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वायुहा
( ३०४ )
वाष्र्णेय
वायुठा-मङ्कणक मुनिके कलशमें रखे हुए वीर्यसे उत्पन्न किनारेतक फैला हुआ था। यह इन्द्रके अमरावतीपुरीके एक ऋषि (शल्य० ३८ । ३२-३७)।
समान जान पड़ती थी (अनु.३०। १६-१८)। वारण-एक प्रदेश, जो कौरवसेनासे घिर गया था ( उद्योग. पूर्वकालमें यहाँ भगवान् शङ्करके दर्शनके लिये संवर्त मुनि १९ । ३.)।
प्रतिदिन आया करते थे। यहीं राजा मरुत्तने नारदजीके बताये वारणावत-एक प्राचीन नगर, जहाँ दुर्योधनने पाण्डवोंको
अनुसार संवर्तको पहचानकर उन्हें अपने पुरोहितके
पदपर प्रतिष्ठित किया था ( आश्व०६।२२ से आश्व. मरवाने के लिये पुरोचनकी सहायतासे लाक्षागृहका निर्माण करवाया था ( आदि. ६५।१७)। (आधुनिक
७।१० तक)। मतके अनुसार वर्नवा' जो मेरठसे उत्तर-पश्चिम उन्नीस वाराह कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत स्थित एक उत्तम तीर्थ, मील दूर है। ) पाण्डवोंने यहाँ एक वर्षतक निवास किया जहाँ भगवान् विष्णु पहले वाराहरूपसे स्थित हुए थे। था ( आदि० ६१ । २१-२२ ) । धृतराष्ट्रके मन्त्रियों- वहाँ स्नान करनेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है द्वारा इस नगरकी प्रशंसा तथा वहाँके मेलेकी चर्चा (वन० ८३ । १८-१९)। ( आदि० १४२ । ३-४ ) । पाण्डवोंने संधिके समय वारिसेन-एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी जिन पाँच गाँवोंको माँगा था, उसमें वारणावत भी था उपासना करते हैं (सभा० । । २०)। ( उद्योग० ३१ । १९-२० ) । धृतराष्ट्रपुत्र युयुत्सुने वारुणतीर्थ-दक्षिण भारतमें पाण्डयदेशके अन्तर्गत एक यहाँ बहुत-से राजाओंके साथ छः मासतक अपराजित तीर्थ (वन. ८८ । १३)। रहकर युद्ध किया था (द्रोण. १०। ५८-५९)।
वारुणहद-वरुणदेवताका एक सरोवर, जिसमें महातेजस्वी वारवत्या-एक नदी, जो वरुणसभामें रहकर वरुणदेवकी अग्निदेव प्रकाशित होते हैं (उद्योग० ९८ । १८)। उपासना करती है (सभा०९।२२)।
वारुणी-जो क्षीरसागरके मन्थन करनेपर उत्पन्न हुई थी वारवास्य-एक भारतीय जनपद (भीष्म०९ । ४५)। (उद्योग० १०२।१२)। वाराणसी-भीष्मजी माताकी आज्ञासे काशिराजकी कन्याओं वार्भी-कण्डु मुनिकी पुत्री, जो दस प्रचेताओंकी पत्नी
के स्वयंवरमें वाराणसीपुरीको गये और वहाँ आये हुए हुई थी ( आदि. १९५।१५)। समस्त राजाओंको चुनौती देकर उन्हें युद्ध में परास्त वार्त-एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी करके काशिराजकी तीनों कन्याओंको हर लाये (भादि० उपासना करते हैं (सभा० ८।५०)। १०२ । ३-५३ ) । यह एक प्रमुख तीर्थ है । यहाँ
वार्धक्षेमि-पाण्डवपक्षके एक महारथी योद्धा, जो वृष्णिजाकर कपिलाहदमें स्नान करके भगवान् शङ्करकी पूजा
वंशी क्षत्रिय थे ( उद्योग० १७१ । १७)। इन्होंने करनेसे राजसूय यज्ञका फल मिलता है ( वन० ८४.७४)।
द्रौपदीके स्वयंवरमें पदार्पण किया था ( आदि. १८५ । वाराणसीका मध्यभाग अविमुक्तक्षेत्र कहलाता है, यहाँ
९)। इनके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । ३५)। प्राणोत्सर्ग करनेवालेको मोक्ष प्राप्त होता है (वन० ८४।।
कृपाचार्यके साथ इनका युद्ध (द्रोण० २५ । ५१-५२)। ७९)। (यह सात मोक्षदायिनी पुरियों से एक है। ) इसे
युद्धमें इनके मारे जानेकी चर्चा ( कर्ण० ६ । २०. भगवान् श्रीकृष्णने जलाया था (उद्योग० ४८ । ७६ )।
२९)। काशीपुरीमें काशिराजके पुत्रको धृष्टद्युम्नने मारा था (द्रोण० १०। ६०-६२ ) । इसी पुरीमें महाज्ञानी वागण्य-एक प्राचीन ऋषि, जिनसे गन्धर्वराज विश्वातुलाधार वैश्य रहते थे (शान्ति. २६ । ४२-४३)। वसुने कभी जीवात्म-परमात्मतत्त्वका विवेचन सुना था पूर्वकालमें भगवान् शिवने वाराणसीपुरीमें मुनिवर (शान्त
(शान्ति० ३१८ । ५९)। जैगीषव्यको उनकी सबल साधनासे संतुष्ट हो अणिमा वार्ष्णेय-(१) एक प्राचीन देश, जहाँके राजा युधिष्ठिरके आदि आठ सिद्धियाँ प्रदान की थीं (अनु०१८।३७)। राजसूय यज्ञमें भेंट लेकर आये थे (सभा०५१ । २४)। तेजस्वी राजा दिवोदासने इन्द्रकी आज्ञासे वाराणसी (२) राजा नलका सारथि ( वन० ६०।१०)।
मवाली नगरीका निर्माण किया था । यह पुरी ब्राह्मण, इसका राजा नलके कुमार-कुमारी इन्द्रसेन और इन्द्रक्षत्रिय, वैश्य और शूद्रोंसे भरी हुई थी। नाना प्रकारके सेनाको कुण्डिनपुर छोड़कर अयोध्या जाना ( वन. द्रव्योसे सम्पन्न थी। उसके बाजार-हाट और दुकानें ६० । २१-२४)। ऋतुपर्णका सारथि होना (वन. धन-वैभवसे भरपूर थीं। इस नगरीके घेरेका एक छोर ६० । २५) ऋतुपर्णका इसे बाहुककी सेवामें नियुक्त गङ्गाजीके उत्तर तटतक और दूसरा छोर गोमतीके दक्षिण करना (वन० ६७७)। ऋतुपर्णके साथ विदर्भ
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