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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विरूपाश्व ( ३१८ ) विविन्ध्य (वन० २८५ । ९)। (४) एक राक्षस, जो घटोत्कचका वेदोक्त विधिके अनुसार यज्ञ करके आचार्य कश्यपको सारथि था (द्रोण. १७५। १५)।(५) एक राक्षस- दक्षिणारूपसे एक दिशाका दान कर दिया था, इसीलिये राज, जो राजधर्मा बकका मित्र था (शान्ति० १७० । उसे दक्षिण दिशा कहते हैं ( उद्योग० १०९।।)। १५)। इसके द्वारा गौतम ब्राह्मणका स्वागत (शान्ति. भगवान् श्रीहरिने इन्हें पूर्वकालमें अविनाशी कर्मयोगका १७० । २१)। इसका गौतमके साथ वार्तालाप और उपदेश दिया था। फिर इन्होंने अपने पुत्र वैवस्वत मनुको उसे धन देना ( शान्ति१७१ । २-२२)। इसकी शिक्षा दी ( भीष्म २८।१)। ये इक्कीस राजधर्माके विषयमें चिन्तित होकर अपने पुत्रको उसका प्रजापतियोंमेसे एक हैं ( शान्ति. ३३४ । ३६)। पता लगाने के लिये भेजना (शान्ति. १७२ । ५-- इन्होंने अदितिके सवितासे भी बड़े पुत्रसे नारायणके ११)। गौतमको मार डालनेका आदेश (शान्तिः मुखसे प्रकट हुए सात्वत धर्मका उपदेश ग्रहण किया १७२ । १७--१९)। राजधर्माके लिये चिता तैयार करना और त्रेतायुगके आरम्भमें वैवस्वत मनुको इसकी शिक्षा (शान्ति० १७३ । १२) । (६) ग्यारह रुद्रोमेसे दी (शान्ति०३४८ १५०-५१ ) । नासत्य और दस्रएक (शान्ति० २०८ । १९)। ये दोनों अश्विनीकुमार इनके औरस पुत्र हैं और अश्वरूपविरूपाश्व-एक राजा जिन्होंने अपने जीवनमें कभी मांस धारिणी इनकी पत्नी संज्ञा देवीकी नाकसे प्रकट नहीं खाया था ( अनु० ११५। ६५)। (अनु. १५० । १७-१८)। (२)एक दैत्य, जिसका विरोचन-(१) प्रहादजीके तीन पुत्रोंमेंसे ज्येष्ठ पुत्र । गरुडद्वारा वध हुआ (उद्योग.१०५ । १२)। (३) ये बलि के पिता थे (आदि. ६५। १९-२०, सभा० एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३१ )। ३८ । २९ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ ७८९)। केशिनीके विवह-एक अत्यन्त वेगशाली वायु, जो रुक्षभावसे वेगपूर्वक निमित्त सुधन्वासे इनका संवाद (उद्योग. ३५।१४- महान् शब्दके साथ बहकर बड़े-बड़े वृक्षोंको तोड़ देता और २१)। दैत्योंद्वारा पृथ्वीदोहनकं समय ये बछड़ा बने थे उखाड़ फेंकता है । इसके द्वारा संगठित हुए प्रलय(बोण. ६.९ । २०)। इन्द्रद्वारा इनके मारे जानेकी कालीन मेघ बलाहक संज्ञा धारण करते हैं । इस वायुका चर्चा (शान्ति० ९८ । ४५-५०) । भूतलके प्राचीन संचरण भयानक उत्पात लानेवाला होता है । यह आकाशमें शासकोमें इनका भी नाम लिया जाता है (शान्ति अपने साथ मेघोंकी घटाएँ लिये चलता है (शान्ति. २२७ । ५० )। (२) धृतराष्ट्रका एक पुत्र, जो ३२८ । ४४-४५)। द्रौपदी-स्वयंवरमें गया था ( आदि. १८५।२)। विविंश-सूर्यवंशी विंशके पुत्र, जिनके खनीनेत्र आदि (इसे दुर्विरोचन भी कहते हैं। विशेष देखिये---दुविरोचन) पंद्रह पुत्र थे (आश्व० ४।५-७)। बना-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० विविकाति-धृतराष्ट्रका एक महारथी पुत्र ( आदि० ६३ । ४६ । ३०)। ११९-१२०;आदि. ६७। ९४, आदि. ११६ । ४)। विरोहण-तक्षक कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था (आदि. १८५। )। सर्पसत्र में जल मरा (आदि. ५७ । ९)। द्वैतवनमें गन्धर्वोद्वारा बंदी होना (वन० २४२ । ८)। विवर्धन-एक नरेश, जो धर्मराज युधिष्ठिरकी सभामें विराटनगरमें अर्जुनसे पराजित होकर इसका भागना उपस्थित होकर उनकी उपासना करते थे (सभा०४ । (विराट० ६१ । ४३-४५)। भीमसेनके साथ युद्ध २१)। (द्रोण.१४ । २७-३०)। सुतसोमके साथ युद्ध विवस्वान्-(१) बारह आदित्यों में से एक लोकेश्वर सूर्य (द्रोण. २५ । २४-२५ ) । भीमसेनके साथ युद्ध ( आदि. ६५। १५)। ये कश्यपके द्वारा अदितिके (द्रोण. ९६ । ३१)। इसके मारे जानेकी चर्चा (कर्ण० ५ । ७)। गर्भसे उत्पन्न हुए हैं ( आदि. ७५ । ११)। वैवस्वत यमके पिता हैं ( आदि० ७५ । १२)। विवित्सु-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि. ६७। विवस्वान्के पुत्र मनु हैं ( आदि.९५। ७)। ये कर्णके ९६; आदि० ११६ । ५ )। भीमसेनके साथ युद्ध पिता है (आदि. ११०। १७-२०)। इनकी पुत्रीका (भीष्म०६४ । २८-३९ )। भीमसेनद्वारा इसका नाम तपती था (आदि. १७१।२६)। इनके एक वध (कर्ण० ५१ । १२)। सौ आठ नामोंका वर्णन (वन० ३। १६-२८)। विविध्य-एक दानव, जो शाल्वका अनुयायी था । इसका इन्होंने पृथ्वीपर निवास करके अपने समस्त शत्रओंको रुक्मिणीनन्दन चारुदेष्णके साथ युद्ध और उनके द्वारा दग्ध कर दिया था (वन० ३९५ । १९)। इन्होंने वध (वन० १६ । २२-२६)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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