ष्ठित होता है (वन०८४ । ६९-७०)। हजार मतवाले हाथी उपहारके रूपमें दिये (सभा० ५२ । विमलोदका-हिमालयपर ब्रह्माके यशमें प्रकट हुई सरस्वती- २६)। युधिष्ठिरको विशेष अधिकार देकर अपने यहा का नाम (शल्य० ३८ । २९)। ससम्मान रहनेकी व्यवस्था करना (विराट०७ । १६विमुख-एक ऋषि, जो इन्द्र की सभामें विराजते हैं (सभा० । १७)। इनका भीमसेनको अपने यहाँ पाकशालाध्यक्ष ७ । १७ के बाद दा० पाठ)। बनाना (विराट० ८ । ११-१२)। इनकी प्यारी रानीविमुच-दक्षिणदिशानिवासी एक प्राचीन ऋषि ( शान्ति. का नाम सुदेष्णा था (विराट. १।६)। सहदेवको अपने यहाँ गोशालाध्यक्षके पदपर रखना (विराट०१०। २०८।२८)। १५)। बृहन्नला नामधारी अर्जुनके नपुंसकत्वकी परीक्षा विमोचन-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत स्थित एक तीर्थ, कराकर उन्हें अन्तःपुरमें स्थापित करना ( विराट. जहाँ स्नान और आचमन करके क्रोध और इन्द्रियोंको ११। १०-११)। इनकी पुत्रीका नाम उत्तरा था, जिसे वशमें रखनेवाला मनुष्य प्रतिग्रहजनित पापसे मुक्त हो अर्जुनने गीत, वाद्य एवं नृत्यकलाकी शिक्षा दी थी जाता है (वन० ८३ । १६१)। (विराट. ११।१२-१३)। नकुलको अश्वशालाध्यक्षके वियम-राक्षस शतशृङ्गके तीन पुत्रोंमेंसे एक । इसका अम्ब- पदपर नियुक्त करना (विराट. १२ । ९)। द्रौपदीके रीषके सेनापति सुदेवके साथ युद्ध करके उसे मारना और उलाहना देने और फटकारनेपर उसे उत्तर देना स्वयं भी उसके द्वारा मारा जाना (शान्ति. ९८ । ११ (विराट. १६ । ३५)। विराटकी पहली रानी कोशलके बाद दा० पाठ)। देशकी राजकुमारी सुरथा थीं । वे श्वेतकी माता थीं । विरज-द्वारकाका एक प्रासाद, जो निर्मल एवं रजोगुणके उनके मरनेपर राजाने सूतपुत्री केकयकुमारी सुदेष्णासे प्रभावसे शून्य था । यह भवन श्रीकृष्णका उपस्थानगृह विवाह किया। सुदेष्णाके ज्येष्ठ पुत्रका नाम शङ्ख था और For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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