Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 323
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशल्या ( ३१९ ) विधवा - ra m -- -- - - - ---------------- -- -------- -- --- -- --- विशल्या-(१) एक नदी, जो वरुणसभामें रहकर है (अनु० ८९ । ८)। चान्द्रव्रतमें विशाखाका दोनों वरुणदेवकी उपासना करती है (सभा० ९ । २०)। भुजाओंमें स्थापन करके पूजन करनेका विधान है (अनु० लोकविख्यात विशल्या नदीमें स्नान करनेसे मनुष्य ११०।६)। अग्निष्टोम यज्ञका फल प्राप्त करता है और स्वर्गलोकमें विशालक-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी जाता है ( वन० ८४ । ११४) । (२) शरीरमें चुभे सेवा करता है (सभा० १० । १६)। हुए बाणोंको निकालनेकी एक ओषधि (वन० २८९ । विशाला-(१) ये सोमवंशी महाराज अजमीढकी पत्नी थी (भादि० ९५ । ३७)। (२) गय देशमें राजा विशाख-(१) कुमार कार्तिकेयके तीन छोटे भाइयों से गयके यज्ञमें प्रकट हुई सरस्वतीका नाम (शल्य. ३० । एक, शेष दोके नाम शाख और नैगमेय हैं ( आदि. २०२१)। ६६ । २४)। जब कुमार कार्तिकेय पिताका गौरव प्रदान करने के लिये भगवान् शिवकी और चले, उस विशालापुरी-श्रीहरिकी पुण्यमयी पुरी, जो बदरीवनके निकट समय शिव, पार्वती, अग्नि और गङ्गा–ये चारों एक ही स्थित है । यह नर-नारायणका आश्रम है। इसे बदरिकासमय सोचने लगे--क्या यह मेरा पुत्र मेरे पास आयेगा? श्रम कहते हैं (वन. ९.। २४-२५) । विशालामें उनके मनोभावको समझकर कुमारने योगवलसे अपने तर्पण करनेसे मनुष्य ब्रह्मरूप हो जाता है ( अनु० २५ । चार स्वरूप बना लिये । एक तो कुमार स्कन्द स्वयं ही ___४४)। (विशेष देखिये बदरिका या बदरी) थे। दूसरे शाख, तीसरे विशाख और चौथे नैगमेय हुए। विशालाक्ष-(१) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि. स्कन्द शिवके, शाख अग्निके, विशाख पार्वतीके और ६७। १०१, आदि. ११६ । १०)। भीमसेनके नैगमेय गङ्गाजी के समीप गये। इस तरह इनके द्वारा साथ इसका युद्ध और उनके द्वारा वध (भीष्म ८८ । इन सबको पिता-माताका गौरव प्राप्त हुआ। इन चारोंके १५-२६)।(२) विराटका छोटा भाई, जिसे रूप एक-से हैं । ये सब एक ही माता-पितासे सम्बन्ध रखने- मदिराक्ष भी कहते हैं (विराट. ३२ । १९)। (३) के कारण परस्पर भाई है और एक ही स्वरूपसे प्रकट गरुडकी प्रमुख संतानोमेसे एक (उद्योग० १०१। होने के कारण परस्पर अभिन्न भी हैं (शल्य. १४। ५)। ३४-४१)। (२)कुमारका दूसरा रूप । एक समय विशालाक्षी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६ । इन्द्रने कुमार स्कन्दपर वज्रका प्रहार किया. उस वज्रने ३)। उनकी दायीं पसलीपर गहरी चोट पहुँचायी, इस चोटसे विशिरा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. ४६ । उनके शरीरसे एक नूतन रूप प्रकट हुआ, जिसकी २९)। युवावस्था थी। उसने सुवर्णमय कवच धारण कर रखा विशाण्डी-एक कश्यपर्वशी नाग (उद्योग० १.३ । था । उसके एक हाथमें शक्ति थी और कानोंमें कुण्डल झलमला रहे थे । वज्रके प्रविष्ट होनेसे उसकी उत्पत्ति हुई थी, इसलिये वह विशाख नामसे प्रसिद्ध हुआ विशोक-(१) भीमसेनका सारथि ( सभा० ३३ । (वन० २२७ । १५-१७)। (३) एक ऋषि, जो ३०)। भीमसेनद्वारा युद्धमै दृढ़ रहनेका इसे आदेश इन्द्रसभामें रहकर वज्रधारी इन्द्रकी उपासना करते हैं। (भीष्म० ६४ । १४)। धृष्टद्युम्नके पूछनेपर युद्ध(समा० ७।१५)। स्थलमें भीमसेनका पता बताना ( भीष्म ७७ । विशाखयूप-एक पुण्यप्रद स्थान । यहाँ इन्द्र, वरुण आदि २१-२५)। भगदत्तके प्रहारसे मूञ्छित होना (भीष्मः बहुत-से देवताओंने तप किया था (वन. ९०।१५)। ९५ । ७६ )। भीमसेनके साथ वार्तालाप ( कर्णः विशाखा-सत्ताईस नक्षत्रोंमेंसे एक । जो इस नक्षत्र में गाडी ७६ भन्याय )। (२) एक केकय राजकुमार, जो ढोनेवाले बैल, दूध देनेवाली गाय, धान्य, वस्त्र और कर्णद्वारा मारा गया था (द्रोण० ८२।३)। प्रासङ्गसहित शकट दान करता है, वह देवताओं और विशोका-(१) श्रीकृष्णकी एक पत्नी (सभा० ३८ । २९ पितरोंको तृप्त कर देता है तथा मृत्युके पश्चात् अक्षय के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८२०, कालम.)। (२) Trant सोता है। वह जीते जी कभी मंकी स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. १६ । ५)। पड़ता और मृत्यु के पश्चात् स्वर्गलोकमें जाता है (अनु० विश्रवा-एक मुनि, जो कुबेरके पिता हैं ( सभा० १० । ६४ । २०) । विशाखामें श्राद्ध करनेवाला मनुष्य यदि २)। कुबेरसे रुष्ट हुए पुलस्त्पने स्वयं अपने आपको पुत्र चाहता हो तो वह बहुसंख्यक पुत्रोंसे सम्पन्न होता दुसरे रूपमें प्रकट किया। पुलस्त्यके आधे शरीरसे जो For Private And Personal Use Only

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